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पेड़ों की कटाई से भोपाल में बढ़ रहा भूमि की सतह का तापमान

भोपाल की घटती हुई हरियाली का सीधा असर यहाँ के तापमान पर पड़ा है. एक शोध संस्था के अनुसार पेड़ों की अनुपस्थिति से यहाँ की सतह का तापमान बढ़ता जा रहा है. इसका सीधा असर यहाँ के स्ट्रीट वेंडर्स और मज़दूरों पर पड़ा है.

By Ground report
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surface temperature in bhopal

सडकों को ठंडा रखने के लिए भोपाल नगर निगम द्वारा किया जा रहा पानी का छिड़काव

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भोपाल में हाल ही में सरकारी आवास के निर्माण के लिए करीब 29 हज़ार पेड़ काटे जाने का आदेश दिया गया है. इसके पहले यहाँ के कोलार इलाके में 6 लेन रोड के लिए 4 हज़ार पेड़ काटे गए हैं. हालाँकि इस आदेश का जमकर विरोध किया गया. फिलहाल यह मामला राष्ट्रिय हरित प्राधिकरण (NGT) में है. भोपाल की घटती हुई हरियाली का सीधा असर यहाँ के तापमान पर पड़ा है. एक शोध संस्था के अनुसार पेड़ों की अनुपस्थिति से यहाँ की सतह का तापमान बढ़ता जा रहा है.

सतह के तापमान में 20 डिग्री का फर्क

भोपाल में बढ़ते तापमान के कारण यहाँ की सतह का तापमान (land surface temperature) बढ़ रहा. इसका सीधा सम्बन्ध यहाँ के पेड़ों की कटाई से है. शहर आधारित अनुसंधान और परामर्श समूह द एनालिसिस द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार शहर की जिन सड़कों के किनारे पेड़ मौजूद हैं वह अन्य सड़कों की तुलना में ज़्यादा ठंडी हैं. शोध में उदाहरण के रूप में बताया गया कि भोपाल की कोलार रोड कि सतह का तापमान 61 डिग्री सेल्सियस था. वहीँ पेड़ की छाया के नीचे यह तापमान 40 डिग्री दर्ज किया गया.

शहरवासियों पर बढ़ता प्रभाव

शोध संस्था द्वारा किए गए अध्ययन में शामिल 72 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वह गर्मी में भी 8 घंटे से ज़्यादा समय घर के बाहर व्यतीत करते हैं. वहीँ 60 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो दिन के सबसे गर्म घंटों में भी काम करना जारी रखते हैं. इनमें से ज़्यादातर लोग सड़क किनारे छोटी सी दुकान लगाने वाले (स्ट्रीट वेंडर) और निर्माण कार्य में मज़दूरी करने वाले श्रमिक हैं. यह लोग सड़क की सतह से होकर आने वाली अत्यंत गर्म हवा के लगातार संपर्क में रहते हैं. इनका कार्य क्षेत्र भी अन्य लोगों की तुलना में अधिक खुला होता है जिससे यह हीट स्ट्रोक्स के सीधे संपर्क में आते हैं. यही कारण है कि इनमें से 32 प्रतिशत लोगों ने माना है कि गर्म सतह के कारण उनका कार्य प्रभावित हुआ है.

न्यू मार्केट में फल का ठेला लगाने वाले एक विक्रेता ने अध्ययन करने वाली इस टीम से कहा,

“चूँकि हम ज़्यादातर समय सडकों पर रहते हैं इसलिए सतह से निकलने वाली गर्मी को सहन करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है.”

शोध संस्था द एनालिसिस के संस्थापक सदस्य ऋषभ श्रीवास्तव कहते हैं, 

“हमें हीट स्ट्रेस को मानवाधिकार मुद्दे के रूप में देखना चाहिए. हमें उन लोगों के लिए योजना बनानी होगी जो अपने कार्यस्थलों पर पंखा भी नहीं लगा सकते. हमें अपने शहरों के शेष पेड़ों को बचाना होगा साथ ही हरित कवर बढ़ाना भी होगा. ऐसा करके ही हम अपने शहर को रहने योग्य बनाए रख पाएंगे.”

यह सही है कि बढ़ती आबादी के साथ विकास ज़रूरी है. मगर बढ़ते लोगों के साथ ही सांस की ज़रूरत भी बढ़ रही है. यानि पेड़ और भी ज़रूरी होते जा रहे हैं. ऐसे में पेड़ों को काटकर सड़कें बनाना या इनके किनारे के पेड़ साफ़ कर देने का सीधा ख़तरा पैदल चलने वाले लोगों पर पड़ता है. यह वो लोग हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से निम्नतबके से आते हैं. ऐसे में इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारे प्रशासन का पहला कर्तव्य है.    

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