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कूनो नैशनल पार्क में अब तक 7 चीतों की मौत, क्या फेल हो रहा है भारत का प्रजेक्ट चीता?

cheetah died at kuno

मध्यप्रदेश में स्थित कूनो नेशनल पार्क से एक बार फिर निराश करने वाली खबर आई है. यहाँ एक और नर चीते की मौत हो गई है. इसके साथ ही यहाँ चीतों की मौत का आँकड़ा बढ़कर 7 हो गया है. बताया जा रहा है कि मंगलवार सुबह 11 बजे इस चीते की गर्दन पर गंभीर घाव देखे गए थे. इसके बाद चिकित्सकों द्वारा चीते को बेहोश कर उपचार करने की अनुमति माँगी गई थी. अनुमति मिलने के बाद जब टीम पूरी तयारी के साथ चीते के पास पहुँची तो यहाँ दोपहर करीब 2 बजे उसे मृत पाया गया. 

पीटीआई से बात करते हुए प्रिंसिपल चीफ़ कन्सर्वेटर ऑफ़ फ़ॉरेस्ट (PCCF) वाइल्डलाइफ जे एस चौहान ने कहा कि “तेजस नाम का चीता जिसकी उम्र करीब 4 साल थी की मौत जानवरों के आपसी संघर्ष के दौरान हुई है.” हालाँकि मौत के कारणों को और स्पष्ट रूप से तभी जाना जा सकेगा जब इनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आएगी. गैरतलब है कि इससे पहले भी 9 मई को एक मादा चीता दक्षा की मौत आपसी संघर्ष में हुई थी.

बीते साल सितम्बर के महीने में निमीबिया और दक्षिण अफ्रीका से भारत लाए गए चीतों को कूनो नेशनल पार्क में बाड़ों में छोड़ा गया था. यहाँ से समय-समय पर चीतों को जंगल में छोड़ने की योजना थी. मगर जिस धूमधाम के साथ यह प्रोजेक्ट भारत में लाया गया था उसकी चमक अब फीकी होती दिखाई दे रही है. 

प्रोजेक्ट चीता, भव्य कार्यक्रम और निशाराजनक नतीजे

बीते साल 17 सितम्बर को एक भव्य कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में 8 निमीबियन चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था. तमाम फोटो शूट और वीडियोग्राफी के साथ सरकार ने इस पर खूब वाहवाही लूटी थी. इसके बाद इस साल के फरवरी महीने में दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 अन्य चीतों को यहाँ छोड़ा गया था. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा था कि इस कदम के साथ ही भारत की वाइल्डलाइफ डाइवर्सिटी को बढ़ावा मिलेगा. मगर इवेंट ख़त्म होते ही चीतों की घटती संख्या चिंता और सवाल पैदा करती है. तेजस की मौत को मिलाकर अब तक कुल 4 बड़े चीतों की मौत हो चुकी है. प्रोजेक्ट की इन विफलताओं के लिए कांग्रेस ने सरकार की अव्यवस्था को ज़िम्मेदार ठहराया है.

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कुपोषण के चलते हुई थी शावकों की मौत         

इस प्रोजेक्ट में एक महत्वपूर्ण क्षण तब था जब निमीबियन चीते ने 4 शावकों को जन्म दिया था. मगर इसके बाद भूख, कमजोरी और गर्मी जैसे कारणों से इनमें से 3 की मौत हो गई थी. इन शावकों के जन्म के बाद से ही इनपर कड़ी नज़र रखी जा रही थी. 23 मई को जब इन्हें ट्रैक किया गया तो अवलोकनकर्ताओं ने पाया कि एक शावक बेहद कमज़ोर है और वो चल नहीं पा रहा था. यह शावक अपने आप को उठा भी नहीं पा रहा था. इसके बाद चिकित्सकों के द्वारा जाँच किए जाने के बाद भी इसे नहीं बचाया जा सका था. इसके अलावा 2 अन्य शावक भी कुपोषण के चलते उसी दिन शाम को मृत हो गए थे. 

क्या प्रोजेक्ट चीता असफल है?      

चीता के शावकों का इस तरह मरना भारतीयों के लिए भले ही एक दुखद घटना हो मगर विशेषज्ञों के अनुसार उनके जिंदा रहने की सम्भावना बेहद कम होती है. एम कैरेन लौरेंसन के अनुसार केवल 4.8 प्रतिशत शावक ही प्रौढ़ चीते के रूप में विकसित हो पाते हैं. ऐसे में वैज्ञानिक रूप से भी इन शावकों की मौत एक ऐसी घटना थी जिसका अनुमान पहले ही लगाया जा सकता है. तेजस के अलावा 2 चीतों की मौत बिमारी के चलते हुई थी. इसके अलावा एक अन्य मादा चीते की मौत आपसी संघर्ष में हुई थी. एक आँकड़े के अनुसार दक्षिण अफ्रीका में भी 8 प्रतिशत चीतों की मौत आपसी संघर्ष में हो जाती है. 

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दक्षिण अफ्रीका के उलट भारत में चीतों को जो माहौल दिया गया है वह बेहद अलग है. दक्षिण अफ्रीका और निमीबिया में जहाँ इन्हें एक फेंस्ड इलाके (fenced reserves) में रखा जाता है वहीँ भारत में इन्हें क्रमवार तरीके से खुले में छोड़ा जा रहा है. ऐसे में इनके लिए जीवन जीने का संघर्ष थोड़ा और कठिन हो जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार यदि लाए गए कुल चीतों में से 50 प्रतिशत चीते भी ज़िन्दा बच जाते हैं तो प्रोजेक्ट को सफल मानना चाहिए. तेजस की मौत के साथ ही यदि कुल मौतों को मिला दें तो फिलहाल 24 में से केवल 17 चीते ही जिंदा हैं. ऐसे में यह देखना होगा कि क्या सरकार इस संख्या को 12 तक पहुँचने का इंतज़ार करेगी या उससे पहले ज़रूरी कदम उठाये जाएँगे.         

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  • Shishir is a young journalist who like to look at rural and climate affairs with socio-political perspectives. He love reading books,talking to people, listening classical music, and watching plays and movies.

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