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ग्वालियर संभाग के वेटलैंड्स बुरे हाल में, साख्य सागर की सेहत भी खराब

ग्वालियर संभाग की कई आद्रभूमियां आक्रामक जलीय पौधे के शिकंजे में हैं। ये न सिर्फ जल की गुणवत्ता को गिरा रहा है बल्कि यह इसमें आश्रय प्राप्त प्रजतियों को भी नुकसान पहुंचा रहा है।

By Chandrapratap Tiwari
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sankhya sagar lake

आक्रामक जलीय पौधों से ढंकी सांख्य सागर झील Source X(@v_nezza)

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मध्यप्रदेश में वर्तमान में कुल 94 आद्रभूमियां (Wetlands) मौजूद हैं। इनमें से 10 आद्रभूमियां ग्वालियर संभाग में स्थित हैं। ग्वालियर संभाग में ही आने वाली शिवपुरी की सांख्य सागर झील को रामसर साईट का दर्जा प्राप्त है। रामसर वेटलैंड अंतर्राष्ट्रीय महत्व के वेटलैंड होते हैं। यह दर्जा इस झील के महत्व को और भी बढ़ा देता है। आइये एक नजर डालते हैं ग्वालियर संभाग की आद्रभूमियों पर और जानते हैं इनकी स्थितयों के बारे में। 

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ग्वालियर डिवीजन की इकलौती रामसर साइट, सांख्य सागर झील 

सांख्य सागर माधव राष्ट्रीय उद्यान के भीतर शिवपुरी शहर के बाहरी इलाके में मौजूद एक मानव निर्मित जलाशय है। सांख्य सागर झील को 2022 में रामसर साइट का दर्जा दिया गया था। इस साइट का उत्तर-पूर्वी भाग लगभग पूरे वर्ष खुले पानी वाला  दलदली क्षेत्र रखता है, जबकि उत्तर-पश्चिमी भाग अक्सर सूखा रहता है। 

यह जलाशय उथला, क्षारीय और कई पोषक तत्वों से सराबोर है। यह आर्द्रभूमि क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाती है। साथ ही यह वन्यजीवों के लिए पानी का एक स्थायी स्रोत और हजारों प्रवासी जलपक्षी और मगरमच्छ (क्रोकोडायलस पलुस्ट्रिस) सहित कई जानवरों के लिए आवास भी प्रदान करती है। 

इस रामसर स्थल में वेटलैंड मछलियों की 19 प्रजातियाँ, सरीसृपों की 9 और 19 स्तनधारी प्रजातियां पाई जाती हैं। इसके अलावा यह 73 प्रवासी पक्षी प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव स्थल है। यह आर्द्रभूमि पोषक चक्र, भूजल पुनर्भरण और क्षेत्र की सूक्ष्म जलवायु को विनियमित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सांख्य सागर शिवपुरी की तीन वेटलैंड (जाधव सागर, लखना तालाब, और सांख्य सागर) में से इकलोता है, जिसे रामसर साइट का दर्जा मिला है। सांख्य सागर का प्रबंधन शिवपुरी प्रबंधन और संरक्षण योजना के तहत होता है। इस योजना का क्रियान्वयन शिवपुरी नगर पालिका करती है। 

कई वेटलैंड की जल गुणवत्ता है सवालों के घेरे में 

आर्द्रभूमियों में बीओडी (जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग) स्तर को नियंत्रित करना आवश्यक है ताकि उनका पारिस्थितिक और आर्थिक महत्व बना रहे। लेकिन ग्वालियर डिवीजन के 10 में से 5 वेटलैंड की बीओडी 12 mg/l या उससे अधिक है। जबकी किसी वेटलैंड में बीओडी 3 mg/l से अधिक नहीं होनी चाहिए। 

धोबिया तालाब, भुजरिया तालाब, और जाधव सागर का बीओडी 12 mg/l है। वहीं दतिया जिले के सीता सागर तालाब में यह मात्रा 18 mg/l तक पहुंच गई है।  ये बढ़ी हुई बीओडी किसी भी जलीय पारिस्थितिकी और उसमें बेस जीवों की स्वस्थ के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

आर्द्रभूमियों पर जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) का प्रभाव महत्वपूर्ण और चिंताजनक होता है। बीओडी एक मापदंड है जो जल में उपस्थित जैविक सामग्री के विघटन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाता है। 

जब आर्द्रभूमियों में बीओडी का स्तर बढ़ जाता है, तो जल में उपलब्ध ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। इससे मछलियों और अन्य जलीय जीवों को आवश्यक ऑक्सीजन प्राप्त नहीं हो पाती, जिससे उनकी मृत्यु हो सकती है। इसके अतिरिक्त, उच्च बीओडी स्तर जल की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है, जिससे आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। 

बढे हुए बीओडी से जल शोधन की प्राकृतिक प्रक्रिया भी बाधित हो जाती है, जो प्रदूषकों के संचयन को भी बढ़ा सकता है। 

इसके अलावा एक आर्द्रभूमि में घुलित ऑक्सीजन (DO) का प्रभाव महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जलीय जीवों के जीवन के लिए आवश्यक होता है। निम्न DO स्तर मछलियों और अन्य जलीय प्राणियों के लिए घातक हो सकता है। किसी भी आद्रभूमि में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 6 mg/l या इससे अधिक होनी चाहिए। लेकिन शिवपुरी के जाधव सागर तालाब में यह मात्रा 5.3 mg/l है इसका स्कोर 'E', यानी सबसे खराब है। 

आक्रामक मैक्रोफाइट्स 

ग्वालियर डिवीजन के डिबिया तालाब, जाधव तालाब, मोती तालाब, और राम सागर के 11 से 20 फीसदी हिस्से में मैक्रोफाईट्स की प्रजातियां अपना कब्जा जमा चुकी हैं। वहीं टेकनपुर, भुजरिया, और लखना तालाब के 20 से 30 फीसदी हिस्से में इनका प्रसार है।

इस समस्या की पराकाष्ठा हमें दतिया के सीता सागर तालाब में देखने को मिलती है, जहां के 31 से 40 प्रतिशत भाग में ये मैक्रोफाइट्स फैले हुए हैं। इससे आद्रभूमियों के जल की स्वच्छता की हालत का अंदाजा यहां फैले मैक्रोफाइट्स से ही लगाया जा सकता है। 

आर्द्रभूमि में आक्रामक मैक्रोफाइट्स (जल वनस्पतियाँ) का प्रभाव गंभीर और हानिकारक हो सकता है। ये आक्रामक प्रजातियाँ स्थानीय वनस्पतियों और जीवों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ाती हैं, जिससे जैव विविधता में कमी आती है। 

ये मैक्रोफाइट्स प्रजातियां जल निकायों को घेरकर जल प्रवाह को बाधित कर सकती हैं, जिससे जल की गुणवत्ता में गिरावट आती है और ऑक्सीजन का स्तर घटता है। इसके परिणामस्वरूप, मछलियों और अन्य जलीय जीवों की संख्या में कमी हो सकती है। इसके अलावा, ये मैक्रोफाइट्स जल संचयन और शुद्धिकरण की प्राकृतिक प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करती हैं, जिससे आर्द्रभूमि की पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ सकता है। 

किसी भी आद्रभूमि के स्वास्थ्य के लिए इन आक्रामक मैक्रोफाइट्स का प्रबंधन और नियंत्रण आवश्यक है ताकि आर्द्रभूमि की स्वास्थ्य और स्थायित्व बनाए रखा जा सके। लेकिन ग्वालियर डिवीजन की आद्रभूमियां पूरी तरह से इस प्रजाति की चपेट में हैं। इस स्थिति में सिर्फ ग्वालियर का तिघरा रिजर्वायर एक अपवाद के रूप में सामने आता हैं, जहां ये जलीय पौधे नियंत्रण में हैं। 

ठोस प्रबंधन योजना का अभाव 

आर्द्रभूमियों के स्पष्ट सीमांकन, प्रबंधन योजना और अधिसूचना का आर्द्रभूमि संरक्षण में महत्वपूर्ण महत्व है। एक स्पष्ट सीमांकित आर्द्रभूमि मानचित्र, आर्द्रभूमियों की सटीक पहचान और उनकी सीमाओं को दर्शाता है, जिससे अतिक्रमण और अवैध गतिविधियों को रोका जा सकता है। आर्द्रभूमि प्रबंधन योजना उनके सतत उपयोग, संरक्षण और पुनर्स्थापन के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है, जो इन पारिस्थितिक तंत्रों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करती है। आर्द्रभूमि अधिसूचना कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे इनके संरक्षण को कानूनन बाध्यकारी बनाना संभव होता है। 

इन तीनों घटकों का संयोजन आर्द्रभूमियों की पारिस्थितिकीय, सामाजिक और आर्थिक महत्ता को बनाए रखने और उनमें सुधार करने में सहायक होता है।  लेकिन ग्वालियर डिवीजन की आद्रभूमियों में इनका स्पष्ट अभाव है। 

दतिया के सीता सागर तालाब, और शिवपुरी का जाधव सागर तालाब ही 2 आद्रभूमि हैं जिनका स्पष्ट सीमांकित मानचित्र, और प्रबंधन योजना तैयार है और प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत भी हो चुकी है। इनके अतिरिक्त शेष आद्रभूमियों का स्पष्ट मानचित्र, और प्रबंधन योजना नदारद है। इसके अलावा इस संभाग के किसी भी वेटलैंड के निश्चित रेगुलेशन नहीं तैयार हैं, न ही इनकी अधिसूचना जारी हुई है। 

जानकारी की सीमितता 

किसी भी वेटलैंड की सबसे मौलिक विशेषता होती है, उसका जैव विविधता को समर्थन। आद्रभूमि के विषय में सबसे जरूरी होता है कि उसमें जलीय जीवों की कितनी प्रजातियां है, और वहां कितने जलपक्षी अपने प्रवास के लिए आते हैं। लेकिन राज्य आद्रभूमि प्राधिकरण की वेबसाइट में इन जानकारियों का उल्लेख नहीं है। दूसरी ओर राष्ट्रिय वेटलैंड पोर्टल में जैव विविधता के कॉलम में मात्र 'Increasing' लिख कर छोड़ दिया गया हैं। 

इन दोनों ही पोर्टल में ग्वालियर डिवीजन की इकलौती रामसर साइट सांख्य सागर झील के हेल्थ कार्ड का कोई भी जिक्र नहीं है। इन दोनों पोर्टल के वेटलैंड हेल्थ कार्ड डैशबोर्ड से सांख्य सागर झील का नाम ही नदारद है। 

आद्रभूमियां न केवल हमारे पर्यावरण का अभिन्न अंग हैं, बल्कि यह किसी क्षेत्र की विशिष्ट जैव विविधता का भी सूचक हैं। लेकिन ग्वालियर संभाग की कई आद्रभूमियां आक्रामक जलीय पौधे के शिकंजे में हैं। वहीं दूसरी ओर रामसर साइट का दर्जा पाई हुई अंतर्राष्ट्रीय महत्व के स्थल से जुडी हुई जरूरी जानकारियों की अनुपलब्धता, इसके स्वास्थ्य को लेकर संदेह बढ़ा देते हैं। इन वेटलैंड्स को लेकर उपलब्ध खुद सरकारी आंकड़े यह संकेत दे रहे हैं कि, ग्वालियर डिवीजन की आद्रभूमियां बेहतर स्थिति में नहीं हैं।    

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