Skip to content
Home » HOME » इन बस्तियों में आकर बिखर जाता है स्वच्छ भारत मिशन

इन बस्तियों में आकर बिखर जाता है स्वच्छ भारत मिशन

cleanliness in india

वंदना कुमारी, मुजफ्फरपुर, बिहार | वर्तमान में केंद्र सरकार देश को स्वच्छ बनाने के लिए बड़े पैमाने पर ‘स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत’ अभियान चला रही है. इसके लिए प्रत्येक वर्ष स्वच्छ शहर की घोषणा भी की जाती है. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या केवल शहरों के साफ़ हो जाने से भारत स्वच्छ कहलायेगा? दरअसल इसकी परिकल्पना तब सार्थक होगी, जब ग्रामीण वातावरण की स्वच्छता बरकरार रहेगी. जब शहर के साथ साथ गांव भी तेज भागती जिंदगी और संसाधनों के बेहिसाब व बेतरतीब प्रयोग के चलते आज केवल शहर ही नहीं, बल्कि गांव भी अस्वच्छ व अस्वस्थ होते जा रहे हैं. इसका एक प्रमुख कारण मानव बसावट (बढ़ती आबादी) का अधिक होना भी है. प्लास्टिक का अंधाधुंध प्रयोग, कूड़े-कचरे का अंबार, पानी का जमाव, खुले में शौच, सड़क किनारे कूड़े-कचरे का निष्पादन करना आदि स्वच्छता की मुहिम को प्रभावित कर रहे हैं. ऐसे में ‘स्वस्थ भारत, स्वच्छ भारत’ की कल्पना करना बेमानी है.

वास्तव में, केंद्र सरकार देश को स्वच्छ, निर्मल और सुंदर बनाये रखने को गंभीर तो दिखती है, लेकिन योजना का क्रियान्वयन धरातल पर पूरी तरह उतरता नहीं दिख रहा है. हालांकि स्वच्छता का मानक पूरा करने वाले गांवों को सरकार ‘निर्मल ग्राम’ घोषित करके पुरस्कार प्रदान करती है. वहीं ग्रामीण इलाकों में ‘लोहिया स्वच्छता मिशन’ के तहत हर घर में शौचालय बनाने की योजना पूर्व से चली आ रही है. भारत के एक लाख से अधिक गांव ओडीएफ गांवों की सूची में शुमार हैं. अपने गांव को स्वच्छ, स्वस्थ एवं हरा-भरा रखने की दिशा में बेहतर प्रयास किये भी जा रहे हैं. ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत 1,01,462 गांव खुले में शौच से मुक्त रखने में कामयाब हुए हैं. खुले में शौच मुक्त राज्यों में शीर्ष- तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश हैं, जिसने शत-प्रतिशत गांवों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाकर स्वच्छ और स्वस्थ गांव बनाया है. इस मिशन के तहत कचरा प्रबंधन, अपशिष्ट जल उपचार, प्लास्टिक कचरे का निष्पादन, पशु अपशिष्टों से खाद निर्माण आदि करने की योजना है. जिससे ग्रामीणों की जीवनशैली में परिवर्तन लाकर आय का सृजन करना ध्येय है. ओडीएफ मुक्त गांवों की सूची बहुत लंबी जरूर है पर आज भी ऐसे गांव हैं जहां लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं. आश्चर्य कि उनके घर में कच्चा शौचालय भी उपलब्ध नहीं है. खुले में शौच करने के दौरान छेड़छाड़ की शिकार महिलाओं की व्यथा सभ्य और शिक्षित समाज के लिए सबसे अधिक पीड़ादायक है.

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मुशहरी प्रखंड स्थित मणिका विशुनपुर चांद और बाढ़ग्रस्त राजवाड़ा भगवान पंचायत की दलित बस्ती की महिलाएं शौचालय के अभाव में खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. ऐसा लगता है कि सरकार की तमाम योजनाएं इस गांव में आकर दम तोड़ते नजर आ रही हैं. बाढ़ से उपजी गरीबी और बेबसी ने यहां के आम-अवाम की जिंदगी को खानाबदोश जैसा बना दिया है. गरीबी के कारण न उनके पास पक्का मकान है और न ही शौचालय की समुचित व्यवस्था है. बार-बार बाढ़ की विभीषिका झेलने को मजबूर अधिकतर लोग बेघर होकर पलायन करने को बाध्य हो जाते हैं और खुले में शौच जाना उनकी मजबूरी बन जाती है. मुशहरी के दर्जनों गांवों में भुखमरी व गरीबी का दंश झेल रहे लोग गंदगी में जीने को अभिशप्त हैं. ज्यादातर लोग मलेरिया, टाइफाइड, टीबी, दमा, एसटीडी जैसी कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं.

एक महिला ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि बाढ़ के दौरान सांप, बिच्छू से अधिक डर यहां के मनचलों से रहता है. महिलाओं को सुबह में शौच जाने की मजबूरी रहती है. कई बार मनचलों द्वारा फब्तियां भी कसी जाती है, लेकिन सिर नीचे करके हम सभी महिलाएं अपने घर वापस हो जाते हैं. अधिकतर महिलाओं के पति प्रदेश से बाहर रोजी-रोटी के लिए पलायन कर जाते हैं. इतनी कमाई भी नहीं होती है कि घर में शौचालय बनाया जा सके. राजवाड़ा भगवान पंचायत की मुखिया जयंती देवी ने कहा कि स्वच्छता मिशन के तहत शौचालय का निर्माण करवा रही हूं, लेकिन यहां के लोग शौचालय के प्रति जागरूक नहीं हैं. राजवाड़ा सहनी टोले के जागरूक लोगों ने खुद से शौचालय बनवाया है, जो बांस की कमची और खंभे से निर्मित शौचालय है. चारों तरफ से प्लास्टिक लिपटा है. महिलाओं ने बताया कि दिन में शौच जाने में शर्म आती है. हम लोग नजर बचाकर घर से दूर किसी झाड़ी की आड़ में शौच के लिए जाते हैं, जिससे विषैले सांप, बिच्छू और जानवरों से डर लगा रहता है.

जिला के मुशहरी प्रखंड क्षेत्र स्थित मांझी बहुल टोले में तो स्वच्छता का घोर अभाव दिखता ही है, गरीबी, बीमारी और भुखमरी ने भी यहां की जिंदगी को बेहाल बना कर रखा है. सिर्फ मुशहरी ही नहीं, जिले के 16 प्रखंडों के दर्जनों मुसहर टोलों की स्थिति गरीबी, अशिक्षा के साथ-साथ स्वच्छता के मामले में भी बेहद गंभीर व नारकीय है. भले ही महादलितों के नाम पर कई कल्याणकारी योजनाएं व सरकारी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, लेकिन बिहार के विभिन्न जिलों की सैकड़ों महादलित बस्तियों की हकीकत आंखें खोलने वाली हैं, खासकर स्वच्छता के मामले में. इस संबंध में राकेश कुमार कहते हैं कि यहां के लोगों की जिंदगी छह महीने बाढ़-विस्थापन के कारण बेहाल रहती है, तो बाकी के महीने उससे उबरने में बीत जाते हैं. कुछ लोग नदी के कटाव की पीड़ा झेलते रहते हैं, तो कुछ लोग पलायन की पीड़ा झेलते रहते हैं. महीने में दस दिन काम करते हैं, तो बीस दिन बैठना पड़ता है. ऐसी स्थिति में ये लोग क्या ही शिक्षा पर ध्यान देंगे और क्या ही स्वच्छता पर काम करेंगे? एक प्रकार से इन लोगों को अपने हाल पर जीने को विवश कर दिया गया है. (चरखा फीचर)

यह भी पढ़ें

Ground Report के साथ फेसबुकट्विटर और वॉट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं और अपनी राय हमें Greport2018@Gmail.Com पर मेल कर सकते हैं।

Author

  • चरखा मीडिया के माध्यम से ग्रामीण हाशिए के समुदायों को अपने अधिकारों को पहचानने और उन्हें प्राप्त करने के लिए सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। http://www.charkha.org

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.