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Bhopal tree cutting: क्या है 29 हज़ार पेड़ काटने का पूरा मामला?

प्रदेश की राजधानी भोपाल में इन दिनों 29 हज़ार पेड़ काटने को लेकर काफी विवाद हो रहा है. शिवाजी नगर और तुलसी नगर की कुछ महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर प्रतीकात्मक विरोध भी किया. उनका कहना है कि यह पेड़ उनके द्वारा बड़े किए गए हैं अतः हम इन्हें नहीं कटने देंगे.

By Shishir Agrawal
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bhopal tree cutting protest

नागरिकों ने किया पेड़ कटाई के खिलाफ प्रदर्शन. फ़ोटो- योगेन्द्र सिंह गुड्डू चौहान

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प्रदेश की राजधानी भोपाल में इन दिनों 29 हज़ार पेड़ काटने को लेकर काफी विवाद हो रहा है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह पेड़ शहर के शिवाजी नगर और तुलसी नगर इलाके में स्थित सरकारी आवास के पुनर्निर्माण के लिए काटे जाने हैं. दैनिक अखबार ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 2 हज़ार 378 करोड़ रूपए के बजट वाले इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत पुराने सरकारी बंगलों को ध्वस्त कर नए बंगले बनाए जाने हैं, 

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क्या है पूरा विवाद

बुधवार 12 जून को स्थानीय पार्षद योगेन्द्र सिंह गुड्डू चौहान ने कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ मिलकर इस सरकारी आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए उन्होंने कहा,

“8 जून को नगरीय विकास विभाग द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया. इसमें कहा गया कि तुलसी नगर और शिवाजी नगर में कुल 300 एकड़ में मंत्रियों और विधायकों के बंगले बनना है. यह पुराने पेड़ों से संपन्न इलाका है इसलिए इस प्रस्ताव को निरस्त किया जाना चाहिए.”

दरअसल लगभग एक हफ्ते पहले दैनिक भास्कर द्वारा एक खबर की गई थी. इसमें बताया गया कि 2 हज़ार 267 सरकारी बंगलों और मकानों को तोड़ा जाना है. इसके बाद यहाँ मंत्रियों के लिए 30 बंगले, 16 फ़्लैट और 230 विधायकों के फ्लैट तो बनेंगे ही. इसके साथ ही 3 हज़ार 480 सरकारी अफसरों के बंगले और मकान भी बनेंगे. 

यह सब कुल 297 एकड़ ज़मीन पर बनाया जाएगा. इसमें तुलसी नगर की 142 एकड़ ज़मीन और शिवाजी नगर की 155 एकड़ ज़मीन शामिल है. 

bhopal tree cutting news
फ़ोटो - योगेन्द्र सिंह गुड्डू चौहान

क्या यह प्रस्ताव निरस्त हो गया?

गुरूवार सुबह से एक ख़बर सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें कहा गया कि मुख्यमंत्री ने यह योजना निरस्त कर दी है. इस पर आधिकारिक प्रतिक्रिया लेने के लिए हम मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग के अपर संचालक संजय जैन के पास पहुँचे. उन्होंने इस मामले में हमें गोल-मोल जवाब ही दिया. उन्होंने कहा कि इस परियोजना की फ़ाइल अब तक सीएम तक नहीं पहुँची है. 

ऐसे में सवाल है कि जब सीएम तक फ़ाइल पहुँची ही नहीं तो परियोजना निरस्त कैसे की जा सकती है? इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पर्यावरण कार्यकर्त्ता राशिद नूर खान कहते हैं,

“यह खबर कि यह परियोजना निरस्त कर दी गई है ग़लत प्रतीत होती है. सरकार आज कल गंगा जल संवर्धन अभियान में व्यस्त है. खुद मुख्यमंत्री इसका प्रचार कर रहे हैं. ऐसे में 16 जून को इसके समापन से पहले ऐसा कोई विरोध न हो जिससे सरकार की छवि धूमिल हो, इसके लिए यह बातें फैलाई गई हैं.”

मंत्री ने क्या कहा?

इतनी बड़ी संख्या में पेड़ काटने के कारण उपजे विवाद के बीच नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने एक वीडियो में कहा,

“विकास भी ज़रूरी है और पेड़ भी ज़रूरी हैं. जो पेड़ विकास के रास्ते में आयेंगे उन्हें हम ट्रांसफर करेंगे.”

उन्होंने अपने गृहक्षेत्र इंदौर का उदहारण देते हुए कहा कि वहां भी विकास हुआ है मगर हमने पेड़ नहीं काटे, उन्हें स्थानांतरित किया है. उन्होंने कहा कि पेड़ काटे जाने की बातें अफवाह हैं. यानि उनके अनुसार 29 हज़ार पेड़ काटे नहीं बल्कि ट्रांसफ़र किए जाएंगे. हालाँकि पर्यावरणविद अजय दुबे ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रदेश सरकार को आँकड़ों सहित यह बताना चाहिए कि कितने पेड़ स्थानांतरण के बाद ज़िन्दा बचे हैं.

subhash pandey NGT activist

“स्मार्ट सिटी की खाली ज़मीन पर स्थानांतरित हो परियोजना”

भले ही मंत्री जी वृक्षों को स्थानांतरित करने की बात कर रहे हों मगर पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि वृक्षों के बजाय परियोजना को स्थानांतरित करना ज़्यादा उचित होगा. दरअसल इससे पहले भी भोपाल स्मार्ट सिटी के तहत इसी स्थान का चयन किया गया था. तब शिवाजी नगर के 333 एकड़ के एरिया को पुनःविकसित किया जाना था. बाद में जब पेड़ों की कटाई का विरोध हुआ तो इसे टीटी नगर में स्थानांतरित किया गया.

राष्ट्रिय मानव स्थापन एवं पर्यावरण केंद्र (NCHSE) के डीजी डॉ. प्रदीप नन्दी मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव और केंद्र की संस्थापक निर्मला बुच के प्रयासों को याद करते हुए कहते हैं,

“स्मार्ट सिटी के दौरान मैडम बच के नेतृत्व में इसका विरोध किया गया था. इस दौरान एक सर्वे भी करवाया गया था जिसमें पता चला कि इस इलाके में दुर्लभ प्रजाति के भी पेड़ हैं. साथ ही सर्वे में बताया गया कि इसे शहर के फेफेड़े के जैसा बनाया जा सकता है. यही कारण है कि बाद में इस परियोजना को स्थानांतरित किया गया.”

दरअसल भोपाल स्मार्ट सिटी के तहत जिस लैंड मौनेटाईजेशन नीति को अपनाया गया था वह बुरी तरह असफल हुई है. यह खाली ज़मीने अब भी स्मार्ट सिटी अथोरिटी के पास मौजूद हैं. गुड्डू चौहान कहते हैं,

“स्मार्ट सिटी के तहत सरकार ने पैसा देने से मना कर दिया है. हम चाहते हैं कि स्मार्ट सिटी की 342 एकड़ खाली ज़मीन पर ही यह परियोजना लागू की जाए.”

सरकार के इस फैसले का फिलहाल पूरे शहर में विरोध हो रहा है. शिवाजी नगर और तुलसी नगर की कुछ महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर प्रतीकात्मक विरोध भी किया. उनका कहना है कि यह पेड़ उनके द्वारा बड़े किए गए हैं अतः हम इन्हें नहीं कटने देंगे. 

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