आद्रभूमियां अंतर्राष्ट्रीय महत्व का एक स्थल होती है। यहां विदेशी जल पक्षियों की प्रजातियां प्रवास पर आती है, अपना बसेरा बनाती हैं, और प्रजनन करती हैं। मध्यप्रदेश में भी इस प्रकार की 94 आद्रभूमियां मौजूद हैं। इनमे से 4 रामसर साइट का दर्जा प्राप्त हैं। लेकिन मध्यप्रदेश की आद्रभूमियों की स्थिति अक्सर अखबार की सुर्खियों का हिस्सा बनती रहती हैं। आइये इसी सिलसिले में समझते हैं क्या हैं स्वस्थ आद्रभूमि के पैमाने, और भोपाल संभाग के स्थल इन पर कितने खरे उतरते हैं।
क्या कहते हैं वेटलैंड नियम 2017
भारत की सभी आद्रभूमियां वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017 के तहत काम करती हैं। ये नियम सरकारों के लिए वेटलैंड के संरक्षण से जुड़े हुए जरूरी दिशानिर्देश देती हैं। इनके अनुसार हर राज्य का अपना एक वेटलैंड प्राधिकरण होना चाहिए। राज्य के दायरे में आने वाली सभी वेटलैंड के पहचान और प्रबंधन की जिम्मेदारी इस प्राधिकरण की होगी।
साथ ही नियमों के मार्फ़त वेटलैंड का गैर-वेटलैंड गतिविधियों के लिए रूपांतरण और अतिक्रमण वर्जित है। वेटलैंड के 30 मीटर के दायरे में उद्योग और निर्माण कार्य प्रतिबंधित है। इन सब की देखरेख यह प्राधिकरण करता है। इसके अलावा यह प्राधिकरण वेटलैंड का मानचित्रण, सीमांकन और व्यापक प्रबंधन योजना तैयार करता है।
आद्रभूमियों के स्वास्थ के मद्देनजर 4 मौलिक मापदंड होते हैं। इनमें से उसका क्षेत्र, वेटलैंड के जल की स्वच्छता, वेटलैंड में प्रजातियों की संख्या, और वेटलैंड के प्रबंधन की योजना है। मध्यप्रदेश के भोपाल संभाग के अंतर्गत भी 9 आद्रभूमियां आती हैं। आइये इन्हीं मापदंडों के आलोक में भोपाल डिवीजन की आद्रभूमियों की स्थिति पर एक नजर डालते हैं।
कैसी है भोपाल डिवीजन के वेटलैंड की वाटर क्वालिटी
वेटलैंड में खराब जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD), रासायनिक ऑक्सीजन मांग (COD), और घुलित ऑक्सीजन (DO) का गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उच्च BOD और COD स्तर यह संकेत देते हैं कि पानी में कार्बनिक प्रदूषकों की मात्रा अधिक है, जो ऑक्सीजन की खपत को बढ़ा देते हैं।
BOD और COD के बढ़ने से DO स्तर कम हो जाता है, जो जलजीवों के लिए घातक हो सकता है। इसके पीछे की सीधी वजह ऑक्सीजन की कमी से जीवों की श्वसन प्रक्रिया का बाधित होना है। इसके अलावा, यह स्थिति मछलियों और अन्य जलजीवों की मृत्यु का कारण बन सकती है। साथ ही यह वेटलैंड की जैव विविधता और पारिस्थितिकीय संतुलन पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।
जल की गुणवत्ता में गिरावट से मानव स्वास्थ्य और वेटलैंड से जुड़े आर्थिक लाभ भी प्रभावित होते हैं। लेकिन भोपाल डिवीजन के 9 में से सिर्फ 2 ही आद्रभूमि, बसाई तालाब, और हाथीखेड़ा डैम है जिनके जल की गुणवत्ता बेहतर स्थिति में है। शेष 7 आद्रभूमियां गंभीर जल समस्याओं के घेरे में हैं। मसलन रायसेन के नरवर तालाब की COD 174 mg/l है, जबकि यह आदर्श स्थिति में 50 mg/l से अधिक नहीं होनी चाहिए। वहीं बैरसिया के मोतिया तालाब की COD 60 mg/l है, जो कि एक खराब स्थिति है।
काला तालाब, हनुमान तालाब, सिरोंज तालाब, मोतिया तालाब, और शाहपुरा तालाब को BOD के लिए 'E' यानि की सबसे खराब स्थिति के लिए स्कोर किया गया है। किसी भी आद्रभूमि की BOD की 3 mg/l या उससे कम ही होनी चाहिए। लेकिन हनुमान तालाब की बीओडी 12, और मोतिया तालाब की BOD 24 mg/l है। इनके अलावा शेष आद्रभूमियों के जल की गुणवत्ता भी किसी अच्छी स्थिति में नहीं है।
आक्रामक मैक्रोफाइट्स की गिरफ्त में हैं कई आद्रभूमियाँ
वेटलैंड्स में आक्रामक मैक्रोफाइट्स (जलीय पौधे) का गहरा नकारात्मक प्रभाव होता है। ये आक्रामक प्रजातियां तेजी से फैलकर स्थानिक पौधों और जीवों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर देती हैं, जिससे जैव विविधता में कमी आती है। इनके घने समूह जल प्रवाह में बाधा डालते हैं और जल गुणवत्ता को खराब करते हैं, जिससे ऑक्सीजन की कमी और जलजीवों की मृत्यु हो सकती है। इसके अलावा, ये पौधे मच्छरों और अन्य कीटों के प्रजनन के लिए आदर्श स्थिति बनाते हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
वेटलैंड्स की पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिए आक्रामक मैक्रोफाइट्स का प्रबंधन और नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण है। किसी भी वेटलैंड में इन आक्रामक प्रजातियों का प्रसार किसी भी प्रकार से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन भोपाल डिवीजन के तालाबों में एक मात्र हनुमान तालाब ही है जो इस शर्त को पूरा करता है।
हनुमान तालाब के अलावा क्षेत्र के अन्य सभी तालाबों में इसकी ये आक्रामक प्रजातियां सीमा से अधिक फैली हुई हैं। मोतिया तालाब और नरवर तालाब के 21 से 30 फीसदी हिस्सों में इस प्रकार के जलीय पौधे फैले हुए हैं। अष्टा के काला तालाब में ये प्रजातियां 31 से 40 प्रतिशत तक फैली हुई हैं। आक्रामक जलीय पौधों की यह मात्रा वेटलैंड और उसमें पल रहे जीवों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
नहीं बन पाया है अब तक मानचित्र
वेटलैंड के स्पष्ट रूप से सीमांकित नक्शे, प्रबंधन योजना और अधिसूचना अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये तीनों मिलकर वेटलैंड के संरक्षण और सतत प्रबंधन को सुनिश्चित करते हैं। स्पष्ट सीमांकन से अवैध अतिक्रमण और अनधिकृत गतिविधियों को रोका जा सकता है, जिससे वेटलैंड की सुरक्षा और संरक्षण संभव होता है।
एक सुव्यवस्थित मैनेजमेंट प्लान वेटलैंड के संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करती है और स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल करती है। साथ ही अधिसूचना वेटलैंड को कानूनी संरक्षण प्रदान करती है, जिससे अवैध गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई करना आसान होता है। इससे जनता और अधिकारियों में वेटलैंड को लेकर जागरूकता बढ़ती है, जिससे नियमों का बेहतर अनुपालन होता है।
इन तीनों तत्वों के समन्वित उपयोग से वेटलैंड्स की पारिस्थितिकीय और सामाजिक-आर्थिक महत्ता बनी रहती है। लेकिन भोपाल डिवीजन के भोज वेटलैंड के अलावा अन्य किसी भी वेटलैंड का नक्शा बन कर तैयार नहीं हुआ है। भोज वेटलैंड का भी नक्शा सिर्फ बना हुआ है लेकिन अभी यह प्राधिकरण के द्वारा मंजूर नहीं हुआ है। डिवीजन के मात्र 4 तालाबों (शाहपुरा तालाब, मोतिया तालाब, बसाई तालाब, काला तालाब, और हनुमान तालाब) का नक्शा अभी बनने की प्रक्रिया में हैं।
दूसरी ओर भोज तालाब के अलावा शेष किसी भी आद्रभूमि का मैनेजमेंट प्लान अब तक नहीं बना है, न ही इन्हे लेकर अब तक किसी भी प्रकार के नियम तैयार हुए हैं।
किसी भी आद्रभूमि के लिए उसमे आश्रय पाई प्रजातियों की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक बिंदु है। लेकिन दूषित जल, घातक जलीय पौधों की मौजूदगी एक आद्रभूमि, और उसके पारिस्थतिकी को बुरी तरह प्रभावित करतीं हैं। दूसरी ओर वेटलैंड का स्पष्ट सीमांकन, प्रबंधन योजना, और नियमों का नदारद होना इन स्थलों को अतिक्रमण, और प्रदूषण जैसी चुनौतियों के प्रति और भी सुभेद्य बना देता है।
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