साल 2023 की 20 जुलाई को, वन विभाग ने राजवास गांव के 506 एकड़ अरावली क्षेत्र को वन (संरक्षण) अधिनियम के तहत संरक्षित वन घोषित करने का नोटिफिकेशन जारी किया गया था। दरअसल यह क्षेत्र उन पहाड़ियों का हिस्सा है जिन्हें संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाएगा, ताकि ग्रेट निकोबार में एक बड़े अवसंरचना परियोजना के कारण एक मिलियन पेड़ों के नुकसान की भरपाई की जा सके।
इस नोटिफिकेशन में महेन्द्रगढ़ जिले के राजावास के खासरा नंबर 91 से 124 तक के क्षेत्रों का उल्लेख किया गया था। गौरतलब है कि राजावास की भूमि, इस वर्ष पहले ही संरक्षित वन की स्थिति प्राप्त करने वाले 22,400 हेक्टेयर का एक हिस्सा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार खनन विभाग ने इसी भूमि के एक हिस्से के लिए ई-नीलामी का आयोजन किया, जिसमें 119.5 एकड़ भूमि को खनन के लिए आवंटित किया गया। नीलामी के बाद एक कंपनी को 4 अगस्त को 10 साल के लिए पत्थर खनन का लाइसेंस दिया गया, जिसमें प्रति वर्ष 1.4 मीट्रिक टन तक खनन करने की अनुमति दी गई।
स्थानीय निवासी इस निर्णय को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि साल 2016 में जब खनन शुरू हुआ था, तो इससे गांव में भारी तबाही हुई थी। इलाके के घरों में दरारें आ गईं और बच्चों में चिंता का माहौल बन गया था।
गांव के लोग इस खनन के खिलाफ हैं और उनका मानना है कि यह उनके एकमात्र आजीविका के साधन, कृषि, को नष्ट कर देगा और जलवायु को भी प्रभावित करेगा। गांव वालों ने वर्षों से वन्यजीवों के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन बिताया है, क्योंकि उनके पास सह-अस्तित्व के लिए पर्याप्त स्थान था। उन्होंने कहा कि खनन के कारण वन्यजीवों का आवास नष्ट होगा, जिससे समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
अरावली के इस क्षेत्र को संरक्षित करने का निर्णय केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा ग्रेट निकोबार परियोजना के लिए मंजूरी मिलने के बाद लिया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक वन स्थिति को हटाया नहीं जाता, तब तक राजावास में खनन शुरू नहीं हो सकता। खनन गतिविधियों के लिए वन विभाग से पूर्व अनुमति आवश्यक है।
इस विषय को लेकर खनन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने सभी नियमों का पालन किया है और ई-नीलामी के दौरान उन्हें कोई आपत्ति नहीं मिली थी। वहीं वन विभाग ने स्पष्ट किया है कि राजावास में खनन के लिए कोई नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) नहीं दिया गया है, क्योंकि यह क्षेत्र पहले से ही संरक्षित वन है।
स्थानीय निवासियों ने सरकार से अरावली क्षेत्र के संरक्षण की मांग की है और उन्हें उम्मीद थी कि संरक्षित वन का दर्जा उनकी चिंताओं को कम करेगा। लेकिन खनन की अनुमति मिलने से उनकी चिंताएं फिर से बढ़ गई हैं।
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