भारत में जहां एक तरफ कई इलाकों में 5जी इंटरनेट की शुरुवात हो चुकी है तो वहीं उत्तराखंड में 3500 गांव ऐसे हैं जहां लोग आज भी 2 जी इंटरनेट के युग में ही जी रहे हैं, और 700 गांव तो ऐसे हैं जहां मोबाईल नेटवर्क है ही नहीं।
उत्तराखंड के बागेश्वर में 97 गांवों में मोबाईल नेटवर्क उपलब्ध नहीं है, बागेश्वर का जौंणा एक ऐसा ही गांव है जो इंटरनेट कनेक्टिविटी कमज़ोर होने का खामियाज़ा भुगत रहा है, इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों की शिक्षा पर पढ़ रहा है।
कक्षा ग्यारहवी की छात्रा गीतांजलि बताती हैं कि वो गूगल और यूट्यूब की मदद से कई सवालों के हल खोजती हैं, यूट्यूब पर वीडियो देखकर समझने से कई विषय आसान हो जाते हैं, लेकिन उनके यहां नेटवर्क बेहद धीमा आता है जिससे वीडियों देखने में रुकावट का सामना करना पड़ता है।
कक्षा 8 की छात्रा निशा कहती हैं-
"जब कोविड की वजह से लॉकडाउन हुआ था तो सारी पढ़ाई ऑनलाईन होती थी, तब हमारे घर में केवल एक फोन था जो मेरे पिता काम पर ले जाते थे, ऐसे में मुझे पढ़ाई का काफी नुकसान हो रहा था"
कोविड लॉकडाउन के समय ऑनलाईन पढ़ाई करना मजबूरी बन गया था, ऐसे में अभिभावकों ने आर्थिक तंगी के बावजूद अपने बच्चों को स्मार्टफोन खरीदकर दिया।
निशा की मां कहती हैं कि
"हमने बहुत मुश्किल से पैसों की व्यवस्था कर अपनी बेटी को स्मार्ट फोन दिलाया था, ताकि उसकी पढ़ाई में कोई दिक्कत न हो। लेकिन नेटवर्क की समस्या का यहां कोई हल हमारे पास नहीं है, मेरी बेटी की पढ़ाई में अभी भी दिक्कतें आ रही हैं।"
गीतांजलि कहती हैं कि उन्हें ऑनलाईन पढ़ाई करना अच्छा नहीं लगता, स्कूल में शिक्षक से समझना ज्यादा सहज होता है। निषा भी कहती हैं कि 'स्कूल बंद नहीं होने चाहिए, स्कूल में अगर हमें कोई डाउट होता है तो हम सीधे शिक्षक से पूछ सकते हैं।'
गरुड़ ब्लॉक से 20 किमी दूर रौलियाना गांव की ममता का कहना है-
"जब हमें ऑनलाइन क्लास के लिए फोन उपलब्ध हो भी जाता है तो नेटवर्क की समस्या आड़े आ जाती है। कई बार घर से एक किमी दूर पहाड़ पर एक निश्चित स्थान पर जाना होता है, जहां कुछ समय के लिए नेटवर्क उपलब्ध होता है। अभिभावक इतनी दूर आने की इजाज़त भी नहीं देते हैं।"
वहीं एक अन्य स्कूली छात्रा का कहना था कि पिछले दो वर्षों में नेटवर्क की कमी के कारण शायद ही ऐसा कोई दिन होता है जब हम अपनी क्लास पूरी कर पाए हैं।
कपकोट ब्लॉक के बघर गांव की नेहा का कहती हैं-
"इंटरनेट की सुविधा नहीं होने के कारण वो पढ़ाई के लिए केवल पुस्तकों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। यदि गांव में इंटरनेट की सुविधा होती, तो हमें अनेक विषयों के बारे में नवीनतम जानकारियां आसानी से प्राप्त हो सकती थीं। हम यूट्यूब के माध्यम से ऑनलाइन पढ़ाई भी कर सकते थे। स्कूल में कई बार जिन विषयों के बारे में हमें नहीं बताई जाती है वह हमें इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त हो सकती थी। इंटरनेट न होने के कारण बहुत सी जानकारियां हमसे छूट जाती है, हमें नहीं पता होता है कि हमारे आसपास, हमारे देश में क्या चल रहा है?"
नेहा के अनुसार इस प्रकार की समस्या से गांव की लगभग सभी किशोरियां जूझ रही है। गांव की एक अन्य किशोरी सोनिया का कहना है कि-
"अगर हमारे गांव में इंटरनेट की सुविधा होती तो हमें दूर जंगलों में जाकर इंटरनेट चलाने की जरूरत नहीं पड़ती। वहां जाना हमारी मजबूरी होती है जबकि वहां जंगली जानवरों का डर भी सताता रहता है कि कही कोई हिंसक जानवर हम पर हमला न कर दे। हम चाहते हैं कि हम भी देश और दुनिया की खबरों से रुबरु रहें इसलिए हम लोग वहां जाते हैं।"
यह समस्या सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, देश में 25 हज़ार ऐसे गांव हैं जहां मोबाईल कनेक्टिविटी नहीं पहुंची है। ज़रुरत है कि देश के दूरस्थ इलाके में रह रहे बच्चों को भी वो सभी अवसर और सुविधाएं उपलब्ध हों जो एक शहरी बच्चे को मिल रही हैं।
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