मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित RKDF University नासा से जुड़ी हुई एक कंपनी के साथ मिलकर वातावरण से कार्बन-डाई-ऑक्साइड कम करने के लिए शोध और टेस्टिंग करेगी. नासा से जुड़ी हुई कंपनी यूनाइटेड सेमीकंडक्टर एलएलसी (USLLC) और भोपाल के इस निजी विश्वविद्यालय के बीच एक एमओयू साइन किया गया है जिसके तहत यूएसएलएलसी आने वाले दिनों में इस विश्व विद्यालय के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेगा. इन तकनीकों का उपयोग करके यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता वातावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड खींचकर उसे बायो डीज़ल बनाने और उर्जा पैदा करने सहित अन्य कार्यों में उपयोग करेंगे. इसके अलावा सौर उर्जा से बड़े पैमाने पर बिजली उत्पन्न करने का काम भी विश्वविद्यालय में किया जा रहा है. हमने RKDF University के इन शोधकर्ताओं से बात करके इस बारे में और अधिक जानकारी लेने का प्रयास किया.
सौर उर्जा से बिजली पैदा करना
सेवानिवृत्त भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (IES) अधिकारी डॉ. विनोद कृष्ण सेठी वर्तमान में RKDF University में डायरेक्टर जनरल रिसर्च के रुप में कार्य कर रहे हैं. वह हमें यूनिवर्सिटी में लगे बड़े से सोलर प्लांट को दिखाते हैं. उनके साथी इस प्लांट के माध्यम से बिजली पैदा करने का काम कर रहे हैं. डॉ. सेठी हमें समझाते हुए कहते हैं,
“यह प्लांट सौर उर्जा को इकठ्ठा कर उससे बिजली उत्पादन करने का काम करता है. सूरज निकलने पर इसे फोकस किया जाता है ताकि सूरज की किरण सीधे इस सोलर पैनल पर पड़कर पानी को गर्म कर सके. इससे भाप बनती है जिससे टर्बाइन को घुमाया जाता है जिससे बिजली उत्पन्न होती है.”
सेठी बताते हैं कि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से ज़रिये यूएस से मिले सेलों में इस बिजली को स्टोर किया जाता है जिसका उपयोग बाद में किया जा सकता है. डॉ. सेठी बताते हैं कि यह सेल वर्तमान में उपयोग हो रही लीथियम बैट्री से अलग हैं अतः इससे पर्यावरण का नुकसान नहीं होता है.
बीते 8 सालों से इसके लिए कर रहे हैं काम
डॉ सेठी बताते हैं कि उर्जा उत्पन्न करने और पर्यावरण प्रदुषण कम करने के विकल्प पर उनका विभाग पहले से काम कर रहे हैं. इससे पूर्व साल 2015 में यूएस के रेंससेलर पॉलिटेक्निक संस्थान (Rensselaer Polytechnic Institute) के साथ हुए एमओयू के तहत उन्होंने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर काम किया था. मार्च 2023 के बाद से नासा से जुड़े हुए डॉ. पार्थ एस दत्ता के सहयोग से उन्होंने यूएसएलएलसी के साथ काम करना शुरू किया है.
बायो डीज़ल और मेथेनॉल का उत्पादन हो सकेगा संभव
डॉ सेठी कहते हैं, “क्लाइमेट क्राइसिस से निपटने के लिए 2 स्तरों पर काम करना होगा. पहला मिटिगेशन और दूसरा एडाप्टेशन. हम मिटिगेशन पर काम कर रहे हैं ताकि वायुमंडल में कार्बन कंटेंट कम किया जा सके.”
डॉ. सेठी कहते हैं कि मिटिगेशन पर काम करते हुए अभी उनका फोकस वातावरण से कार्बन-डाई-ऑक्साइड कैप्चर करके उसका उपयोग बायो डीज़ल बनाने में करने का है. वह कहते हैं कि हम वातावरण से कार्बन कैप्चर करने के बाद उसकी सहायता से एक शैवाल (Algae) बनाने पर हमारा बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट काम कर रहा है. यह शैवाल थर्मल पॉवर प्लांट के ऐश पौण्ड में बढ़ सकेगा जिसकी मदद से अच्छी क्वालिटी का बायो डीज़ल बनाया जा सकेगा.
डॉ. सेठी हमें कैप्चर्ड कार्बन के अन्य फायदे भी बताते हैं. वह कहते हैं कि इसकी सहायता से मेथेनॉल भी बनाया जा सकता है.
“कार्बन-डाई-ऑक्साइड से मेथेनॉल बनाने के लिए उत्प्रेरक (catalyst) का इस्तेमाल किया जाता है. यह उत्प्रेरक बनाना भी एक कठिन प्रक्रिया है जिसके लिए हम यूएस की इस कंपनी से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेंगे.” मेथेनॉल का उपयोग पेंट, कपड़े और सिन्थेटिक फेब्रिक बनाने सही कई कामों में किया जाता है.
इसके अलावा इस कार्बन-डाई-ऑक्साइड से RKDF University के शोधकर्ता बायोचार (Biochar) बनाने पर भी काम करेंगे. इसका उपयोग खेतों में मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ने में किया जा सकता है.
डॉ. सेठी के अनुसार, “बायोचार के इस्तेमाल से हम खेतों में कीटनाशकों और उर्वरकों के इस्तेमाल को कम कर सकते हैं. यह पर्यावरण के लिए लाभकारी होगा.”
आरकेडीएफ़ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता हमसे बात करते हुए बताते हैं कि कार्बन कंटेंट को कैप्चर करके उसका इस्तेमाल बिल्डिंग मटेरियल के रूप में भी किया जा सकता है. “यदि कार्बन डाई ऑक्साइड को कैप्चर करके उसे कांक्रीट में मिलाया जाए तो आरसीसी मज़बूत मिलती है.” डॉ. सेठी कहते हैं.
इस प्रोजेक्ट का पहला ट्रायल सिंगरौली के थर्मल पावर प्लांट में किया जाएगा. यहाँ प्लांट से निकलने वाली कार्बन-डाई-ऑक्साइड को कैप्चर किया जाएगा.
थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस बनाने पर काम
विश्विद्यालय के साथ यूनाइटेड सेमीकंडक्टर एलएलसी ने 3 वर्ष का एमओयू साइन किया है. इसके अंतर्गत जहाँ एक ओर कार्बन कैप्चर करने और उसे इस्तेमाल करने के तरीके पर काम हो रहा है वहीँ दूसरी ओर थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस बनाने के लिए भी विश्विद्यालय प्रयास कर रहा है. थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस असल में तापमान के अंतर पर काम करते हैं. यह तापमान को उर्जा में बदलने का काम करते हैं.
डॉ. सेठी के अनुसार गाँव में इस तरह के उपकरणों की बेहद आवश्यकता है. यदि आप किसी ऐसे उपकरण को चूल्हे के ऊपर भी रख देंगे तो उससे बिजली उत्पन्न हो सकती है. वह बताते हैं कि यह सोलर पीवी (Solar Photovoltic) से भी अधिक फायदेमंद है क्योंकि धूप न रहने पर आप सोलर पैनल का इस्तेमाल नहीं कर सकते जबकि थर्मोइलेक्ट्रिक उपकरण केवल तापमान के अंतर पर ही बिजली उत्पन्न करता है.
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