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कैसे मिलता है किसी वेटलैंड को रामसर साईट का दर्जा?

भारत में वर्तमान में 82 रामसर साइट है। इन स्थलों के साथ भारत भारत मेक्सिको और यू.के. के बाद दुनिया भर में तीसरे स्थान पर आता है। आज से 10 वर्ष पहले भारत में मात्र 26 रामसर साइट हुआ करतीं थीं, जो इस दौर में बढ़ कर 82 हो गई हैं।

By Chandrapratap Tiwari
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ramsar bird

Source: X(@TaejMundkur)

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भारत में वर्तमान में 82 रामसर साइट है। इन स्थलों के साथ भारत भारत मेक्सिको और यू.के. के बाद दुनिया भर में तीसरे स्थान पर आता है। आज से 10 वर्ष पहले भारत में मात्र 26 रामसर साइट हुआ करतीं थीं, जो इस दौर में बढ़ कर 82 हो गई हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि इन 82 में से 40 रामसर साइट के दर्जे भारत को पिछले 3 वर्षों में मिले हैं। इसी बीच तेलंगाना के मंजीरा रिजर्वायर को रामसर साइट का दर्जा दिलाने की प्रक्रिया जारी है। आइये जानते हैं क्या होती है रामसर स्थल का दर्जा पाने की प्रक्रिया और शर्तें। 

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रामसर समझौते का इतिहास 

रामसर समझौता आधुनिक समय का सबसे पुराना अंतःसरकारी समझौता है। इसकी शुरआत विशेषरूप से प्रवासी जलपक्षियों के महत्वपूर्ण हैबिटैट, यानी वेटलैंड के की गिरती हालत को उबारने के लिए की गई थी। 

रामसर सम्मेलन की स्थापना 1960 के दशक के अंत में की गई थी। इसकी शुरुआत एस्कंदर फ़िरोज़ (ईरान के पूर्व पर्यावरण मंत्री), फ्रांस के कैमरग में टूर डु वैलैट अनुसंधान स्टेशन के ल्यूक हॉफमैन और स्लिमब्रिज में वाइल्डफॉवल एंड वेटलैंड्स ट्रस्ट के जेफ्री मैथ्यूज द्वारा की गई थी। 

यह सम्मेलन कैस्पियन सागर के किनारे ईरान के रामसर रिसोर्ट में आयोजित किया था। यह कार्यक्रम 2 फरवरी 1971 को आयोजित किया गया था जहां अंतरसरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। बाद में यह समझौता 1975 से प्रभावी हुआ था। भारत भी 1 फरवरी 1982 को इस समझौते को मानने वाला देश बना। रामसर में हुए कार्यक्रम के उपलक्ष्य में हर साल 2 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय वेटलैंड दिवस मनाया जाता है। 

राज्य सरकार करता है पहल 

सबसे पहले कदम के तौर पर राज्य सरकार या राज्य की अधिकृत संस्था अपने महत्वपूर्ण आद्रभूमि का चुनाव करती है। इसमें स्थल का पारिस्थितिक महत्व , जैव विविधता और पर्यावरण के लिए इसकी उपयोगिता इसका जरूरी पैमाना होता है। 

आद्रभूमि के चुनाव के बाद राज्य सरकार इसका विस्तृत ब्यौरा तैयार करती है। इसमें वेटलैंड के पारिस्थितिक, वनस्पति, प्राणी, जलविज्ञान और हाइड्रोलॉजिकल महत्व को दस्तावेज़ित करने के लिए विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन और मूल्यांकन किए जाते हैं। इसमें वनस्पतियों और जीवों, जल गुणवत्ता और स्थानीय समुदायों को मिलने वाले सामाजिक-आर्थिक लाभों पर डेटा एकत्र किया जाता है। 

इसके बाद राज्य सरकार इन सभी अध्ययनों का एक-एक विस्तृत दस्तावेज तैयार करता है। इसे रामसर इन्फॉर्मेशन शीट (RIS) कहते हैं। इसके बाद राज्य सरकार केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) के पास रामसर साइट के दर्जे के लिए प्रस्ताव भेजता है।  

पर्यावरण मंत्रालय करता है स्थलों की जांच 

रामसर इन्फॉर्मेशन शीट (RIS) मिलने के बाद बाद पर्यवरण मंत्रालय प्रस्ताव की जांच करता है। मंत्रालय सबसे पहले यह देखता है कि उक्त आद्रभूमि रामसर स्थलों की शर्तों को पूरी करती है या नहीं। इसके लिए पर्यावरण मंत्रालय राज्य सरकार, स्थानीय संस्थाओं, एवं अन्य हितधारकों से बात करता है। पूरी तरह से संतुष्ट होने पर पर्यावरण मंत्रालय प्रस्ताव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाता है। 

क्या है अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रक्रिया 

अंततः भारत का पर्यावरण मंत्रालय आरआइएस और अन्य जरूरी दस्तावेजों के साथ रामसर साइट के दर्जे के लिए प्रस्ताव करता है। यह प्रस्ताव रामसर सचिवालय ग्लैंड, स्विट्ज़रलैंड भेजा जाता है। प्रस्ताव मिलने के बाद सचिवालय आरआईएस का रिव्यू करता है। जरूरत पड़ने पर सचिवालय भारत सरकार से इस बाबत अन्य जवाब और दस्तावेज भी मांग सकता है। पर्याप्त समीक्षा के बाद रामसर सचिवालय आद्रभूमि को रामसर स्थल का दर्जा दे देता है। 

दर्जा मिलने के बाद का क्रम 

एक बार रामसर स्थल का दर्जा मिलने बाद प्रक्रिया थमती नहीं है, बल्कि इसे संजोए रखने की सरकार की जिम्मेदारियों में और इजाफा होता है। एक बार दर्जा मिलने के बाद एक मैनेजमेंट प्लान तैयार किया जाता है। यह प्लान इस बात को ध्यान में रख कर बनाया जाता है कि, इससे आद्रभूमि का संरक्षण, और टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित हो सके। इसके साथ ही सुरक्षात्मक उपाय, इसमें समुदायों की भूमिका, और निगरानी कार्यक्रम भी शामिल किये जाते हैं। 

रामसर स्थल का दर्जा प्राप्त आद्रभूमि की विधिवत निगरानी की जाती है। इसका उद्देश्य यह देखना होता है कि आद्रभूमि अपनी निर्धारित लक्ष्यों को पा रही है या नहीं और सुरक्षात्मक उपाय कारगर हैं या नहीं। निगरानी के दौरान नए तथ्य सामने आने पर इस मैनेजमेंट प्लान में संशोधन का भी प्रावधान है। 

'रामसर साइट' के दर्जे के लिए मापदंड 

रामसर साइट के रूप में नामांकन के लिए कुछ विशिष्ट मापदंड होते हैं। इसका सबसे पहला मापदंड है कि, स्थल में प्राकृतिक या अर्ध-प्राकृतिक वेटलैंड प्रकारों के प्रमुख, दुर्लभ, या अद्वितीय उदाहरण होने चाहिए। दूसरा, यह संकटग्रस्त, लुप्तप्राय, या गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों या पारिस्थितिकी तंत्रों का समर्थन करना चाहिए।

वेटलैंड को एक विशेष जैवभौगोलिक क्षेत्र में जैव विविधता बनाए रखने के लिए कारगर होना चाहिए। इसके अलावा, इसे महत्वपूर्ण चरणों में प्रजातियों की बड़ी संख्या का समर्थन करना चाहिए या प्रतिकूल परिस्थितियों में आश्रय प्रदान करना चाहिए।एक रामसर साइट को नियमित रूप से 20,000 या अधिक जलपक्षियों का आश्रय देना चाहिए, या एक प्रजाति या उप-प्रजाति की जनसंख्या के कम से कम 1% जीवों का समर्थन करना चाहिए।

आद्रभूमि को वैश्विक जैव विविधता में योगदान देने वाली स्वदेशी मछली प्रजातियों की महत्वपूर्ण आबादी का आसरा देना चाहिए। इसके अतिरिक्त, इसमें मछलियों के लिए भोजन का स्रोत उपलब्ध होना चाहिए। साथ ही इसे मछलियों के प्रजनन, नर्सरी या मछली स्टॉक के लिए आवश्यक प्रवास मार्ग के रूप में काम करना चाहिए। 

इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण है कि, वेटलैंड को सामाजिक-आर्थिक महत्व होना चाहिए। ताकि यह स्थानीय मानव समुदायों को भोजन, पानी और सांस्कृतिक महत्व प्रदान कर सके और साथ-साथ जैव विविधता के संरक्षण के लक्ष्य को हासिल कर सके।

रामसर स्थल के दर्जे और भारत में रामसर स्थलों की सूची बहुत लंबी है। लेकिन इसका सारांश और उद्देश्य बहुत ही मौलिक है, वैश्विक जैव विविधता और पर्यवरण का संरक्षण। 

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