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अनधिकृत क्लीनिक में इलाज करवाते व्यक्ति Photograph: (ग्राउंड रिपोर्ट)
राजगढ़ के सुठालिया में रहने वाली प्रीति मेवाड़े के पति संतोष की मृत्यु बुखार से हो गई थी। सितंबर 2024 में संतोष को बुखार आया तो प्रीति उन्हें नज़दीकी क्लीनिक में ले गईं, जहां झोला छाप डॉक्टर (Unlicensed medical practitioners) लखन लोधी ने उनका इलाज किया। लखन पर आरोप है कि उनके गैर-ज़िम्मेदाराना इलाज से ही संतोष की मृत्यु हुई है। संतोष मात्र 38 वर्ष की उम्र में ही अपनी पत्नी प्रीति और बच्चों को अकेला छोड़ गए हैं।
आज राजगढ़ जिले में छोटे-बड़े सभी अस्पतालों को मिलाकर कुल 10 अस्पताल हैं। इनमें से एक 300 बिस्तरों का राजगढ़ जिला अस्पताल भी है। सुठालिया में भी एक 30 बिस्तरों का सामुदायिक स्वास्थ केंद्र बना हुआ है। इन सब के साथ ही जिले में एक मेडिकल कॉलेज भी निर्माणाधीन है।
हालांकि राजगढ़ में तैयार इन सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के सामानांतर, झोलाछाप डॉक्टरों की पैठ भी बनी हुई है।
कौन होते हैं झोला छाप डॉक्टर?
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मध्य प्रदेश में स्थानीय भाषा में 'झोला छाप डॉक्टर' मैडिकल काउंसिल (एमपीएमसी) से वैध मेडिकल लाइसेंस के बिना चिकित्सा का अभ्यास करने वाले व्यक्तियों को कहा जाता है, जिसका अनिवार्य रूप से अर्थ है कि उन्हें राज्य में चिकित्सा उपचार प्रदान करने की कानूनी अनुमति नहीं है। इनके पास चिकित्सा विज्ञान की डिग्री भी नहीं होती। ये लोग जहां तहां से ड्रिप और इंजेक्शन लगाना सीख लेते हैं और कुछ दवाओं के बारे में ज्ञान रखते हैं। जिसकी मदद से ये लोगों का इलाज करते हैं।
एमबीबीएस डॉक्टर की तुलना में कम फीस और ग्रामीण इलाकों में डॉक्टर्स की गैरमौजूदगी लोगों को इन झोला छाप चिकित्सकों से इलाज करवाने के लिए मजबूर करती है।
सुठालिया ब्लॉक के सीबीएमओ (चीफ ब्लॉक मैडिकल ऑफिसर) डॉक्टर जलालुद्दीन शेख़ इन्हे एक गंभीर समस्या के तौर पर देखते हैं। डॉ शेख़ के मुताबिक इन झोला छाप डॉक्टर्स को इलाज की मौलिक बातों का ही ज्ञान नहीं होता है। डॉ शेख़ कहते हैं,
"इनके पास न तो इलाज करने की पात्रता होती है और न ही इन्हें दवाई का शेड्यूल पता होता है। ये फर्ज़ी डॉक्टर मरीज़ के केस और दवाओं की पूरी समझ के बिना ही इलाज करते हैं। जब केस बिगड़ने लगता है तब मरीज़ को बड़े अस्पतालों में रेफर कर देते हैं।"
संचालनालय, लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मध्यप्रदेश द्वारा 15 जुलाई 2024 को जारी किये गए आदेश में भी इन तथ्यों को स्वीकार किया गया है। आदेश में कहा गया है कि 'प्रदेश में कई अपात्र व्यक्तियों द्वारा, फर्ज़ी डिग्रियों का इस्तेमाल करते हुए, अमानक पद्धतियों के उपयोग से रोगियों का उपचार किया जा रहा है।'
राजगढ़ जिला अस्पताल में पदस्थ एमडी मेडिसिन डॉक्टर सुधीर कलावत इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं
“हर महीने लगभग 150 से 200 मरीज़ झोला छाप डॉक्टर को दिखाने के बाद बिगड़े केस लेकर मेरे पास आते हैं। इसमें टीबी जैसी गंभीर बीमारी के मरीज़ भी होते हैं।”
वो आगे कहते हैं कि “स्पेशलिस्ट डॉक्टर मरीज़ की जांच रिपोर्ट, मैडिकल हिस्ट्री, उम्र और वजन देखकर उसे दवाई देता है। साथ ही इससे क्या साइड इफेक्ट हो सकते हैं, इसका ध्यान रखता है। अगर मरीज़ को कुछ परेशानी होती भी है तो वो उसके साथ खड़ा रहता है। लेकिन झोलाछाप डॉक्टर्स कुछ नहीं देखता। वह अंदाज़े से मरीज़ का इलाज करेगा, अगर केस बिगड़ा तो अपनी दुकान बंद करके भाग जाएगा। विशेषज्ञ डॉक्टर ने पढ़ाई की है और झोलाछाप डॉक्टर काम सीखकर बाज़ार में है।”
सुठालिया के संतोष मेवाड़े का केस भी कुछ ऐसा ही है। ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए उनकी पत्नी प्रीति बताती हैं
“संतोष को सितंबर माह में बुखार आया था, उन्होंने सुठालिया में संचालित होने वाले क्लीनिक पर झोलाछाप डॉक्टर लखन लोधी से इलाज करवाया। डॉक्टर ने मेरे पति को जल्द ठीक करने का दावा किया। लेकिन उनकी हालत में सुधार होने की बजाय तबीयत और बिगड़ती चली गई। संतोष का खून गाढ़ा होने लगा, यहां तक कि हमारे परिवार के लोगो ने डॉक्टर से संतोष को दूसरी जगह ले जाने की बात भी कही। लेकिन डॉक्टर ने वहीं इलाज करके उन्हें स्वस्थ करने की बात करता रहा।”
प्रीति के मुताबिक जब संतोष की तबीयत और ज़्यादा बिगड़ी तो 21 सितंबर 2024 को वो उन्हें भोपाल के एम्स अस्पताल लेकर गई, जहां रात में ही उनकी मृत्यु हो गई। एम्स के डॉक्टर्स ने प्रीति को बताया कि, गलत उपचार के कारण उनके पति की मौत हुई है।
अब न्याय के लिए संघर्ष
प्रीति ने पूरे मामले की लिखित शिकायत राजगढ़ सीएमएचओ (चीफ मैडिकल हेल्थ ऑफिसर), स्थानीय थाने और जिला कलेक्टर से जनसुनवाई में की थी। इस मामले में जांच भी हुई, लेकिन अभी तक कोई निराकरण या दोषी को सज़ा नहीं मिल पाई है।
संतोष मेवाड़े प्रकरण में अब तक हुई जांच की स्थिति जानने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट ने सभी संबंधित विभागों से बात की है। जिला अस्पताल के महामारी अधिकारी डॉक्टर महेंद्रपाल सिंह ने इस मामले की बारीकी से जांच की है। वो बताते हैं कि
“संतोष मेवाड़े की अमान्य किट से डेंगू की जांच की गई थी। मरीज़ के डेंगू पॉज़िटिव न होने के बाद भी लखन लोधी द्वारा डेंगू सस्पेक्ट मानकर इलाज किया जा रहा था।”
वो आगे बताते हैं “लखन लोधी अवैध रुप से क्लीनिक का संचालन कर रहा था। हमारी टीम ने इस क्लीनिक को सील कर इसके विरुद्ध थाने में आवेदन भी दिया था।”
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सुठालिया थाने के थाना प्रभारी प्रवीण जाट ने बताया
“स्वास्थ विभाग के अधिकार थाने में आए ज़रुर थे, लेकिन उन्होंने थाने में प्रतिवेदन नहीं दिया है। हमसे उन्होंने कहा था कि वे अभी जांच कर रहे हैं और आरोपी से 3 दिन में जवाब मांगेंगे।”
थाना प्रभारी प्रवीण जाट आगे कहते हैं “शिकायतकर्ता प्रीति मेवाड़े के द्वारा सीधे शिकायती आवेदन दिया गया था, उसकी हमने जांच की है। इसमें एक बड़ी बात यह निकलकर सामने आई की मृतक का पोस्ट मॉर्टम नहीं कराया गया। इस कारण मर्ग कायम (किसी व्यक्ति की मौत की सूचना को पुलिस के रिकॉर्ड में शुरूआती तौर पर दर्ज करना ) नहीं किया गया। यदि ये लोग पोस्ट मॉर्टम करा लेते तो पुलिस इस मामले में सीधे कार्रवाई कर सकती थी। लेकिन अब पुलिस स्वास्थ विभाग के प्रतिवेदन के इंतेज़ार में है।”
स्वास्थ विभाग के द्वारा थाने में दिए गए आवेदन में फॉलो-अप को लेकर डॉ महेंद्र सिंह कहते हैं
“अब यह सब कुछ सीएमएचओ मैडम के हाथ में है, उन्होंने क्या किया है और क्या नहीं इसकी जानकारी तो उन्हें ही है।”
जिला अस्पताल की सीएमएचओ डॉक्टर किरण वाडिवा ने ग्राउंड रिपोर्ट को बताया
“प्रकरण की जांच तो हुई थी लेकिन उसमें क्या हुआ देखकर ही बता पाऊंगी। अभी व्यस्त हूं।”
प्रीति अपने पति को खो चुकी हैं, लेकिन उनके जैसे कई लोग हैं जो रोज़ झोलाछाप डॉक्टर्स के झांसे में आ रहे हैं क्योंकि ये फर्ज़ी डॉक्टर अभी भी राजगढ़ में निश्चिंत होकर अपनी दुकान चला रहे हैं। इस विषय पर सीएमएचओ ग्राउंड रिपोर्ट से कहती हैं कि
“हमने सभी बीएमओ और सीबीएमओ को नोटिस दिए हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्र के झोलाछाप डॉक्टर्स पर कार्रवाई करे। यदि फिर भी नहीं हो रही है, तो मैं एक लेटर और निकाल देती हूं।”
सरकार के पास नहीं है झोला छाप चिकित्सकों का डेटा
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नैशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के मुताबिक निगरानी और प्रवर्तन में चुनौतियाँ के कारण मध्य प्रदेश में कितने अनधिकृत डॉक्टर कार्य कर रहे हैं इसकी जानकारी सरकार के पास नहीं है। हालांकि यह अनुमान है कि दूरदराज़ के गांवों में जहां योग्य चिकित्सा पेशेवरों तक पहुंच सीमित है वहां अपंजीकृत चिकित्सकों की मौजूदगी अधिक है।
राजगढ़ जिले से ताल्लुक रखने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट तनवीर वारसी ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए कहते हैं कि
“मध्यप्रदेश में सिर्फ भू-माफिया ही नहीं, बल्कि स्वास्थ माफिया भी सक्रिय है। इसके कई उदहारण हमारे सामने है। लेकिन जो इनके विरुद्ध आवाज़ उठाता है उनकी आवाज़ को दबा दिया जाता है।”
वो आगे कहते हैं कि “झोलाछाप डॉक्टर अपने अल्प ज्ञान से इलाज कर मरीज़ों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। वे ऐसी दवाइयों का उपयोग करते हैं जिसके लिए वे अधिकृत तक नहीं हैं। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि बगैर डिग्री और बगैर मान्यता के उनके पास यह प्रतिबंधात्मक दवाइयां आखिर केसे पहुंच जाती हैं? जिसके बारे में शिकायते होने के बावजूद भी कोई जांच नहीं बैठती और न ही कोई कार्रवाई की जाती है।”
तनवीर के मुताबिक थोक दवा विक्रेता अपने लाभ के लिए गैरकानूनी तरीके से झोलाछाप डॉक्टर को ये दवाईयां उपलब्ध करवा रहे हैं। ऐसे में झोलाछाप डॉक्टर, गैर मान्यता प्राप्त चिकित्सीय संस्थानों और इन संस्थानों की मदद कर रहे लोगों पर ठोस कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
संतोष मेवाड़े के मामले में प्रशासन का ढीला रवैया साफ दिखाई दे रहा है। प्रीति ने इस मामले की शिकायत ब्यावरा कोर्ट में भी की है। उनके घर में केवल उनके पति ही अकेले कमाने वाले व्यक्ति थे, जो अब इस दुनिया में नहीं है। प्रीति को अब उनके बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही है कि कैसे वो उनका पालन-पोषण करेंगी।
ज़रुरत है कि लोगों को ऐसे फर्जी डॉक्टर्स के बारे में जागरुक किया जाए। ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं तक लोगों की पहुंच बढ़ाई जाए और इस तरह के फर्जी क्लीनिक चलाने वालों पर सख्त कार्रवाई हो ताकि अन्य लोगों के साथ वह न हो जो प्रीति के साथ बीत रहा है।
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