मार्च का महीना ख़त्म हो चुका था और अप्रैल आ गया था. हर रोज़ सूरज अपना ताप बढ़ाता जा रहा था. चुनावी मौसम में आसमानी मौसम ऐसे बदला कि भोपाल में मार्च के अंत में ही पारा 40 डिग्री के पार पहुँच गया. ऐसे में फ़सल में आग न लगे और सही दाम मिल जाए, इस गरज से मालवा में गेहूं की कटाई चालू है. खजूरी सड़क गाँव से पिपलिया धाकड़ जाने वाली सड़क के किनारे एक खेत में 35 साल की ललिता अस्ताया खेतों से कटाई के बाद ज़मीन पर गिरी हुई गेहूं की बालियाँ इकठ्ठा कर रही हैं. उनके साथ उनकी पड़ोसी कृष्णा प्रजापति (65) हैं.
मगर कृष्णा प्रजापति संतुष्ट नहीं नज़र आतीं. वो अपनी साथी ललिता से शिकायत करते हुए मालवी लहजे में कहती हैं,
“गेहूं नी मिलया, म्हारो भेजो ख़राब होई गयो. (गेहूं नहीं मिलने से मेरा दिमाग ख़राब हो गया.”
ललिता और कृष्णा पेशे से मज़दूर हैं. वे इस खेत से क़रीब 15 किमी दूर भोपाल ज़िला के अंतर्गत आने वाले बैरागढ़ में रहती हैं. दोनों ही भूमिहीन हैं. ऐसे में इन दिनों रोज़ अपने घर से निकल कर वह किसी भी खेत तक जाती हैं. यहाँ वे फ़सल की कटाई के बाद ज़मीन पर पड़ी हुई गेहूं की बालियों को चुनती हैं. उन्हें हाथ से मसल कर उनसे निकलने वाले गेहूं को घर से लाई हुई प्लास्टिक की एक बोरी में भरती हैं. इस तरह दिन भर में वो 5 से 6 किलो गेहूं इकठ्ठा कर लेती हैं.
मगर इतनी धूप में वो यह काम क्यों करती हैं? इसका जवाब देते हुए कृष्णा कहती हैं
“मज़दूरी है नहीं महंगाई बढ़ गई है, इसलिए बीनते हैं. बीनेंगे नहीं तो खाएँगे क्या?”
साल 2011 कि जनगणना के अनुसार भारत में 14 करोड़ 43 लाख 33 हज़ार 690 भूमिहीन कृषि मजदूर हैं. इनमें से 62.2 प्रतिशत महिलाएँ हैं. मौसम विभाग के अनुसार इस साल मध्यप्रदेश अत्यधिक हीटवेव्स का सामना करने वाला है. यूँ भी हाल ही में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में कहा गया कि हीटवेव्स से महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित होती हैं. यानि ललिता और कृष्णा के लिए स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है.
मगर ललिता के लिए अपने 4 सदस्यीय परिवार को गेहूँ का आटा खिलाना ज़्यादा महत्वपूर्ण है. हालाँकि उनके परिवार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के अंतर्गत राशन मिलता है. मगर वह इसे नाकाफी मानते हुए पूछती हैं,
“4 लोगों के लिए 20 किलो राशन मिलता है. आप ही बताइए इतने में पेट भर जाएगा?”
ऐसे में अपने परिवार के पोषण की ज़रूरत को पूरा करने के लिए उन्हें गर्म मौसम में भी बाहर निकलना ही पड़ता है. ललिता कहती हैं कि उन्हें घर और बाहर दोनों ही जगह काम करना पड़ता है. इस अत्यधिक मेहनत के कारण रात में सोते हुए उनके बदन में तेज़ दर्द होता है मगर वह इसका कुछ नहीं कर पातीं. उनके अनुसार,
“ज़्यादा गर्मी में हम भले ही मर जाएँ लेकिन ये काम करना ही पड़ेगा”
ललिता का दिन सुबह 5 बजे शुरू हो जाता है. वह उठकर सबसे पहले अपने परिवार के भोजन के लिए खाना पकाती हैं. इसके बाद वह क़रीब 8 बजे गेहूँ चुनने के लिए अपने घर से निकलती हैं. इस दौरान वह किसी भी खेत में घूम-घूमकर गेहूं चुनती हैं. बहुत बार पर्याप्त गेहूं न मिलने पर उन्हें कई खेतों में ऐसा करना पड़ता है. मगर हर बार यह सब इतना सरल नहीं होता. कई बार उन्हें अपमान भी झेलना पड़ता है,
“बहुत से पटेल (खेत के मालिक) अपने खेत में नहीं घुसने देते हैं. कभी-कभी तो हमें गाली देकर भी भगा देते हैं.”
गौरतलब है कि केन्द्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार देश भर के 80.10 करोड़ लोगों को पीडीएस के तहत राशन दिया जा रहा है. इसके लिए 5.45 लाख सरकारी राशन दुकान (Fair Price Shops) संचालित की जा रही हैं. केंद्र सरकार द्वारा संचालित अन्त्योदय अन्न योजना (AAY) के तहत हर परिवार को कुल 35 किलो राशन देने का प्रावधान है.
मगर कृष्णा बताती हैं कि उन्हें केवल 18 किलो अनाज ही मिलता है. उनके अनुसार कम आनाज की शिकायत करने की बात कहने पर भी दुकान वाले को कोई फर्क नहीं पड़ता,
“दुकानदार कहता है कि जा किसी से भी शिकायत कर दे.”
कृष्णा और ललिता दोनों ही अपनी आजीविका के लिए मज़दूरी पर आश्रित हैं. ललिता बताती हैं कि उन्हें सब्ज़ी के खेतों में निंदाई-गुड़ाई के लिए एक दिन के 120 से लेकर अधिकतम 220 रूपए मिलते हैं. ललिता कहती हैं,
“हमारी एक घंटे की मज़दूरी 25 से 30 रूपए हुई. आप बताइए इसमें घर चलाएँ, खुद का पेट भरें या बच्चों को खिलाएँ?”
केंद्र और राज्य सरकार द्वारा असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों को आर्थिक रूप से सबल बनाने के लिए केंद्र सरकार ने कई योजनाएँ लॉन्च की. प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना भी इनमें से एक थी. यह एक पेंशन योजना थी जिसमें असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 18 से 40 वर्ष के कामगार अपना पंजीकरण करवा सकते हैं. इस उम्र के कामगारों को 55 से 200 रूपए प्रति माह 60 वर्ष की आयु तक जमा करवाने होते हैं. सरकार भी इतना ही निवेश करती है. इसके बाद 60 वर्ष की उम्र के बाद इन कामगारों को सरकार की ओर से हर माह 3 हज़ार रूपए पेंशन मिलती है.
35 वर्षीय ललिता इस योजना का हिस्सा बन सकती हैं. मगर उन्हें इस योजना के बारे में पता भी नहीं है. वहीँ सरकार की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता के बारे में दोनों से पूछने पर कृष्णा कहती हैं कि उन्हें हर माह केवल 600 रूपए पेंशन के मिलते हैं.
कृष्णा जिस पेंशन योजना की बात कर रही हैं वह इंदिरा गांधी राष्ट्रिय विधवा पेंशन स्कीम है. इसके तहत केंद्र सरकार 40 वर्ष से अधिक की हर विधवा महिला जिसके पास बीपीएल कार्ड है, को 200 रूपए पेंशन देती है. राज्य सरकार इसमें 400 रूपए का योगदान देती है. इस तरह कुल 600 रूपए मिलते हैं.
यानी इन्हें प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना (PM-SYM) के बारे में न तो कोई जानकारी है और ना ही इस योजना का कोई भी लाभ मिल रहा है. हालाँकि स्थानीय सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर द्वारा मार्च 2021 को संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया गया कि मध्यप्रदेश में पीएम एसवाईएम के तहत कुल 1.23 लाख लोगों ने पंजीकरण करवाया है.
मगर इन योजनाओं के लाभ मिलने की चर्चा यहाँ हम कर क्यों रहे हैं? यह चर्चा इसलिए ज़रूरी है क्योंकि बकौल कृष्णा,
“हमें मज़दूरी में तो पैसे कम ही मिलते हैं. सरकार भी कोई मदद नहीं दे रही है ऐसे में किसी की भी तबियत बिगड़ जाने पर क़र्ज़ लेकर इलाज करवाना पड़ता है.”
कृष्णा कहती हैं कि उन्हें आयुष्मान भारत योजना का लाभ भी नहीं मिल रहा है. ऐसे में लगातार खुले वातावरण में काम करने वाली कृष्णा और ललिता जैसी महिलाओं के लिए जलवायु परिवर्तन एक खर्चीला फेनोमिना (phenomenon) बन जाता है. वहीँ इनके आनाज की ज़रूरत पूरी न होने के कारण धूप में ऐसे निकलना और गेहूं की बालियाँ चुनने जैसा काम करना अनिवार्य बन जाता है.
तब इस परिस्थिति को देखते हुए यह महिलाएँ इस चुनाव से क्या अपेक्षा रखती हैं? इसका जवाब देते हुए ललिता कहती हैं,
“सरकार मुझे बस एक सिलाई मशीन दिलवा दे ताकि मुझे कमाने के लिए घर से न निकलना पड़े.”
यह दोनों महिलाएँ हमसे बात करते हुए घर से बाहर निकलकर काम करने की परेशानियों पर लगातार ज़ोर देती हैं. याद रहे कि हमारी सरकार के पास गर्म होते मौसम में इन कामगारों के लिए कोई भी हीट एक्शन प्लान नहीं है. अपने आर्थिक, जातीय और लैंगिक पहचान के कारण यह महिलाएँ जलवायु परिवर्तन से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं. मगर चुनाव में इनकी कोई सुनवाई नहीं है.
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