गुवाहाटी उच्च न्यायालय (Gauhati High Court) में काशी कॉरिडोर की तर्ज पर बन रहे कामाख्या कॉरिडोर को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में कॉरिडोर बनने के कारण कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) के आस पास का पारिस्थितिक संतुलन के प्रभावित होने का खतरा बताया गया था। उच्च न्यायालय ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकार समेत 5 पक्षों को नोटिस जारी किया है।
इस मामले के याचिकाकर्ता नवज्योति सरमा ने अदालत को बताया कि इस परियोजना का निर्माण पांच चरणों में होगा। इस प्रक्रिया में मंदिर परिसर के भीतर बड़े पैमाने पर विध्वंस, खुदाई और पुनर्निर्माण शामिल है। उन्होंने चिंता जताई कि इसका सीधा असर कामाख्या मंदिर के गर्भगृह में आने पवित्र जलधारा पर पड़ सकता है। सरमा ने निर्माण का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का स्पष्ट आकलन न होने के कारण इस निर्माण परियोजना को चुनौती दी है।
याचिकाकर्ता ने स्पष्टीकरण मांगा है कि इस कॉरिडोर के निर्माण से ऐतिहासिक संरचना को कोई नुकसान नहीं होगा। इसके साथ ही प्राकृतिक जल झरनों और प्राकृतिक गुफा पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा।इसके अलावा पवित्र नीलाचल पहाड़ी पर संरक्षित, निषिद्ध या विनियमित क्षेत्र में कोई भी निर्माण या नवीकरण गतिविधि नहीं की जाएगी।
इसके साथ ही याचिकाकर्ता ने यह भी रेखांकित किया कि परियोजना शुरू होने से पहले जल स्रोतों पर संभावित प्रभाव का आकलन नहीं किया गया है। इसके प्रभावों के आकलन के लिए कोई इरीगेशन या जियोलाजिकल सर्वे नहीं किया गया है। उनका मानना है कि इस निर्माण से नीलांचल हिल के झरने प्रभावित हो सकते हैं जो कामाख्या मंदिर और परिसर के अन्य मदिरों को जोड़ते हैं, और पवित्र माने जाते हैं।
इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील उपमन्यु हजारिका ने एक और महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। उन्होंने कहा कि कामाख्या मंदिर और आसपास के मंदिरों को प्राचीन स्मारकों और पुरातत्व स्थलों के तहत अधिसूचित नहीं किया गया है। इस संदर्भ में अदालत से इन मंदिरों को पुरातत्व अधिनियम के तहत संरक्षित करने का आग्रह भी किया गया है।
अदालत ने सभी 5 पक्षों, केंद्र सरकार, राज्य सरकार, पीडब्ल्यूडी, लार्सन टुब्रो, और पुरातत्व निदेशक, असम को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। अपने आदेश में अदालत ने चिंता व्यक्त की गई है कि पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के बिना कामाख्या कॉरिडोर के निर्माण से मंदिर की संरचना और आसपास के पर्यावरण पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अब इस मामले की अगली सुनवाई अदालत ने 3 जून को तय की है।
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