विश्व विरासत एलोरा गुफाओं के समीप वर्ष 1974 से स्थापित जैन कीर्ती स्तंभ (Jain Kirti Stambh) को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) हटाने की तैयारी में जुट गया है। एएसआई का कहना है कि यह बिना परमिशन के बनाया गया था। इससे एलोरा केव्स (Ajanta Ellora Caves) का व्यू खराब होता है और इसके आस पास कई स्ट्रीट वेंडरों ने कब्ज़ा कर रखा है जिससे यह भद्दा लगता है। क्योंकि यह जगह एक विश्व धरोहर है, कोई भी निर्माण यहां नहीं किया जा सकता। जैन समाज ने इसका विरोध किया है। उनका कहना है कि यह 48 वर्षों से यहां है, अचानक यह बुरा क्यों लगने लगा। महावीर जयंती के अवसर पर हम यहां से रैली निकालते हैं। इसे किसी कीमत पर हटाने नहीं दिया जाएगा।
क्या है जैन कीर्ती स्तंभ?
कीर्ती स्तंभ का निर्माण 48 साल पहले भगवान महावीर के 2500 वे निर्वाण उत्सव के उपलक्ष्य में गुफाओं के एंट्रेंस पर 1974 किया गया था। पिलर पर जियो और जीने दो का नारा लिखा गया है। इसके ऊपर टाईम और टेंपरेचर दिखाने वाली घड़ी है। यह अहिंसा का स्तंभ है। यहां से महावीर जयंती के अवसर पर जैन समाज के लोग इकट्ठे होकर प्रोसेशन निकालते हैं और झंडा वंदन करते हैं।
क्या है पूरा मामला?
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने एलोरा गुफाओं के मुख्य द्वार के सौंदर्यीकरण की योजना बनाई है। जिसके तहत वह गुफाओं तक सीधा रास्ता बनाना चाहता है। विभाग इस कार्य में करीब 48 साल से स्थापित जैन स्तंभ को बाधा मानता है। उसका मानना है कि चूंकी गुफाएं तीन धर्मों से संबंधित हैं, इसलिए उसके आगे किसी एक धर्म का स्तंभ होना अनुचित है। पुरातत्व विभाग जैन कीर्ति स्तंभ को हटाकर उसकी जगह देवनागरी में ‘विश्व धरोहर एलोरा गुफाएं’ और अंग्रेजी में विश्व धरोहर पत्थर अंकित नेमप्लेट लगाने का प्रस्ताव कर रहा है।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि जैन समाज को इसके बारे में सूचना तक नहीं दी गई। उन्हें न तो कार्रवाई के संबंध में जानकारी थी और ना ही उनसे कोई चर्चा हुई है। हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का दावा है कि उसने डाक से एक पत्र जैन गुरुकुल विद्या मंदिर ट्रस्ट के सचिव डॉ प्रेम कुमार पाटनी को भेजा है। किंतु डॉ पाटनी ने लोकमत समाचार से बातचीत में कहा कि उन्हें न तो कोई पत्र मिला है और ना ही इस संबंध में कोई सूचना मिली है।
एएसआई का कहना है कि चूंकि एलोरा की गुफाएं युनेस्को के द्वारा वर्ष 1983 से विश्व विरासत के रुप में दर्ज हैं और उसके सौ मीटर के दायरे में कोई भी निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता। इस कारण जैन समाज से जैन स्तंभ को हटाने का अनुरोध किया गया है।
एक तरफ पुरातत्व विभाग अपना पक्ष रख रहा है और दिसंबर 2021 के पत्र का हवाला दे रहा है, वहीं दूसरी तरफ 48 साल पुराने स्तंभ के बारे में निर्णय लेने की प्रक्रिया से फिल्हाल जैन समाज पूरी तरह से अनभिज्ञ है। जिससे समाज में चिंता और आश्चर्य का वातावरण हो गया है। समाज के लोगों ने इसका पुरजोर विरोध करने का फैसला किया है।
अजंता एलोरा का इतिहास
महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर से 30 कीलोमीटर दूरी पर वेस्टर्न घाट में है अजंता एलोरा की गुफाएं हैं। यहां भारत में जन्में तीन धर्मों के स्तंभ और गुफाएं हैं। हिंदू, बुद्ध और जैन धर्मों का समागम इस जगह पर देखा जा सकता है। यहां भारतीय संस्कृति की अनूठी झलक देखने को मिलती हैं, जहां विविध धर्म एक साथ इबादत करते हैं। 100 से ज्यादा चट्टानों को काटकर करीब चार साम्राज्यों में इस जगह का विकास हुआ। यहां तीन धर्मों के एक साथ होने का एक कारण यह है कि जैन सम्राट कि पत्नी का शिव को पूजना और उनके बेटे का बुद्ध धर्म का अनुयायी होना। युनेस्को ने 1983 में इसे विश्व विरासत घोषित कर दिया था।
यहां जैन धर्म की मौजूदगी
यहां पर जैन गुफाएं 9वी और 10 वी सदी में बनाई गई थी। यादव वंश ने जैन गुफाओं का निर्माण किया था। 34 शैलकृत गुफाओं में 1 से 12 तक बौद्धों तथा 13 से 29 तक हिन्दुओं और 30 से 34 तक जैनों की गुफाएं हैं। इंद्र सभा, जगन्नाथ सभा व छोटा कैलाश गुफाएं सबसे प्रसिद्ध जैन गुफा हैं।
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