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नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के अनुसार दूरस्थ क्षेत्र से पेयजल लाने में ग्रामीण परिवार की 84.1 प्रतिशत महिला एवं 14.1 प्रतिशत पुरुष अपना योगदान देते हैं। Photograph: (Sayali Parate/Ground Report)
अलीराजपुर जिला मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ है। यह जिला नर्मदा नदी के उत्तर में विंध्य पर्वतमाला पर और मालवा पठार के दक्षिण-पश्चिमी किनारे पर स्थित है। सोंडवा तहसील के अंतर्गत आने वाले झंडाना और सुगट गांव नर्मदा नदी के बगल में थोड़ी दूरी पर ही स्थित हैं। लेकिन नदी और इन गांवो के बीच मौजूद पठार इस छोटी सी दूरी को मुश्किल बना देता है। इन गांवो के निवासियो को पठार चढ़कर नर्मदा नदी से पानी लाना पड़ता है।
2011 की जनगणना में अलीराजपुर को मध्य प्रदेश का सबसे गरीब जिला बताया गया। जबकि 2023 में प्रकाशित नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक यह दूसरा सबसे गरीब जिला है। यानि 12 सालों में भी यहां कोई बड़ा बदलाव नहीं आया।
जनगणना के अनुसार अलीराजपुर की 89% से अधिक आबादी आदिवासी (adivasi) समुदाय से आती है। यहां के अधिकांश घरों में मूलभूत संसाधनो का अभाव है। हालात ये हैं कि पानी, जो मानव जीवन की एक मौलिक ज़रूरत है, उसके लिए भी यहां के निवासियों को कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है।
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पलायन और कभी न ख़त्म होने वाली पानी की समस्या
ककराना से लकड़ी की एक नाव पे सवार होकर हम झंडाना पहुंचते हैं। सामने एक पठार दिखाई देता है जिसमें जहां-तहां कच्चे घरों की बसाहट है। पठार चढ़कर हम एक घर तक पहुंचते हैं। यहां दो औरतें घर का काम कर रही हैं। इनमें से एक तिरली बाई चूल्हे के पास काम करते हुए हमें अपनी दिनचर्या के बारे में बता रही हैं।
वह कहती हैं कि उनका दिन पानी भरने की जद्योजहद से शुरू होता है और इसी पर खत्म हो जाता है। अपनी समस्याएं बताते हुए तिरली बाई धीरे-धीरे गंभीर हो जाती हैं। वह काम करते हुए एक लंबी सांस लेती हैं और कहती हैं,
‘‘क्या बताऊं पानी की समस्या है कि खत्म नहीं होती।”
तिरली बाई से पहली बार हम नवंबर 2024 में मिले थे। उनसे दोबारा मिलने जब हम फरवरी 2025 में पहुंचे तो गांव वालों ने बताया कि उनका परिवार पलायन कर गया है। तिरली के परिवार में उनके पति और बच्चे हैं। वह नाइकड़ा/नायक समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। उनके परिवार के दोनों बड़े सदस्य यानि वो और उनके पति, मजदूरी करके पारिवारिक आय जुटाते हैं। घर के पास मिलने वाली मज़दूरी बेहद कम है। ऐसे में उन्हें गुजरात जाकर मजदूरी करनी पड़ती है।
किसी और परिवार की तरह उन्हें भी घर के हर छोटे-बडे़ कामों में पानी की जरूरत पड़ती है। चाहे नहाना हो, खाना हो या पशुओं को पानी पिलाना हो। ऐसे में उन्हे पानी के भंडारण की आवश्यकता होती है। मगर इसके लिए उनके पास पर्याप्त बर्तन तक नहीं हैं। वह बताती हैं,
‘‘हमारे पास इतने बर्तन भी नही हैं की एक साथ लाकर रख दे। घर में एक-दो गुंडी (पानी भरने का बर्तन) बस है जिसमें बार-बार पानी भरना पड़ता है।’’
ऐसे में हर बार वह पूरा पहाड़ उतरकर नदी किनारे जाती हैं। फिर बर्तन में पानी भरकर वापस पूरा पहाड़ चढ़ती हैं और पानी अपने घर लाती है। इस जोखिम भरे काम में कई बार तिरली गिर भी चुकी हैं जिसमें उन्हें चोंटे भी आयी हैं। फिर भी वे इस काम को करने के लिए मजबूर है।
तिरली बाई की उम्र 35 साल के आस-पास होगी। इतनी कम उम्र में भी उनके हाथ-पैर और हड्डियों में दर्द की समस्या हमेशा बनी रहती है। मगर ये कहानी अकेले तिरली की नही है। सोंडवा तहसील के अधिकांश गांव इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार झंडाना में कुल 100 परिवार रहते हैं। इस गांव की जनसंख्या 655 है, जिसमें 312 पुरुष हैं जबकि 343 महिलाएं हैं। पानी भरने का काम अमूमन एक घरेलू काम माना जाता है, जो अक्सर इन महिलाओ के जिम्में आता है। भले ही उसके लिए उन्हे घर से बाहर जाना पड़ता हो।
राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाके की महिलाएं हर दिन 6-8 घंटे पानी भरने में लगाती हैं। वहीं नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के अनुसार दूरस्थ क्षेत्र से पेयजल लाने में ग्रामीण परिवार की 84.1 प्रतिशत महिला एवं 14.1 प्रतिशत पुरुष अपना योगदान देते हैं।
इस क्षेत्र में हालत यह हैं कि यहां की कई गर्भवती महिलाएं भी इन जोखिमों से गुजरकर पानी लाने के लिए मजबूर हैं। जहां प्रदेश के अधिकतर हिस्सों में पानी का संघर्ष गर्मी के दिनों में शुरू होता है वहीं झंडाना में नल कनेक्शन न होने के चलते यह संघर्ष साल के 12 महीने चलता है।
झंडाना गांव की इन महिलाओं को शायद पानी के लिए इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती अगर यहां सरकारी योजनाएं प्रभावी तौर पर क्रियांवित हो जातीं।
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सोंडवा से कोसों दूर सरकार की योजनाएं
हर घर तक जल पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने 2019 में जल जीवन मिशन लॉन्च किया था। फरवरी 2025 में लोकसभा में जल शक्ति राज्य मंत्री वी. सोमन्ना ने बताया कि मिशन की शुरूआत से पहले देश में केवल 3.23 करोड़ ग्रामीण घरों में नल कनेक्शन थे। 28 मार्च 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार देश के 80.32% (15,55,46,429) ग्रामीण घरों में नल कनेक्शन पहुंच चुका है। मगर सोंडवा आज तक इस आंकड़े का हिस्सा नहीं बन सका।
अगर जल जीवन मिशन डैशबोर्ड के आंकड़ों को माने तो झंडाना ग्राम पंचायत के कुल 130 घरों में से मात्र 3 घरों में ही नल कनेक्शन उपलब्ध है। इसका सीधा आशय है कि झंडाना पंचायत के मात्र 2 प्रतिशत घरों में ही नल जल योजना के तहत कनेक्शन पहुंचा है।
तिरली बाई के घर के आस-पास न तो कोई हैंडपंप है ना ही जल प्रदाय की कोई और सुविधाएं। जब पंचायत दर्पण डैशबोर्ड में इन सुविधाओं की जानकारी ली गई तो वहां इससे संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नही थी। झंडाना ग्राम पंचायत में हुये निर्माण कार्यो को देखने पर पता लगा कि पूरी पंचायत में सिर्फ एक जलाशय मौजूद है। स्थानीय लोगों के मुताबिक यह जलाशय अधिकांश समय सूखा रहता है।
इस पूरे मसले पर हमने स्थानीय एसडीएम से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन उनसे कोई जवाब नहीं प्राप्त हुआ। इसके बाद हमने जिला कलेक्टर डॉ अभय अरविंद बेड़ेकर से संपर्क किया, उन्होंने हमें जिला पंचायत सीईओ से बात करने के लिए कहा। लेकिन हमें वहां से भी कोई जवाब नहीं मिला।
साथ ही कलेक्टर कहते हैं कि चूंकि सोंडवा पठार पर स्थित है इसलिए वहां बोरवेल से भी पानी नहीं निकलता। वे बेहद नाराजगी के साथ कहते हैं कि हमारे द्वारा इसे जबरन मुद्दा बनाया जा रहा है।
अलीराजपुर में लंबे समय से आदिवासियों के बीच काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता राहुल बनर्जी कहते हैं कि इस समस्या के समाधान के रूप में नर्मदा नदी के पानी को फिल्टर करके पंप की सहायता से घरों तक पहुंचाया जा सकता है। वह कहते हैं कि सरदार सरोवर बांध बनने के बाद यह हिस्सा डूब प्रभावित हो गया जिससे पठार पर अलग-अलग जगह बिखरी हुई आबादी रह रही है। यह पठार नर्मदा नदी से घिरे हैं ऐसे में इन तक हैण्डपंप लगाने की गाड़ी भी नहीं पहुंच सकती।
स्थानीय कलेक्टर डॉ बेड़ेकर की बातों को सुनते हुए याद आता है कि जब हम अलीराजपुर से लौटे उसके एक महीने बाद ही मुख्यमंत्री मोहन यादव ने नर्मदा-क्षिप्रा मल्टीपर्पज माइक्रो लिफ्ट इरिगेशन परियोजना का उद्घाटन किया है। इस परियोजना के तहत निमाड़ क्षेत्र के बड़ेल गांव में स्थित ओंकारेश्वर जलाशय से नर्मदा का पानी 150 किमी से भी ज़्यादा दूर मालवा के उज्जैन और शाजापुर जिले में पहुंचाया जाएगा। इस परियोजना की लागत 2,489.65 करोड़ रूपए है।
यानि सरकार निमाड़ से पानी मालवा तो पहुंचा सकती है मगर नर्मदा से झंडाना पहुंचाने में पठार आड़े आ जाता है।
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संवैधानिक मूल्य और झंडाना
शासन का विकेंद्रीकरण और पंचायती संस्थाओं का सशक्तिकरण भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों (डीपीएसपी) में शामिल है। इसी बात को ध्यान में रखते हुये 1993 में केंद्र सरकार ने संविधान का 74वां संशोधन किया। इस संशोधन में पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया। इसका सीधा आशय था कि भारत के आम नागरिक अपनी रोजमर्रा की मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने वाले प्रतिनिधि का चुनाव कर सके। इन जरूरतों की मांग कर सके और अपने प्रतिनिधि से संवाद कर सके।
साथ ही संविधान में अनुच्छेद 21 एक मौलिक अधिकार है जो भारतीय नागरिकों को ही नहीं, बल्कि भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त है। यह अधिकार हमें गरिमामय जीवन जीने की आज़ादी देता है, साथ ही स्वच्छ पानी और पर्यावरण में रहने का अधिकार देता है। लेकिन संविधान लागू होने के 75 वर्ष बाद भी झंडाना के लोगो की जिंदगी इन अधिकारों से दूर है। पराकाष्ठा तो इस बात की है कि उन्हे संविधान की इस बात से पूरी तरह अंजान है और वो इस स्थिति में जीने के लिए आदी हो चुके है।
नोट - यह स्टोरी विकास संवाद द्वारा प्रदान की गई ‘संविधान संवाद मीडिया फैलोशिप’ के तहत की गई है।
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