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ट्रायल का पहला चरण 27 फरवरी से शुरू होगा जबकि 4 और 10 मार्च को दो अन्य ट्रायल किए जाएंगे। Photograph: (Sambhavna Trust)
मंगलावर 18 फरवरी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भोपाल से लाए गए यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के कचरे को जलाने के लिए ट्रायल रन शुरू करने की अनुमति दे दी है। चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिविजनल बेंच ने आदेश देते हुए कचरे के निपटान के लिए 3 चरणों में ट्रायल रन करने को कहा है। इसका पहला चरण 27 फरवरी से शुरू किया जाना है। जबकि 4 और 10 मार्च को दो अन्य ट्रायल किए जाने हैं। गैरतलब है कि पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से लाए गए कुल 337 टन विषैले कचरे का निपटान किया जाना है।
राज्य सरकार ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान अपशिष्ट निपटान प्रक्रिया से संबंधित एक रिपोर्ट कोर्ट में पेश की। इस रिपोर्ट में प्रशासन द्वारा स्थानीय स्तर पर कचरा जलाने से संबंधित सार्वजनिक जागरूकता के लिए किए गए प्रयासों के बारे में बताया है। दरअसल इस कचड़े को 2 जनवरी 2025 को भोपाल से धार जिले के पीथमपुर लाया गया था। यहां स्थित रामकी एनवायरो इंजीनियर्स नाम की कंपनी में जलाया जाना था। मगर कचरे को पीथमपुर लाते ही स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन शुरू कर दिए किए थे।
यह प्रदर्शन इतना बढ़ा कि यहां 2 लोगों ने खुद को आग भी लगा ली। इस कचड़े के तार 1984 में भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ते हैं, जिसमें 5 हजार लोगों की मौत हुई थी। इसलिए लोगों के बीच डर का माहौल पैदा हो गया था।
स्थानीय विरोध को देखते हुए सरकार ने कोर्ट से कचरे के निपटान के लिए समय मांगा था। सरकार को 6 हफ्ते का समय देते हुए कोर्ट ने स्थानीय लोगों को जागरूक करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी थी।
इन जागरूकता कार्यक्रमों को चलाने के बाद सरकार ने कोर्ट से कचड़े के निपटान का ट्रायल रन शुरू करने की मांग की थी। जिसके बाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को ट्रायल रन की अनुमति दे दी है। पीथमपुर में तीन चरणों में 10-10 टन कचरे के निपटान का ट्रायल रन शुरू किया जाएगा। पहला ट्रायल रन 27 फरवरी को 135 किग्रा प्रति घण्टे के हिसाब से किया जाएगा। जबकि 180 किग्रा प्रति घण्टे के हिसाब से दूसरा और तीसरा ट्रायल रन चालू होगा।
इस ट्रायल रन के परिणाम केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेजे जाएंगे। जो बाकी कचरे के निपटान के लिए फीड रेट तय करेगा।
पीथमपुर वेस्ट मैनेजमेंट पर उठ रहे सवाल
कोर्ट के आदेश से इतर पीथमपुर के मामले में एक और पक्ष भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे के पीड़ित चार संगठनों का है। भोपाल गैस पीड़ित स्टेशनरी कर्मचारी संघ, भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा, भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरुष संघर्ष मोर्चा और भोपाल ग्रुप फॉर इन्फोर्मेशन एंड एक्शन ने एक साझा प्रेस कांफ्रेंस में दस्तावेज साझा करते हुए बताया कि पीथमपुर वेस्ट मैनेजमेंट को मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से जल प्रदूषण के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
इस नोटिस में यह पूछा गया कि पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करने के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों न की जाए? इस साईट पर केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड टीम ने स्थानीय अधिकारियों के साथ निरिक्षण भी किया था। इस दौरान साईट के पास कुल 6 जगहों से पानी के सैंपल भी लिए गए थे। इनमें से दो जगह के पानी का रंग हल्का भूरा था। इसके अलावा निरिक्षण के दौरान डिस्पोजल लैंडफिल खुला हुआ पाया गया था। इससे अचानक वर्षा होने पे अपशिष्ट के भूजल में मिल जाने की आशंका थी।
भोपाल गैस त्रासदी से संबंधित इन चारो संगठनों का कहना है कि सरकार को खतरनाक कचरा अमेरिका भेजना चाहिए। इससे पहले साल 2003 में तमिलनाडु के कोडाइकनाल में यूनिलीवर थर्मामीटर संयंत्र के कचरे को भी अमेरिका भेजा गया था।
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2015 में कचरा जलाने के दुष्परिणाम
जिस वक्त पीथमपुर में कचरा जालाने का विरोध किया जा रहा था उस दौरान सरकार ने यह तर्क दिया था कि इससे पहले भी यहां कचरा जलाया जा चुका है। दरअसल 2015 में यूनियन कार्बाइड का 10 कचरा यहां जलाया गया था। भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी कहती हैं,
''सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि जब 2015 में कचरा जलाया गया था, तो लगभग 80 हजार लीटर डीजल का उपयोग किया गया था। यह 2010-2012 तक किसी अन्य स्रोत से खतरनाक कचरे के लिए उपयोग किए गए डीजल से 30 गुना अधिक था।"
वह भविष्य में कचरे को इसी तरह से जलाने के खतरे के बारे में बताते हुए कहती हैं कि अत्यधिक मात्रा में डीजल जलाने से न केवल गंभीर प्रदूषण होगा बल्कि इसकी वजह से भस्मक (Incinerator) से निकलने वाले धुएं में खतरनाक डाइऑक्सिन और फ्यूरन्स के स्तर की सही जानकारी नहीं मिल पाएगी।
वहीं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी एक दस्तावेज़ के हवाले से, भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने कहा,
“यह दस्तावेज़ स्पष्ट करता है कि पीथमपुर के संयंत्र में यूनियन कार्बाइड के खतरनाक कचरे को जलाने से 900 टन से अधिक राख बनने की गुंजाइश है। इस राख में अत्यधिक मात्रा में भारी धातुएं होंगी जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं।"
उन्होंने कहा कि पीथमपुर संयंत्र के संचालकों ने अपने लैंडफिल में मोटी पन्नियों के ज़रिए राख की इस भारी मात्रा को सुरक्षित करने की योजना बनाई है। इस बात की पूरी आशंका है कि इन भारी धातुओं के कारण संयन्त्र के आसपास भूजल में ज़हरीला प्रदूषण हो सकता है।
उन्होंने बताया कि पीथमपुर बचाओ समिति की हालिया भूजल जांच रिपोर्ट में डाइक्लोरोबेजीन और ट्राइक्लोरोबेंजीन जैसे ज़हरीले रसायनों की उपस्थिति बताई गयी है। यही दोनों रसायन भोपाल के प्रदूषित भूजल में भी पाए गए हैं।
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा,
“अगस्त और दिसंबर 2024 की ये रिपोर्ट्स बताती हैं कि संयंत्र में 'स्टॉर्म ड्रेन, सम्प और सर्कुलेटरी सिस्टम' जैसी वैधानिक सुरक्षा सुविधाओं का अभाव है।"
सरकार पिछले उदाहरणों से ले सबक
उनका कहना है कि पीथमपुर का संयंत्र यूनियन कार्बाइड के कचरे के निष्पादन के लिए तैयार है या नहीं इस पर मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय से अंतिम रिपोर्ट आज तक अनुपलब्ध है। भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान का कहना है कि 2003 में तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यूनिलीवर को अपने लगभग 300 टन खतरनाक कचरे को कोडाइकनाल से न्यूयॉर्क ले जाने के लिए मजबूर किया था। इस कचरे को एक क्लोज़्ड लूप संयंत्र में सुरक्षित रूप से निपटाया गया था।
वह कहते हैं कि मौजूदा तरीके से कचरे का निपटारा करने से पीथमपुर एक 'स्लो मोशन भोपाल' बन जाएगा। वह सवाल उठाते हुए कहते हैं,
"अगर अमेरिकी सरकार हमारे नागरिकों को बेड़ियों में जकड़ कर वापस भेज सकती है, तो क्या हमारी सरकार कानूनी रूप से वैध रास्ता अपनाकर यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा अमेरिका नहीं भेज सकती?"
हाईकोर्ट के मौजूदा फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पीथमपुर बचाओ समिति के अध्यक्ष डॉ हेमंत हीरोले कहते हैं कि सरकार ने जनता का पक्ष कोर्ट में नहीं रखा है जिसके चलते यह फैसला आया है। डॉ हीरोले ने कहा कि वह कोर्ट के समक्ष इस ट्रायल रन को रोकने के लिए याचिका दायर करेंगे, आगे की नीति उसी के अनुसार बनाई जाएगी।
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