भोपाल के शिवाजीनगर स्थित जय प्रकाश ज़िला अस्पताल में सुबह से मरीज अपने परिजनों के साथ ओपीडी की कतार में खड़े हुए हैं. अन्दर जाने पे वार्ड में भर्ती मरीज़ दिखाई पड़ते हैं जिनको जांचने के लिए कुछ ‘युवा स्वास्थ्यकर्मी’ लगे हुए हैं. वह एक-एक करके मरीजों के पास जाकर बातचीत का सिलसिला शुरू करने के लिए “क्या हाल हैं?” जैसा सामान्य सवाल पूछते हैं. मगर कोई भी मरीज़ इसका सकारात्मक उत्तर नहीं देता है. दोपहर होते-होते ओपीडी के मरीज़ कम हो जाते हैं और वार्ड में भर्ती मरीज़ कुछ बढ़ी हुई संख्या में दिखते हैं. मगर सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि जो ‘युवा स्वास्थ्यकर्मी’ सुबह दिखाई दे रहे थे वह अब नहीं हैं. अस्पताल में गिनी-चुनी संख्या में नर्सिंग स्टाफ दिखाई देता है.
असल में यह नज़ारा मध्यप्रदेश में चल रही नर्सों की हड़ताल के कारण है. बीते 5 दिनों से भोपाल सहित प्रदेश के कई हिस्सों में नर्सिंग स्टाफ़ अपनी दससूत्रीय माँगों को लेकर हड़ताल में है. उनका कहना है कि उन्हें सेकेण्ड ग्रेड वेतन दिया जाना चाहिए इसके अलावा सातवें वेतनमान का लाभ उन्हें मिलना चाहिए. कोलार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में नर्सिंग ऑफिसर के रूप में कार्यरत मनोरमा सोंधिया कहती हैं,
“कोरोनाकाल में जब लोग अपने परिजानों को छोड़कर जा रहे थे तब हम ही उनके साथ खड़े हुए थे और कोई नहीं था. उस दौरान सरकार ने हम पर फूल बरसाए थे मगर अब सरकार हमें भूल गई है क्या? हम 5 दिनों से धरने पर बैठे हुए हैं मगर हमारी मांगों पर अब तक कोई विचार भी नहीं किया गया है.”
धरने पर बैठी हुई नर्सों का कहना है कि जो नर्स रात में ड्यूटी करती हैं उन्हें डॉक्टरों की तरह ही रात्रिकालीन भत्ता दिया जाना चाहिए. सोंधिया कहती हैं कि सरकारी अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों के ऊपर काम का बोझ ज़्यादा है मगर फिर भी वह पूरी लगन से अपना कार्य करती हैं ऐसे में उनकी मांगों को अनसुना किया जाना दुखद है.
“एक नर्स को 20 से 30 मरीज़ देखने पड़ते हैं. हम चाहते हैं इसमें भी सुधार आए.”
हड़ताल से मरीज़ परेशान
नर्सो के इस तरह से हड़ताल पर जाने से अस्पतालों के हालात काफी बिगड़ गए हैं. लोगों को इलाज में दिक्कत जा रही है जिससे कुछ मरीज़ दुखी हैं तो वहीँ कुछ गुस्सा. भीम नगर से आए हुए रमेश सेन की पत्नी बीते दिनों दुर्घटना का शिकार हो गई जिससे उनके पैर में गहरी चोट आ गई है. वह बीते चार दिन से अस्पताल में भर्ती हैं मगर सही इलाज न मिलने के चलते स्थिति जस की तस है.
“मेरी पत्नी दिनभर तड़पती रहती है मगर उसे देखने वाला कोई नहीं है. दिन भर दर्द में तड़पते रहने के बाद थक कर सो जाती है. मगर उठने पर वही दर्द शुरू हो जाता है. मुझे अस्पताल वाले कभी इधर दौड़ाते हैं कभी उधर मगर सही इलाज कोई नहीं कर रहा है.” यह कहते हुए रमेश रो पड़ते हैं.
भोपाल के ही रहने वाले विनोद पेशे से ड्राइवर हैं. बीते हफ्ते के मंगलवार को जब वह अपने काम से लौटे तो उन्हें अपनी तबियत कुछ नासाज़ मालुम हुई. बुधवार को जब तबियत और बिगड़ी तो उन्होंने एक प्राइवेट डॉक्टर को दिखाया. मगर फिर भी हालत में सुधार न होने पर उन्होंने जेपी अस्पताल का रुख किया. यहाँ आकर उन्हें पता चला कि उनके शरीर में खून की अत्यधिक कमी हो गई. लगभग एक हफ्ते से भी ज़्यादा समय तक भर्ती रहने के बाद शुक्रवार, 14 जुलाई को उन्हें छुट्टी मिली है. वह बताते हैं,
“यहाँ हालात बहुत ख़राब हैं. मरीजों का ख्याल रखने के लिए कोई भी नहीं है. मेडिकल कॉलेज के छात्रों से काम करवाया जा रहा है. वह थोड़ा बहुत काम तो कर देते हैं मगर नर्सों की कमी को पूरा नहीं कर सकते. यदि कोई गंभीर मरीज़ इस हालत में आ जाए तो उसका जीवन संकट में पड़ जाएगा.”
हड़ताल कर रही एक नर्स विनोद की इस बात को स्वीकार करती हैं. वह कहती हैं, “मरीजों को इंजेक्शन लगाने का काम छात्रों से करवाया जा रहा है. यह वही छात्र हैं जिनकों हम सिखाते हैं. वे लोग मरीज को खुद से देखने के लिए पूरी तरह से सक्षम नहीं हुए हैं मगर फिर भी प्रशासन उनसे काम करवा रहा है.” हड़ताल कर रही नर्सों की एक माँग नर्सिंग के विद्यार्थियों का स्टाइपेंड बढ़ाकर 8 हज़ार रुपए करना भी है.
नर्सिंग ऑफिसर असोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष रमेश जाट हमसे बात करते हुए कहते हैं कि
"कोरोना काल के दौरान नर्सिंग स्टाफ़ को 10 हज़ार रुपए देने का वादा सरकार ने आज तक नहीं पूरा किया है. सरकार को उनकी माँगों को सुनते हुए तत्काल वेतनमान में वृद्धि सहित समस्त माँगे मान लेनी चाहिए."
हमने अस्पताल की हालत पर अस्पताल प्रशासन का पक्ष जानने के लिए लोक शिकायत अधिकारी और सिविल सर्जन डॉ. राकेश श्रीवास्तव से बात करनी चाही मगर उन्होंने रिपोर्टर से बात करने से साफ़ इनकार कर दिया.
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