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मध्यप्रदेश में बदहाल पशु चिकित्सा व्यवस्था को उबारती पशु सखियां

अक्सर पशुओं के बीमार होने पर पशुपालक इन्हे आवारा छोड़ देते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के मंडला जिले की पशु सखियां गांव के पशुओं की देखभाल करके इस समस्या का समाधान और अपने जीवन के नए मायने तलाश रही हैं।

By Chandrapratap Tiwari
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भारत विश्व में ज़रुरी दूध की 25 फीसदी आपूर्ति करते हुए आज दुग्धोत्पादन में पहले स्थान पर आता है। 2019 की गणना के मुताबिक़ भारत में कुल 19.2 करोड़ मवेशी हैं। मध्यप्रदेश में यही संख्या 1.88 करोड़ हो जाती है।अक्सर इन पशुओं के बीमार होने पर पशुपालक इन्हे आवारा छोड़ देते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के मंडला जिले की पशु सखियां गांव के पशुओं की देखभाल करके इस समस्या का समाधान और अपने जीवन के नए मायने तलाश रही हैं। पशु सखी बन कर सुखमनिया जैसी कई महिलाओं को आत्मसम्मान और आत्मविश्वास मिला है कि, वे भी अपनी दहलीज लांघ कर कुछ बेहतर कर सकती हैं। आइये जानते हैं सुखमनिया और उर्मिला की कहानी जो पशुओं का इलाज करके अपने लिए आत्मसम्मान और परिवार के लिए अतिरिक्त आय कमातीं हैं। 

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पशु सखी बन उर्मिला ने पाई आजीविका तो सुकमनिया को मिली जीवन की नई परिभाषा 

पशुओं की चिकित्सा को लेकर मौजूद समस्याओं को सीमित करने के लिए मध्यप्रदेश में WOTR (Watershed Organisation Trust) नाम की संस्था ने मंडला जिले में एक प्रयोग किया है। WOTR ने मंडला के 52 गांवों में 46 पशु सखियों को प्रशिक्षण दिया है। ये पशु सखियां गांव में पशुपालकों के पास जाकर पशुओं का टीकाकरण, इलाज, और स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उठाती हैं।

मंडला के लोहारी गांव की सुखमनिया मार्को बतातीं हैं कि वो बहुत पढ़ी लिखी नहीं हैं। उन्हें लगता था कि वो अपने जीवन में कुछ बेहतर नहीं कर पाएंगी, और घर की चारदीवारी तक ही महदूद रह जाएंगीं। लेकिन 3 वर्ष पहले उन्होंने WOTR द्वारा कराई गई पशु सखी की ट्रेनिंग में भाग लिया और पशु सखी बनीं। पशु सखी के तौर पर अपने अनुभवों को साझा करते वक्त सुकमनिया उत्साहित होकर कहतीं हैं कि,

पशु सखी ट्रेनिंग ने मेरे जीवन को पूरी तरह बदल दिया है। पहले मुझे लगता था कि कम पढ़ी लिखी होने की वजह से हमें कोई काम नहीं मिलेगा। लेकिन ट्रेनिंग के बाद आज मैं पशुओं की देखभाल करतीं हूं, मैंने गाय-भैंसों को बॉटल तक चढ़ाई है। इसके अलावा मैं धार में पशु सखियों को ट्रेनिंग देने भी गई थी। पशु सखी बनने के बाद अब मैं एक आजाद चिड़िया की तरह महसूस करती हूं। 

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सबसे आगे वैक्सीन भरती हुई सुखमनिया, उनके ठीक बाद उर्मिला  

मंडला के निवास ब्लॉक के पायली गांव की उर्मिला भवेदिया भी पिछले तीन सालों से पशु सखी का काम कर रहीं हैं। उर्मिला बतातीं हैं कि उनका एक बड़ा परिवार है। उनके परिवार में उनके पति, सास-ससुर, देवर-देवरानी, और बच्चे हैं। पशु सखी के रूप में उन्हें आय का एक विकल्प मिल गया है। 

उर्मिला पशुओं का टीकाकरण और इलाज करतीं हैं जिससे उन्हें ठीक-ठाक आय प्राप्त हो जाती है। एक टीकाकरण पर उर्मिला को 2 रुपये मिलते हैं, साथ ही एफएमडी (फुट माउथ डिजीज) टीकाकरण पर सरकार की ओर से भी प्रोत्साहन मिलता है। उर्मिला बतातीं हैं कि उन्हें आमतौर 1500-2000 तक की मासिक आय हो जाती है। 

हालांकि पशु सखियों के सफर में काफी चुनौतियां भी आईं हैं। इस परियोजना की शुरुआत में गांव वाले महिलाओं से पशुओं का उपचार कराने में झिझकते थे। अपने शुरुआती अनुभव बताते हुए उर्मिला कहतीं हैं कि,

शुरू-शुरू में गांव के लोग हमसे अपने पशुओं का इलाज करने में कतराते थे। उन्हें संशय रहता था कि एक महिला उनके पशु का ठीक से इलाज कर पाएगी या नहीं। लेकिन समय के साथ हमारी स्वीकार्यता बढ़ी है। आज कई गांव वाले खुद से हमारे पास अपनी समस्याओं को लेकर आते हैं। 

इस दौरान मेरे परिवार वालों, मेरे सास-ससुर ने भी मुझे काफी प्रोत्साहन दिया है। इसके बगैर मैं शायद यह काम इस तरह से नहीं कर पाती। 

मंडला और धार में हैं WOTR की 52 पशु सखियां 

इस दौरान ग्राउंड रिपोर्ट की बात WOTR के रीजनल मैनेजर अखिलेश पांडेय से बात हुई। अखिलेश ने बताया कि WOTR की यह परियोजना अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के सहयोग से चलाई जा रही है। इसमें उनकी टीम महिलाओं को ट्रेनिंग देती है। 

पशु सखियों का चुनाव करते वक्त अखिलेश की टीम कुछ मौलिक चीजों का ध्यान रखती है मसलन इन महिलाओं को पशुपालन का सामान्य अनुभव हो, और ये कम से कम 8वीं तक पढ़ी होनी चाहिए। 8वीं पास होने की शर्त की वजह है, कि ये महिलाऐं दवाओं के पीछे लिखी जानकारी आसानी से पढ़ व समझ पाएं। अखिलेश बताते हैं आज मंडला में 46 और धार जिले में 8 पशु सखियां ट्रेनिंग ले चुकीं हैं, और काम कर रहीं हैं।  

WOTR की टीम इन पशु सखियों को 5 दिन की ट्रेनिंग देती है। इसमें उन्हें विभिन्न रोगों, टीकाकरण, इलाज, और पशु के लिए विभिन्न आवश्यक स्थितियों के बारे में समझाया जाता है। इसके बाद भी शुरुआती 6 महीनों में पशु सखियों को बड़े पशुओं के इलाज की मनाही होती है। जब एक बार WOTR की ट्रेनिंग टीम पूरी तरह आश्वस्त हो जाती, उसके बाद ही पशु सखियों को बड़े पशुओं के इलाज की इजाजत दी जाती है। पहली ट्रेनिंग के बाद हर 6 महीने में 3 दिन के ट्रेनिंग सेशन आयोजित कराए जाते हैं, और पशु सखियों के प्रदर्शन का आकलन भी किया जाता है। 

इसके अतिरिक्त पशु सखियों को स्पष्ट निर्देश होता है कि, अगर उनके सामने कोई जटिल प्रकरण मामला आता है, तो वे सीधे पशु का इलाज न करें। इसकी जगह उन्हें WOTR के लाइवस्टॉक मैनेजर या फिर शासकीय पशु चिकित्सक को सूचना देने का निर्देश दिया जाता है। इनमे से जो भी नजदीक होता है, पशु की चिकित्सा के लिए पहुंचता है। 

अखिलेश बताते हैं कि पिछले तीन सालों में पशु सखियों और प्रशासन के बीच बेहतर तालमेल स्थापित हो गया है। अब पशु सखियां सीधे सरकार से टीके और दवा लेतीं हैं, और कोई मुश्किल आने पर उनसे संपर्क करतीं हैं। कई बार चिकित्सा के लिए न पहुंच पाने की स्थिति में सरकारी पशु चिकित्सक खुद पशु सखियों की मदद लेते हैं और सामान्य उपचार सुनिश्चित करते हैं। 

इसी क्रम में ग्राउंड रिपोर्ट ने मंडला के नारायणगंज ब्लॉक के बबलिया ग्राम पंचायत के पशु चिकित्सालय की डॉ. अंजली सिंह मरावी से बात की। अंजली बताती हैं कि पहले ग्राम पंचायत में सीमित स्टाफ हुआ करता था। पशुओं की चिकित्स्कीय देखभाल के लिए पर्याप्त गौ-सेवक नहीं थे। अंजली के पास खुद कोई सहायिकाएं उपलब्ध नहीं थीं। इस वजह से गाँव के सभी पशुओं के स्वास्थ्य की देखरेख सुनिश्चित नहीं हो पाती थी। लेकिन पिछले 3 वर्षों से उन्हें पशु सखियों की पूरी मदद मिल रही है। 

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डॉ. अंजली मरावी के साथ मीटिंग में पशु सखियां 

अंजली बतातीं हैं कि पिछले तीन वर्षों में FMD, HS BQ (Hemorrhagic Septicemia and Black Quarter) और ब्रूसेला का पूरा टीकाकरण पशु सखियों ने ही किया है। इनमें से ब्रूसेला का टीकाकरण पशु सखियों ने अकेले किया है, और FMD, HS BQ टीकाकरण के लिए उन्हें 2-3 पशु सखियों के समूह बनाए थे जिन्होंने मिलकर यह टीकाकरण पूरा किया है। इसमें से FMD, और ब्रूसेला के टीकाकरण के लिए पशु सखियों को सरकार की ओर से मानदेय भी मिलता है। पशु सखियों की काबिलियत की मिसाल देते हुए डॉ. अंजली बतातीं हैं कि,

कई बार हमारे पास पशु सखियां अपने केस लेकर आतीं हैं, जिस पर हम उन्हें सुझाव देते हैं और सफल इलाज संभव हो पाता है। 6 महीने पहले ही मेरे पास शाम के वक्त बनार गांव का एक केस आया था, जो कि डिस्टोकिया का था। यह काफी चुनौती भरा प्रकरण था जिसमें एक बकरी का फीटस मर गया था और बकरी उसे बाहर नहीं निकाल पा रही थी। इसके लिए हमे फीटस को मैन्युअली निकालना पड़ता है। मैंने पशु सखी को प्रक्रिया समझाई और उन्होंने निर्देशों का पालन करते हुए सफलतापूर्वक यह ऑपरेशन किया।  

पशु सखियों की मदद से गांव के पशुओं की स्थिति में आया है सुधार 

राजस्थान के रहने वाले महेंद्र कुमार महावर, मंडला में WOTR की ओर से लाइवस्टॉक मैनेजर के तौर पर कार्य करते हैं। महेंद्र ने ही उर्मिला, सुकमनिया, और इलाके की अन्य कई पशु सखियों को प्रशिक्षण दिया है। महेंद्र बताते हैं कि आज पशु सखियां पशुपालकों के घर जातीं हैं उनके पशुओं के लिए शेड बनातीं हैं। पशुओं की सार (वो स्थान जहां गाय आदि रहतीं हैं) को चूने से पुतवाती है। 

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पशु सखियों को आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन की ट्रेनिंग देते महेंद्र 

पशु सखियां गायों के शरीर से किलनी (Tick कीट जो पशु की चमड़ी में चिपक कर खून चूसता है) निकालने के लिए तंबाकू के पानी का घोल तैयार कर के उसकी पुताई करना पशु पालकों को सिखातीं हैं। साथ ही पशु सखियां इन सभी गतिविधियों का लगातार जायजा भी लेतीं हैं। 

हालांकि पशु सखियों को लेकर गाँव वालों का रुझान हमेशा सकारात्मक नहीं था। शुरुआत में गांव वाले महिलाओं से पशु का इलाज करवाने में हिचकिचाते थे। इसके अलावा इलाज के दौरान किसी भी लापरवाही का दोष पशु सखियों पर मढ़ दिया जाता था। ऐसे ही एक वाकिये का जिक्र करते हुए महेंद्र बताते हैं कि, 

एक बार नारायणगंज के सिमरिया गांव में किसी व्यक्ति ने गलत दवाई बकरी को दे दी थी, इसके बाद बकरी की मृत्यु हुई, और उसका पूरा दोष पशु सखी शशि धूमकेति पर डाल दिया गया। इस घटना के बाद शशि बहुत निराश हो गई थी। हमने जब मामले की जांच की तो पाया शशि की गलती नहीं है। आज उसी पशु सखी, शशि ने अपने गांव में 15 गोट शेड बनवाए हैं। 

महेंद्र आगे कहते हैं,

पशु सखियां गांव-गांव जाकर लगातार पशुओं की सेहत का जायजा लेती हैं, उनकी टैगिंग करती हैं और डाटा कलेक्ट करतीं हैं ,इसका नतीजा यह निकला की पिछले 3 सालों में एक भी पशु की मृत्यु संचारी रोगों से नहीं हुई है। यहां तक की जब देश भर में लम्पी वायरस का प्रकोप था, मंडला की एक भी गाय इसकी शिकार नहीं बनीं क्यूंकि उनकी इम्यूनिटी पहले से ही बेहतर थी। 

इसी क्रम में हमारी बातचीत मंडला के जेवारा ग्राम के ज्ञान सिंह कुलस्ते से हुई। ज्ञान सिंह के पास 4 गाय हैं। ज्ञान सिंह पिछले तीन सालों से अपनी गायों का इलाज पशु सखियों से ही करा रहे हैं। ज्ञान सिंह बताते हैं कि उन्होंने पशु सखियों से इलाज करवाए और वो सफल रहे, इसी प्रकार बाद में विश्वास बनता चला गया। ज्ञान सिंह ने अपने हालिया अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि,

पिछले दिनों ही हमारी गाय को कई सारे घाव हो गए थे। पशु सखियों ने हमारी गाय का टीकाकरण किया, लगातार मलहम-पट्टी की, और हमारी गाय के घाव ठीक हो गए। हालांकि इन घाव के दाग अभी नहीं गए हैं। पशु सखियों से पहले हमे डॉक्टरों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था। पशु सखियों की वजह से हमारी गायों का इलाज सुलभ हो गया है। 

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अपने पशु को चारा डालते हुए ज्ञान सिंह 

बकौल WOTR मंडला के गांवों में पशु सखियों का प्रभाव उल्लेखनीय रहा है। मंडला के 2,061 पशुपालक उनकी विशेषज्ञता से लाभान्वित हुए हैं और 1,207 पशुपालक अपने पशुधन का उपचार प्राप्त कर रहे हैं। इस पूरी परियोजना के तहत 2,336 पशुओं को जरूरी देखभाल मिली है। महेंद्र बताते हैं कि इस कार्यक्रम के बाद इन गांवों में बकरियों की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है, और बीमारी के कारण पशुओं की मृत्यु की संख्या अब लगभग शून्य फीसदी हो गई है। 

A-HELP के तहत सरकार भी कराती है पशु सखियों की ट्रेनिंग 

देश भर में मवेशियों के लिए चिकित्स्कीय सुविधाओं की सुलभता चिंता का विषय है। 31 मार्च 2023 के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में अलग-अलग प्रकार के 69,202 वेटनरी यूनिट हैं। इनमें से मध्यप्रदेश में 2,712 पशु चिकित्सा की इकाइयां हैं, और कुल  3039 पंजीकृत पशु चिकित्सक है। 

इन आंकड़ों का सीधा गणित है कि मध्यप्रदेश में एक चिकित्सक पर 6,192 मवेशी निर्भर हैं, जो कि एक विशाल जिम्मेदारी है। मोबाइल वेटनरी यूनिट के संबंध में मध्यप्रदेश सरकार के एक दस्तावेज में यह स्वीकार भी किया गया है कि प्रदेश में 50,000 पशुओं पर एक वेटनरी यूनिट है, जो कि अपर्याप्त है। इस दस्तावेज में कहा गया है कि, पशु चिकित्सा से जुड़ी दिन भर में कम से कम 1000 कॉल हैं, जो कि अनुत्तरित रह जाती है। 

हालांकि पशुपालन और डेयरी विभाग ने (डीएएचडी) "A-HELP" (Accredited Agent for Health and Extension of Livestock Production) नाम से एक स्कीम शुरू की है। इसमें भारत सरकार के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के बीच एक एमओयू हस्ताक्षरित किया गया है। यह स्कीम मध्यप्रदेश समेत देश के अन्य कई राज्यों में शुरू हो चुकी है। इस स्कीम के तहत ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे पशुओं की बीमारी को नियंत्रित, और आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन इत्यादि कर सकें और अपनी आजीविका का सहारा खोज सकें। 

मध्यप्रदेश में ए-हेल्प की स्थिति जानने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट ने मध्यप्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी संचालनालय की अतिरिक्त उपसंचालक, डॉ स्वाति श्रीवास्तव से बात की। डॉ. स्वाति ने बताया कि,

मध्यप्रदेश में पशु सखियों का ए-हेल्प के रूप में प्रशिक्षण अभी भी जारी है। हमारा लक्ष्य 1300 पशु सखियों को प्रशिक्षण देने का है, जिसमें 997 पशु सखियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है, जो कि देश भर में सर्वाधिक है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (SRLM) पशु सखियां हमारे पास भेजता है जिनकी हम 16 दिन की ट्रेनिंग कराते हैं। इसके लिए नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड, आनंद से मास्टर ट्रेनर आते हैं, जिनका करिकुलम निर्धारित होता है। 

महेंद्र ने बताया कि मंडला में WOTR का प्रोजेक्ट 3 वर्ष और चलेगा। इस दरमियान WOTR की टीम पशु सखियों के लिए एक बिजनेस मॉडल तैयार करने का विचार कर रही है, ताकि ये महिलाएं और बेहतर तरीके से अपने पैरों पर खड़ी हो पाएं। 

हालांकि इन सरकारी-गैर सरकारी प्रयासों के बाद भी भारत में पशुओं और उनकी चिकित्सकीय उपलब्धता के बीच एक लंबा फासला है, जिसे पाटने के लिए ठोस एक्शन प्लान और प्रोत्साहन की दरकार है।

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