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साल 2023 में बनाए गए रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में निगरानी के लिए सिर्फ दो हाथी हैं। इसकी वजह से टाइगर रिजर्व के स्टाफ को बाघों की निगरानी में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही दोनों हाथियों पर भी काम का भार अधिक हो जाता है।
मध्य प्रदेश के सागर और दमोह जिले में फैले इस क्षेत्र के टाइगर रिजर्व घोषित होने के बाद यहां बाघों की संख्या बढ़ी है। टाइगर रिजर्व की किसी भी रेंज में निगरानी, रेस्क्यू और पेट्रोलिंग जैसे कामों के लिए हाथियों की जरूरत पड़ती है तो कैंप से हाथी आने में दो दिन लग जाते हैं। इस कारण दोनों हाथी थकने के साथ जल्दी बीमार भी पड़ जाते हैं। इन दोनों हाथियों की देखरेख में खासा बजट आता है।
बाघ के रेस्क्यू ऑपरेशन में चारों तरफ से घेरने के लिए हाथियों की जरूरत पड़ती है लेकिन हाल में दो हाथियों के साथ दो जिप्सियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। पीसीसीएफ शुभरंजन सेन बताते हैं कि जंगल में चेन से बांधकर हाथियों को छोड़ा जाता है, जहां वे पेड़ों की पत्तियां खात हैं। नौरादेही में हाथियों के लायक जंगल नहीं है। रात में उन्हें छोड़ते हैं तो वे खुद खाना तलाशते हैं। हाथियों को भी अच्छी खुराक चाहिए होती है। इसलिए हाथियों के हिसाब से जंगल भी वैसा होना चाहिए।
दोनों हाथियों में से हथनी का नाम चंदा है। जो अब मां नहीं बन सकती है। जब चंदा गर्भवती थी तब उसका बच्चा पेट में ही मर गया था। ऑपरेशन से बच्चादानी को निकालना पड़ा था। पहले चंदा का साथी हाथी वनराज था। वनराज की देखरेख की कमी से मौत हो गई थी। इसके बाद बांधवगढ़ से नील नाम का हाथी लाया गया था जो फिलहाल में चंदा का साथी है।
रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व का कोर एरिया सबसे बड़ा है। इतने बड़े क्षेत्र में बाघों की निगरानी के लिए 10 हाथियों की जरूरत है। विशेषज्ञों की राय है कि टाइगर रिजर्व में अलग-अलग इलाकों में पांच कैंप बनने चाहिए। इन कैंपों में दो-दो हाथी रहने चाहिए। इससे हाथियों की देखभाल के साथ-साथ काम का बोझ भी कम होगा।
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