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क्या है डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ‘DMF’, कहां खर्च होता है इसका पैसा?

क्या है डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन 'DMF', कहां खर्च होता है इसका पैसा?
क्या है डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन 'DMF', कहां खर्च होता है इसका पैसा?

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हमारे देश में मध्यप्रदेश, झारखण्ड, उड़ीसा, और छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्य हैं जहां बड़ी मात्रा में खनिज भण्डार पाए जाते हैं। इन खनिजों का देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। खनन उद्योग देश की जीडीपी में प्रत्यक्ष तौर पर 2.1 से 2.5 फीसदी तक का योगदान देते हैं, वहीं इनका अप्रत्यक्ष योगदान 10 से 11 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।

लेकिन इन खनिजों को निकालने की प्रक्रिया में इलाके का पर्यावरण एवं आबादी का सामान्य जीवन बड़े स्तर पर प्रभावित होता है। इन्हीं नकारात्मक प्रभावों को सीमित करने के लिए वर्ष 2015 में देश में डीएमएफ की व्यवस्था की गई थी। आइये इस लेख के माध्यम से समझते हैं क्या होता है डीएमएफ और यह कैसे काम करता है। 

क्या होता है डीएमएफ 

दरअसल जिस भी इलाके में खनन की गतिविधियां संचालित होतीं है, वहां का जन समुदाय लंबे समय तक के लिए बड़े पैमाने पर प्रभावित होता है। इसी नकारात्मक प्रभाव को समतल करने के लिए वर्ष 2015 में भारत के खनिज और खनन कानून में संशोधन कर के धारा 9B जोड़ी गई थी। इस संशोधन के माध्यम से देश भर में  डीएमएफ की व्यवस्था की गई थी। यहां डीएमएफ से तात्पर्य डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन से है, जो एक अलाभकारी ट्रस्ट है। 

डीएमएफ का उद्देश्य खनन से प्रभावित और विस्थापित आबादी के लिए शिक्षा, उत्तम स्वास्थ्य, स्वच्छ पेयजल, व अन्य जरूरी अवसंरचनाओं का निर्माण करना है। इसके साथ ही यह कानून खनन से प्रभावित परिवारों को न्यायसंगत मुआवजा प्रदान करने और विस्थापित आबादी का पुनर्वास सुनिश्चित करने की बात करता है। 

कानून के अनुसार देश के हर राज्य के खनन जिले में एक डीएमएफ की स्थापना की जाती है। मध्यप्रदेश के नियम के अनुसार जिले का कलेक्टर इसका अध्यक्ष होता है, इसके अलावा प्रभावित क्षेत्र के निकायों के सदस्य और संबंधित विभागों के अधिकारी भी इसका हिस्सा होते हैं।

वर्तमान में भारत के 23 राज्यों के 644 जिलों में डीएमएफ बनाए गए हैं। इन जिलों में तकरीबन 80,000 करोड़ रुपयों की 3,20,000 परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। डीएमएफ को लेकर जनवरी 2024 में केंद्रीय खनिज मंत्रालय ने एक नई गाइडलाइन भी जारी की है। 

कैसे होता है डीएमएफ फण्ड का निर्धारण 

डीएमएफ फण्ड निर्धारित करने के लिए सरकार एक जिले से निकाले गए खनिजों के मूल्य के आधार पर खनन कंपनियों से रॉयल्टी शुल्क इकट्ठा करती है। इस रॉयल्टी की गणना खनिज के मूल्य के प्रतिशत के रूप में की जाती है। आइये इस एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। 

उदाहरण के लिए, किसी जिले में उत्पादित लौह अयस्क का मूल्य 10,000 करोड़ रुपये है। 10% की रॉयल्टी दर के साथ, सरकार 1,000 करोड़ रुपये एकत्र करती है। 

इसके बाद डीएमएफ फंड की गणना की जाती है। डीएमएफ फंड की गणना एकत्र की गई रॉयल्टी के एक तिहाई के रूप में की जाती है। अगर सूत्र के माध्यम से समझें तो: डीएमएफ फंड = रॉयल्टी एकत्रित / 3 इस प्रकार इस उदाहरण में, डीएमएफ फंड योगदान 1,000 करोड़ रुपये / 3 = 333.33 करोड़ रुपये होगा। जिसका लक्ष्य स्थानीय विकास, कल्याण, और पुनर्वास परियोजनाओं का संचालन होगा।

कैसे काम करता है डीएमएफ फण्ड 

डीएमएफ फण्ड के जरिये किए जाने वाले विकासात्मक और कल्याणकारी कार्यों को राज्य और केंद्रीय सरकार की मौजूदा योजनाओं के साथ जोड़ा जाएगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी योजनाएं एक साथ मिलकर प्रभावी ढंग से कार्य करें और प्रभावित क्षेत्रों में समग्र विकास हो। इस प्रक्रिया में, ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ का पालन किया जाएगा, जिसका अर्थ है कि जो कंपनियाँ प्रदूषण फैलाती हैं, उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा और उन्हें पर्यावरण की स्वच्छता के लिए भुगतान करना होगा।

डीएमएफ फण्ड का इस्तेमाल मुख्यतः दो प्रकार की परियोजनाओं में किया जाता है। इनमें पहले स्थान पर उच्च प्राथमिकता की परियोजनाएं आती हैं। इसके अंतर्गत क्षेत्र में अस्पताल, विद्यालय, साफ़ पानी की व्यवस्था, ग्रामीण आबादी के पशुधन इत्यादि के लिए किये जाने वाले कार्य होते हैं। केंद्रीय खनिज मंत्रालय की ओर से ये स्पष्ट निर्देश हैं कि जिले के डीएमएफ फण्ड का 70 फीसदी हिस्सा उच्च प्राथमिकता वाले कार्यों पर खर्च होने चाहिए। 

इसके बाद अन्य कार्य आते हैं जिनमें सड़क, सिंचाई व्यवस्था, ये जिले में पर्यावरण के विकास के लिए चलाई जाने वाली अन्य योजनाएं आती हैं। केंद्रीय खनिज मंत्रालय के अनुसार इस प्रकार के कार्यों पर 30 फीसदी से अधिक डीएमएफ फंड खर्च नहीं किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि शुरआत में यह 60 और 40 का था, जिसे अब बदल कर 70-30 का कर दिया गया है।  

कैसा है खनन प्रभावित क्षेत्र का वर्गीकरण 

खनन की वजह से स्थानीय आबादी को आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय परिणाम झेलने पड़ते हैं। खनन के प्रमुख नकारात्मक प्रभावों में जल, मिट्टी और वायु की गुणवत्ता के खराब होने, जल धाराओं में कमी और भूजल के सूखने जैसे गंभीर परिणाम आते हैं। इसके अलावा  खनन परिचालन, खनिजों के परिवहन, मौजूदा बुनियादी ढांचे और संसाधनों पर बढ़ता बोझ भी स्थानीय आबादी को प्रभावित कर सकता है।

डीएमएफ फण्ड के इस्तेमाल किये जाने के लिए क्षेत्रों को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है। इसमें प्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्र आते हैं जो कि खदान से सटे हुए इलाके होते हैं। यह शक्ति राज्यों के पास है कि वे प्रदेश के प्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्र का निर्धारण करें। नियमों के अनुसार यह राज्यों की जिम्मेदारी भी है वे प्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्रों की एक सूची तैयार करें। 

नई गाइडलाइन के मुताबिक किसी भी राज्य में यह क्षेत्र खदान से 15 किलोमीटर के दायरे से अधिक का नहीं होना चाहिए। देश भर में खदानों के इर्द-गिर्द बेस प्रत्यक्ष प्रभवित क्षेत्रों में राज्यों के अनुसार भिन्नता पाई जाती है। मसलन मध्यप्रदेश के नियमों के नौसार पूरा राज्य ही प्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्र में आता है। 

दूसरा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित क्षेत्र होता है जो की खदान की सीमा से अधिकतम  25 किलोमीटर के दायरे में होता है। अप्रत्यक्ष रूप से प्रभवित क्षेत्र का निर्धारण भी राज्य सरकार ही करती है। 

गाइडलाइन में प्लानिंग और ऑडिट पर दिया गया है जोर 

नई गाइडलाइन में आवंटित धन के प्रभावी उपयोग के लिए रणनीतिक योजना बनाने के महत्व पर जोर दिया गया है। गाइडलाइन के अनुसार DMF को खनन प्रभावित क्षेत्रों में जरूरतों और समस्याओं की पहचान के लिए एक आधारभूत सर्वेक्षण करना चाहिए। इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर, DMFs द्वारा एक पांच साल का व्यापक पर्सपेक्टिव प्लान तैयार किया जाएगा। इस प्लान में इस अवधि के दौरान उठाए जाने वाले कदमों और रणनीतियों का विवरण होगा। 

पर्सपेक्टिव प्लान को DMF के गवर्निंग काउंसिल द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए और इसकी जानकारी सार्वजनिक रूप से DMF की वेबसाइट पर उपलब्ध कराई जानी चाहिए ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।

पंचवर्षीय योजना के अलावा, वार्षिक योजनाएं भी विकसित की जानी चाहिए जो पर्सपेक्टिव प्लान में निर्धारित लक्ष्यों के साथ मेल खाती हों। इन वार्षिक योजनाओं में पिछले वर्षों में की गई प्रगति दर्शाई जानी चाहिए। साथ ही इसमें किसी भी आकस्मिक आवश्यकताओं को शामिल करना चाहिए, ताकि वार्षिक बजट का अधिकतम 10 फीसदी हिस्सा ऐसे अनपेक्षित खर्चों के लिए आवंटित किया जा सके। इसके साथ ही गाइडलाइन में वित्तीय हिसाब-किताब से लेकर प्रशासनिक पहलू और कार्यप्रणाली तक का सीएजी द्वारा विस्तृत ऑडिट कराए जाने की भी बात कही गई है। 

हालांकि की डीएमएफ को लेकर देश में मौजूद नियम-कानून बहुत ठोस हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन की जमीनी हकीकत चिंताजनक है। एक सरकारी दस्तावेज के अनुसार भारत में 2022-23 के बीच 877.45 करोड़ की राशि उपयोग नहीं की जा सकी। 

झारखण्ड और छत्तीसगढ़ उन राज्यों में से हैं जहां उपयोग में न लाइ जा सकी राशि बहुत बड़ी है। वहीं मध्यप्रदेश के आलोक आई सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट में वित्तीय गड़बड़ियों, व प्रशासनिक विसंगतियों को उजागर किया है। ये तथ्य स्पष्ट करते हैं कि देश और प्रदेश में डीएमएफ फण्ड का सही उपयोग नहीं किया जा रहा है, और यह अपने मूल लक्ष्य को नहीं पूरा कर पा रहा है। मध्यप्रदेश में डीएमएफ के क्रियान्वयन में हुई गड़बड़ियों पर हमारी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं। 

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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