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Image: Ground Report
3 मार्च को मध्य प्रदेश के उच्च न्यायलय ने प्रदेश के वनों के मद्देनजर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय की तीन न्यायधीशों की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा 2015 में लाए गए नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है। इस अधिसूचना में 53 प्रजातियों के पेड़ों को काटने और जंगल से लाने ले जाने की अनुमति दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत, जस्टिस एस ए धर्माधिकारी और जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा, कि जिस तेजी से जंगल कम हो रहे हैं, आने वाले पचास सालों में प्रदेश के आधे जंगल साफ़ हो जाएंगे।
अदालत ने राज्य सरकार की अधिसूचना को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14,21 और 48 (A) और वन अधिनियम, 1927 की धारा 41 (1) (2) और (3) का उल्लंघन करती है। साथ ही अदालत ने अपने आदेश के अनुपालन और निगरानी सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश भी दिए हैं।
प्रदेश सरकार की अधिसूचना के खिलाफ तर्क देते हुए एडवोकेट विवेक कुमार शर्मा और एक अन्य याचिकाकर्ता ने अपनी अलग-अलग याचिकाओं में कहा कि अधिसूचना में न केवल पेड़ों की 53 प्रजातियों को कटाई की अनुमति से छूट दी गई है, बल्कि उन्हें एमपी ट्रांजिट रूल, 2000 के नियम 4 (2) से भी छूट दी गई है।
इस अधिसूचना ने किसी भी व्यक्ति को अपनी भूमि से अनुमति के बिना पेड़ों की 53 प्रजातियों को काटने और परिवहन करने की अनुमति दी गई थी। याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार द्वारा पेड़ों की कटाई और परिवहन के लिए दी गई छूट गोदावर्मन बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का उल्लंघन है। पेड़ों की अनियंत्रित कटाई पर्यावरण को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगी और इसके परिणामस्वरूप लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान होगा।
उच्च न्यायालय ने मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के संचालन पर रोक लगा दी है। हालांकि सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और मामले के अन्य पक्षकारों ने अदालत को सूचित किया कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में भी इसी तरह की एक याचिका दायर की गई थी। हालांकि इसे पीठ ने खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि इंदौर पीठ ने अपने आदेश में गोदावर्मन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में अधिसूचना की संवैधानिकता पर विचार नहीं किया था।
मध्य प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत, न्यायमूर्ति एस ए धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति विवेक जैन की पीठ ने सोमवार को अधिसूचना को रद्द कर दिया है। साथ ही पीठ ने कहा कि फैसले के ऑपरेटिव हिस्से को संबंधित विभागों के होम पेज पर अपलोड किया जाना चाहिए। संबंधित विभागों के प्रधान सचिव अदालत के आदेश के उचित प्रचार के लिए जिम्मेदार होंगे।
अपने इस आदेश में अदालत ने अधिसूचना को रद्द करने के साथ ही हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ के अंतर्गत एक डिवीजन बेंच का भी गठन किया है। 3 मार्च के फैसले के बाद इस मामले को लेकर आने वाले सभी कानूनी मसले इसी डिवीजन बेंच के समक्ष प्रस्तुत किये जाएंगे। अब इस मामले की अगली सुनवाई भी 10 मार्च को डिवीज़न बेंच के समक्ष ही होगी जहां इस मामले से संबंधित कम्प्लायंस रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश उच्च न्यायलय ने दिया है।
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