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जलवायु परिवर्तन से चावल, गेहूं की फसल में 10 फीसद तक गिरावट संभव

बढ़ते तापमान के चलते साल 1901 के बाद साल 2024 सबसे अधिक गर्म रहा. ग्लोबल वार्मिंग के इस असर से भारत में फसलों के उत्पादन में खासी गिरावट देखने को मिल सकती है. 

By Manvendra Singh Yadav
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Kashmir's rice fields wither amid rising temperatures and water scarcity
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भारत के गेहूं, चावल उत्पादन में 6 से 10 प्रतिशत की कमी देखने को मिल सकती है। यह अनुमान भारतीय मौसम विभाग (IMD) के वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा लगाया गया है। उनके अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते देश के लाखों लोगों तक किफायती भोजन पहुंचने में कठिनाई हो सकती है।

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भारत ने 2023-24 फसली वर्ष में गेहूं उत्पादन में 11.3 करोड़ टन के शीर्ष को छुआ। यह विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 14 प्रतिशत है। जबकि इसी वर्ष में चावल का उत्पादन 13.7 करोड़ टन रहा। चावल और गेहूं देश की 1.4 अरब आबादी का मुख्य भोजन है। जिसमें से 80 फीसदी जनसंख्या सब्सिडी व अन्य सरकारी योजनाओं के द्वारा दिए जाने वाले अनाज पर निर्भर रहती है।

इस पर भारत मौसम विज्ञान विभाग के डायरेक्टर मृत्युंजय महापात्रा कहते हैं

"जलवायु परिवर्तन 6 से 10 प्रतिशत तक गेहूं और चावल दोनों की फसल को कम करेगा। जिससे खाद्य सुरक्षा और किसानों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।"

मौसम विभाग का अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति और तीव्रता भी कम हो रही है। यह भूमध्यसागरीय क्षेत्र से उभरने वाली मौसम प्रणालियां हैं जो उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों में बारिश और बर्फबारी लाती हैं। इसका सीधा मतलब है कि बारिश और सर्दी में कमी देखने को मिल सकती है, जिससे फसलों के उत्पादन में कमी हो सकती है।

जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) के अनुसार, भारत में गेहूं की पैदावार में साल 2100 तक 6-25 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है। सिंचित चावल की पैदावार में साल 2050 तक 7 प्रतिशत और साल 2080 तक 10 प्रतिशत की कमी आने की उम्मीद है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार भारत की 70 फीसद ग्रामीण आबादी कृषि कामों पर निर्भर करती हैं। इसमें ज्यादातर संख्या छोटे और सीमांत किसानों की है, जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम भूमि है।

आईएमडी के द्वारा दिए आंकड़ों से पता चलता है कि 1901 से 2018 के बीच भारत का तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। वैश्विक रुझानों की मानें तो साल 2024 भारत में 1901 के बाद से अब तक सबसे गर्म साल रहा था। इस साल का औसत तापमान अभी तक के औसत या कहें कि दीर्घकालिक औसत से 0.90 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।

जलवायु परिवर्तन पर बात करते हुए आईएमडी के सचिव एम रविचंद्रन बताते हैं कि इससे आगामी भविष्य में हिमालय और उसके नीचे मैदानी इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों को पानी का गंभीर संकट पैदा हो सकता हैं।

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