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Loksabha Election: क्या विकास बैतूल के लिए चुनावी मुद्दा है?

बैतूल लोकसभा, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है, जो कि महाराष्ट्र से सीमा साझा करती है। भाजपा ने यहां दुर्गादास उइके को रिपीट किया है तो वहीं कांग्रेस ने रामू टेकाम को दोबारा मौका दिया है।

By Chandrapratap Tiwari
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बैतूल लोकसभा
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Loksabha Elections 2024: बैतूल लोकसभा प्रदेश की बहुत ही खास लोकसभा सीट है। यह लोकसभा महाराष्ट्र से अपनी सीमाएं साझा करती है। बैतूल लोकसभा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। बैतूल से लंबे समय तक कांग्रेस के बाहरी प्रत्याशी जीतते रहे, मसलन हॉकी चैंपियन असलम शेर खान, भीकू लाल चांडक, आरिफ बेग। 1996 में यहां की जनता ने भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय प्रत्याशी विजय खंडेलवाल को चुनाव जिताया, तभी से यहां भाजपा की जीत का सिलसिला जारी है। 2008 के परिसीमन के बाद यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। आइये एक नजर डालते हैं बैतूल की सियासत पर और समझते है यहां के जमीनी मुद्दे। 

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क्या कहती है बैतूल की डेमोग्राफी

बैतूल लोकसभा में बैतूल की 5 (मुलताई, भैंसादेहि, घोड़ाडोंगरी, आमला, बैतूल), हरदा की 2 (टिमरनी, हरदा), और खंडवा की हरसूद लोकसभा शामिल है। इन 8 में से 6 पर भाजपा और 2 में कांग्रेस के विधायक हैं। 

बैतूल लोकसभा के 81 फीसदी मतदाता ग्रामीण हैं और यहां के 40 फीसदी से अधिक मतदाता अनुसूचित जनजाति के हैं। बैतूल में अनुसूचित जाति के मतदाता 11 फीसदी हैं, वहीं बैतूल में मुस्लिम मतदाताओं का हिस्सा 4.3 फीसदी के करीब है। 

बैतूल में किनके बीच है मुकाबला 

अनुसूचित जनजाति की सीट बनने के बाद 2009 के लोकसभा चुनावों में बैतूल से भाजपा ने ज्योति धुर्वे को मौका दिया था। ज्योति 2009 और 2014 में यहां से जीतीं। लेकिन ज्योति पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र दिखाने का आरोप लगा जिसका वे बचाव नहीं कर सकीं। साल 2019 में भाजपा ने दुर्गादास उइके को मौका दिया और वे यह से रेकार्ड मतों से जीते। दुर्गादास पेशे से शिक्षक रह चुके हैं। उनका संघ का बैकग्रॉउंड है, और पिछले लोकसभा चुनावों में दुर्गादास ने कांग्रेस के रामू टेकाम को साढ़े तीन लाख से अधिक मतों से हराया था। अब एक बार फिर भाजपा ने बैतूल से दुर्गादास उइके पर भरोसा जताया है। 

कांग्रेस ने रामू टेकाम को 2019 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वे भाजपा के दुर्गादास उइके से लंबे अंतर से हार गए थे। रामू पेशे से वकील हैं। रामू मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव रह चुके हैं। वर्तमान में रामू मध्यप्रदेश आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। इस चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने रामू टेकाम को मौका दिया है।   

क्या हैं बैतूल की जनता के मुद्दे 

बैतूल की जनता का मुख्य मुद्दा महंगाई और बेरोजगारी है। यह पर उद्योगों का भारी अभाव है। हालांकि बैतूल में सतपुड़ा ताप विद्युतगृह हैं, लेकिन इनकी नई इकाइयों के न खुलने से यहां रोजगार का पर्याप्त सृजन नहीं हो रहा है। इस कारण यह के युवा महाराष्ट्र के सटे हुए जिले नागपुर और अन्य औद्योगिक शहरों में पलायन के लिए मजबूर होते हैं। 

इस क्षेत्र में पर्याप्त जंगल हैं और यहां से उपयुक्त वनोपज होती है, लेकिन बैतूल में वनोपज आधारित उद्योगों के न होने से यहां के लोग उसे आधे-पौने दाम में बाहर बेंचने को मजबूर होते हैं। वनोपज आधारित उद्योगों के आभाव से यह क्षेत्र अपने संसाधनों का पर्याप्त उपयोग नहीं कर पा रहा है। इस क्षेत्र में लम्बे समय से वनोपज आधारित उद्योग की मांग चल रही है। यहां के सांसद ने भी लोकसभा में यह मुद्दा उठाया था और हरदा-हरसूद में ऐसी औद्योगिक इकाइयों को लगाने की मांग की थी। लेकिन अभी तक स्थिति में कोई प्रगति देखने को नहीं मिली है। 

बैतूल लोकसभा में उच्च शिक्षा, विशेषकर तकनीकी शिक्षा का भी आभाव है। यहां के युवाओं को अच्छी शिक्षा के लिए पहले भोपाल-जबलपुर भागना पड़ता है फिर ठीक-ठाक आमदनी के लिए मुंबई, सूरत की और रुख करना पड़ता है। हालांकि बैतूल में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की घोषणा, विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से ठीक पहले की गई थी। लेकिन इसके अमली जामा पहनने में कितना समय लगता है ये वक्त साथ ही साफ़ हो पाएगा।  

बैतूल में कृषि के लिए अनुकूल संभावनाएं हैं, लेकिन यहां के किसानों को सिंचाई को लेकर शिकायतें रहतीं हैं। दिसंबर में हरदा के किसानों का आरोप था की उन्हें अपने खेतों की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। किसानों का कहना था कि इलाके की नहरें सूखी पड़ी हैं, और विभाग द्वारा बहुत ही कम पानी नहरों में छोड़ा जा रहा है। सिंचाई का ये आलम तब था, जब कि 3 महीने पहले ही तात्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जिले को 2 सिंचाई परियोजनाओं की सौगात दे कर गए थे।    

बैतूल लोकसभा के मद्देनजर यहां के ट्रैफिक के भार को कम करने के लिए, इंदौर-बैतूल फोरलेन हाईवे और 150 किलोमीटर इंदौर-हरदा हाईवे का काम लंबे समय से चल रहा है, लेकिन अभी पूरा नहीं हो पाया है। अगर हाईवे को किनारे कर दें तो, क्षेत्र के शहरों के अंदर की सड़कों का हाल अच्छा नही है। अगस्त 2023 में हरदा के हंडिया के लोगों ने, उनके गांव की 16 किलोमीटर सड़क 20 साल से न बन पाने पर विरोध जताया था। साथ ही यहां के लोगों ने 'रोड नहीं तो वोट नहीं' का नारा लगाकर प्रदर्शन किया था। वहीं बैतूल में भी शहर की सड़कों के निर्माण को लेकर ठेकेदारों की लापरवाही और शासन द्वारा इसकी अनदेखी की शिकायते आईं थी।    

बैतूल में मतदान दूसरे चरण में यानि, 26 अप्रैल को होने हैं। बैतूल लोकसभा में एक बार फिर से पुराने प्रतिद्वंदी आमने-सामने हैं। बैतूल में रोजगार के अवसर, औद्योगिक विकास और शिक्षा के क्षेत्र में काफी गुंजाईश नज़र आती है। लेकिन बैतूल लोकसभा की जनता रोजी, रोटी, हवा, पानी, और अपने क्षेत्र के विकास से कितनी संतुष्ट है ये भी चुनाव के नतीजों में रिफ्लेक्ट हो ही जायेगा।  

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