/ground-report/media/media_files/2025/03/28/ohZKvIemkh0n32I5dFFz.jpeg)
रिपोर्ट के अनुसार देश में पायी जाने वाली नदी डॉल्फिनों की 40 प्रतिशत आबादी अकेले उत्तर प्रदेश में पाई जाती है। Photograph: (Ground Report)
भारत में पहली बार डॉल्फिन की गणना (dolphin census) की गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की 7वीं बैठक में डॉल्फिन गणना की रिपोर्ट भी जारी की। इस रिपोर्ट के हिसाब से भारत की नदियों में कुल 6327 डॉल्फिन पायी गई हैं। इन डॉल्फिन्स की गणना 8 राज्यों की 28 नदियों में किए गए सर्वे के माध्यम से की गई है। यह सर्वे 2021 से 2023 के बीच किया गया है। नदी डॉल्फिन्स (river dolphine) की गिनती के लिए 3150 कार्य दिनों में 8500 किलोमीटर नदियों का हिस्सा कवर करना पड़ा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2020 को प्रोजेक्ट डॉल्फिन लॉन्च किया था।
इस सर्वे को गंगा, ब्रह्मपुत्र और ब्यास नदी के बेसिन में किया गया है। सर्वे में उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 2397 डॉल्फिन का आंकलन किया गया है, जबकि सबसे कम संख्या (3) पंजाब की ब्यास नदी में दर्ज की गई है। मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा बनाने वाली चंबल नदी में साझातौर पर 95 डॉल्फिन का आंकलन किया गया है।
इसके अलावा बिहार में 2220, पश्चिम बंगाल में 815, असम में 635, झारखंड में 162 डॉल्फिनों की संख्या देखने को मिली है। अगर यही आंकड़े नदी बेसिन के हिसाब से देखें तो गंगा में 5689, ब्रह्मपुत्र में 635 और ब्यास नदी में मात्र 3 डॉल्फिन ही मौजूद हैं। इस रिपोर्ट के हिसाब से देश में पायी जाने वाली नदी डॉल्फिनों की 40 प्रतिशत आबादी अकेले उत्तर प्रदेश में ही मिल जाती है।
/ground-report/media/media_files/2025/03/28/tLCJA3u8vqHGyoA6PqFe.png)
क्यों जरूरत पड़ी डॉल्फिन सर्वे की?
साल 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान लॉन्च किया था। जिसके एक साल बाद गंगा डॉल्फिन को वन्यजीव संरक्षण एक्ट 1972 की पहली अनुसूची में शामिल किया गया। इसको और आसन शब्दों में समझें तो तब तक डॉल्फिन लुप्तप्राय हो चुकी थी और सरकार उनका संरक्षण करना चाहती थी।
इसके बाद साल 2008 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने भी गंगा डॉल्फिन (gangetic river dolphins) या साउथ एशियन रिवर डॉल्फिन को अपनी रेड लिस्ट में शामिल कर लिया। कुछ समय बाद 5 अक्टूबर 2009 में भारत सरकार ने गंगा डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित कर दिया। चूंकि गंगा डॉल्फिन नदियों के स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र की इंडिकेटर हैं ऐसे में इनकी घटती संख्या चिंता का विषय बनकर सामने आयी।
साल 2010 में पर्यावरण राज्य मंत्री रहे जयराम रमेश लोकसभा में बताते हैं कि 2010 से 2020 तक के लिए भारत सरकार ने इंटीग्रेटेड डेवेलपमेंट ऑफ वाइल्डलाइफ हेबिटेट स्कीम लांच की है। इसमें डॉल्फिन के साथ अन्य जीवों के संरक्षण पर केन्द्र सरकार ध्यान देने वाली थी। इसके बाद भारत सरकार ने साल 2016 से 2021 के लिए नेशनल कैंपा अथॉरिटी की मदद से नदी डॉल्फिन के संरक्षण के लिए कार्य योजना का विकास किया।
लेकिन साल 2021 में मेनका गांधी द्वारा पूछे गए सवाल पर पर्यावरण राज्य मंत्री रहे बाबुल सुप्रियो लिखित जवाब पेश करते हैं। जिससे पता चलता है कि हाल के सालों में लगभग 40 प्रतिशत डॉल्फिनों की संख्या घटी है। लगभग इसी समय भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 अगस्त 2020 को प्रोजेक्ट डॉल्फिन की घोषणा करते हैं।
/ground-report/media/media_files/2025/03/28/LDPjj6hEGVHGmQW1NsTl.png)
इस प्रोजेक्ट का मकसद नदी और समुद्र दोनों में पाए जाने वाली डॉल्फिनों को संरक्षण देना है। इसमें विज्ञानपरक और बहुआयामी नजरिए से काम किया जाना है. इसमें वन विभाग, मत्स्य पालन विभाग, मछुआरे समेत कई हिस्सेदार शामिल हैं। इस संरक्षण प्रोग्राम के लिए डॉल्फिनों की संख्या और पुराने रुझान मददगार होते हैं। इनकी विकास दर काफी धीमी होती है। इसके लिए साल 2021 से 2023 तक 58 नदियों में 8 हजार किमी के हिस्से का सर्वे किया गया है। इसमें 22 नदियों का नाव से जबकि 30 नदियों का सड़कमार्ग की मदद से सर्वे किया गया है।
कैसी होती हैं गंगा डॉल्फिन?
डॉल्फिन धरती पर सबसे पुराने जीव कछुए, मगरमच्छ और शार्क में से एक हैं। इसकी आधिकारिक खोज साल 1801 में की गई थी। वैज्ञानिक भाषा में इसका नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका गैंगेटिका रखा गया है। इसकी लंबाई 7 फीट से 9 फीट के बीच होती है जबकि वजन 150 किलो से 170 किलो के बीच होता है।
ये केवल साफ पानी में ही जिंदा रह सकती हैं और मूलतः अंधी होती हैं। ये अल्ट्रासोनिक ध्वनियां उत्सर्जित कर शिकार का पता लगाती हैं। ज्यादातर ये अकेले और छोटे समूहों में ही पायी जाती हैं। आमतौर पर डॉल्फिन मां और बच्चा एक साथ ही रहते हैं। जन्म के समय डॉल्फिन के बच्चे चॉकलेटी भूरे रंग के होते हैं बाद में बड़े होने के साथ- साथ त्वचा भूरी, चिकनी और बिना बालों की होती जाती है। मादा डॉल्फिन नर से बड़ी होती है और दो से तीन साल में केवल एक बच्चे को ही जन्म देती हैं।
हाल ही में की गई गणना को उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, असम, झारखंड, राजस्थान के वन विभागों, भारतीय वन्य जीव संस्थान, वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड, टर्टल सर्वाइवल एलायंस और भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट जैसे एनजीओ की सहायता से पूरा किया गया है। इस गणना के लिए गंगा में कुल 7109 किलोमीटर क्षेत्र में सर्वेक्षण किया गया जिसमें उसकी सहायक नदियां चंबल, यमुना, राप्ती, शारदा, घाघरा भी शामिल हैं।
/ground-report/media/media_files/2025/03/28/WOA7ks5l2tv3hHQiwqAg.png)
कैसे की जाती है डॉल्फिनों की गणना?
भारत में डॉल्फिन की गणना एक जटिल और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि डॉल्फिन ज्यादातर समय पानी के भीतर ही रहती हैं और सतह पर केवल कुछ ही सेकंड के लिए आती हैं। आंकड़ों के अनुसार, गंगा डॉल्फिन जैसी प्रजातियां सतह पर औसतन 1.26 सेकंड के लिए आती हैं और इसके बाद 107 सेकंड तक पानी के भीतर रहती हैं। ऐसे में सभी डॉल्फिनों की सही-सही गणना करना आसान नहीं होता है।
इसलिए डॉल्फिन की गणना के लिए दो टीमों की सहायता ली जाती है। पहली टीम प्रत्यक्ष रूप से डॉल्फिन को सतह पर देखकर उनकी उपस्थिति दर्ज करती है, जबकि दूसरी टीम पानी के भीतर हाइड्रोफोन (विशेष ध्वनि उपकरण) डालकर डॉल्फिन की उपस्थिति का पता लगाती है। हाइड्रोफोन डॉल्फिन की आवाजों को रिकॉर्ड कर यह जानकारी देता है कि किस स्थान पर और कितनी डॉल्फिन हो सकती हैं।
इसमें साथ- साथ डॉल्फिनों की प्रचुरता, नदी के आवास का प्रकार, संबंधित जलीय जीवों और मानवजनिक दबाव का अंदाजा लगाया जाता है। डॉल्फिन पर इकट्ठे किए गए डाटा को लिंकन पीटरसन चैपमेन करेक्टेड फॉर्मूला और हगिंस विधि का उपयोग कर तैयार किया जाता है। इस गणना में राज्य के वन विभागों और एनजीओ की सहायता ली जाती है। इस गणना के दौरान 8 राज्यों में 21 ट्रेनिंग प्रोग्रामों में 455 वन विभाग के कर्चारियों को सही निरीक्षण और सूचना इकठ्ठा करने के लिए तैयार भी किया गया है।
संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए?
गंगा नदी डॉल्फिन के संरक्षण के लिए जीवविज्ञानी और पर्यावरणविद पद्मश्री रवींद्र कुमार सिन्हा सबसे आगे आए, इन्हें डॉल्फिन सिन्हा के नाम से भी जाना जाता है। वे लगातार 4 दशकों से शोध और संरक्षण प्रयासों में लगे रहे। इन्हीं के प्रयासों से ही साल 2009 में भारत सरकार ने संरक्षण के लिए डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था।
इन्होंने गंगा नदी के साथ अधिकांश सहायक नदियों को पूरी लंबाई तय कर सर्वेक्षण किया। जिससे डॉल्फिनों की स्थिति के बारे में पता लग सके। साल 1992 से इन्हें डॉल्फिन मैन ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाने लगा। इन्होंने ही साल 2010 में डॉल्फिन संरक्षण कार्य योजना भी विकसित की थी। फिर इनके प्रयासों से साल 2013 में प्लानिंग कमीशन ने राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध केंद्र के लिए मंजूरी दी। साल 2024 में पटना विश्वविद्यालय में गंगा नदी के किनारे बनाए गए केंद्र का नितीश कुमार द्वारा उद्घाटन किया गया, लेकिन लंबे समय तक इसका संचालन ही शुरू नहीं किया जा सका।
डॉल्फिन संरक्षण के लिए बिहार में सुल्तानगंज से कहलगांव तक गंगा नदी का 60 किलोमीटर लंबे क्षेत्र को विक्रमशिला अभ्यारण्य (1991) का नाम दिया गया है। ये भारत का एकमात्र डॉल्फिन अभ्यारण्य है। इसमें डॉल्फिन के अलावा , फिश ईगल, घड़ियाल, मीठे पानी के कछुए और कई मछली प्रजातियां भी पाई जाती हैं।
/ground-report/media/media_files/2025/03/28/1wETAM8AX0G5KuEuvZI4.png)
प्रोजेक्ट डॉल्फिन के अंतर्गत मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बहने वाली चंबल नदी को डॉल्फिन संरक्षण क्षेत्र नामित करने की सिफारिश की गई है। इसमें 200 किलोमीटर लम्बे चंबल नदी क्षेत्र को संरक्षण क्षेत्र घोषित करने के प्रयास जारी है। इसके अलावा साल 2022-23 और 2023-24 में लगभग समान 2.4 करोड़ रुपए डेवलपमेंट ऑफ लाइफ हेविटेट्स के अंतर्गत जारी किए गए हैं। जिससे प्रजातियों की सुरक्षा, आवास, निगरानी और गश्त के लिए असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और लक्ष्यद्वीप में प्रमुख डॉल्फिन हॉटस्पॉट की पहचान की गई है। इसके साथ ही व्यापक कार्य योजना (2022-2047) को अंतिम रूप देकर संबंधित विभागों को काम शुरू करने लिए साझा किया गया है।
रिपोर्ट के हिसाब से नदियों में डॉल्फिनों के संरक्षण से वहां की जैव विविधता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सर्वे के पीछे का उद्देश्य नदी और समुद्रीय डॉल्फिनों के संरक्षण को बढ़ाने के लिए कार्यक्रम तैयार करना है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 20 वीं शताब्दी के अंत में गंगा में 4 से 5 हजार डॉल्फिन होने का अंदाजा लगाया गया था। लेकिन बाद में इनकी संख्या में कमी आयी जो घटकर मात्र 1800 के करीब ही रह गयी थी। फिलहाल सबसे बड़ी चिंता की बात सिंधु नदी में डॉल्फिन की कम होती संख्या है, जिन्हें जल्द ही संरक्षण दिया जाना चाहिए।
भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट को आर्थिक सहयोग करें।
यह भी पढ़ें
पूजनीय लेकिन ज़हरीली और प्रदूषित, यह है पन्ना की किलकिला नदी
खरमोर के संरक्षण में कहां रह गई कमी, मध्य प्रदेश में विलुप्त!
“पानी की समस्या है कि खत्म नहीं होती” नर्मदा किनारे बसे आदिवासी गांवों की कहानी
खेती छोड़कर वृक्षारोपण के लिए सब कुछ लगा देने वाले 91 वर्षीय बद्धु लाल
पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी।