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अरावली को बचाने सामने आए 37 रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी, पीएम को लिखा पत्र

सेवानिवृत्त अधिकारियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर अरावली के लिए जल्द ही संरक्षण और सुरक्षा रणनीतियों की मांग की है। यहां हो रहे अवैध खनन के कारण जैव विविधता नष्ट हो रही है, साथ ही वन्यजीवों पर बुरा प्रभाव छोड़ रही है। 

By Manvendra Singh Yadav
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Aravalli Hills

Photograph: (wikimedia commons)

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भारत के अलग- अलग हिस्सों से सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर अरावली पर्वत श्रृंखला के लिए जल्द ही संरक्षण और सुरक्षा रणनीतियों की मांग की है। हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात समेत 16 काडरों के 37 रिटायर्ड प्रधान मुख्य वन संरक्षक और रिटायर्ड अन्य आईएफएस अधिकारीयों ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव को भी पत्र लिखा है। इनके अलावा वन एवं जलवायु परिवर्तन मुख्य सचिव, वन महानिदेशक के साथ-साथ 4 अरावली राज्यों के मुख्य सचिवों के इस बारे में अवगत कराया है। 

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हरियाणा से रिटायर्ड वन संरक्षक डाॅ आर पी बलवान अपनी किताब 'द अरावली ईकोसिस्टम- मिस्ट्री ऑफ द सिविलाइजेशन' में लिखते हैं कि अरावली भारत की पारिस्थिकी और सांस्कृतिक विरासत है। अरावली को पृथ्वी पर सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक होने का गौरव प्राप्त है, जिसकी उत्पत्ति लगभग 1800 मिलियन वर्ष पुरानी है। कुछ विशेषज्ञ अरावली को 2500 मिलियन वर्ष पुराना मानते हैं।

इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश से अपरिवर्तनीय जैव विविधता हानि, भूमि क्षरण और वनस्पति आवरण में गिरावट हो रही है। इससे अरावली की गोद में रहने वाले समुदायों, मवेशियों और वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र में ये भी कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों में गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली तक फैली अरावली पर्वत श्रृंखला खनन और निर्माण गतिविधियों की वजह से क्षतिग्रस्त हुई है। इस नुकसान की भरपाई भी नहीं की जा सकती है।

सबसे ज्यादा प्रभाव दिल्ली-एनसीआर के आसपास बढ़ते रियल एस्टेट के उद्योग की वजह से पड़ा है। यहां निर्माण सामग्री के लिए पर्यावरण मानदंडों को नजरअंदाज कर अवैध खनन किया जा रहा है। इसी के एवज में सरकार को खनन कंपनियों से सालाना 5 हजार करोड़ की राॅयल्टी मिलती है। मगर यही खनन नदी, जंगलों और पहाड़ों के विनाश के कारण भी हैं। 

उत्तर प्रदेश से रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी उमा शंकर सिंह कहते हैं

"समिति ने सिफारिश की कि हरियाणा और राजस्थान सरकार को कानूनी रूप से स्वीकृत खनन पट्टा क्षेत्रों के बाहर सभी खनन गतिविधियों को तुरंत रोकना चाहिए और ऐसी गतिविधियों में शामिल लोगों की पहचान करनी चाहिए और उन पर मुकदमा चलाना चाहिए। इसे कभी भी उस उत्साह के साथ लागू नहीं किया गया जिसकी आवश्यकता थी " 

उमा शंकर सिंह बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा नियुक्त केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने 2018 में एक खुलासा किया था कि राजस्थान के अलवर में 1967-68 के रिकाॅर्ड की तुलना में 31 पहाड़ियां लुप्त हो चुकी हैं। सबसे ज़्यादा असर अलवर और सीकर में ही देखा गया है। इसी समिति ने साल 2008-10 के सेटेलाइट इमेजों के जरिये पता लगाया था कि अवैध खनन की सीमाएं दोगुनी से भी ज्यादा हो गईं हैं। इसमें ज्यादातर आवंटित छोटी खदानों में ऐसा देखा गया है।  

इस पत्र में खास बात देखी जा सकती है कि गुरूग्राम और नूंह जिले में अरावली के 10 हजार एकड़ के क्षेत्र में चिड़ियाघर सफारी की परियोजना पर भी आपत्तियां जताईं गयी हैं। रिटायर्ड अधिकारियों का मानना है कि चिड़ियाघर या सफारी को अक्सर वन्यजीव संरक्षण के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। चिड़ियाघर लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रजनन में भूमिका तो निभा सकते हैं, लेकिन सीमित स्थानों में जानवरों को कैद में रखने की प्रथा उनके प्राकृतिक व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

सबसे प्रभावी संरक्षण प्रयास चिड़ियाघरों में बंदी प्रजनन कार्यक्रमों पर निर्भर रहने के बजाय प्राकृतिक आवासों की रक्षा करने और जंगल में खतरों को समझने पर ध्यान केंद्रित करने में है। महाराष्ट्र के रिटायर्ड अधिकारी डाॅ अरविंद झा कहते हैं कि भारत में सबसे कम लगभग 3.6% वन आवरण वाले हरियाणा राज्य के लिए, अरावली पर्वत श्रृंखला ही एकमात्र राहत है। यदि अछूता छोड़ दिया जाए, तो अरावली श्रृंखला इस शुष्क क्षेत्र में नमी और पर्याप्त वर्षा वापस लाने के लिए पर्याप्त होगी 

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