Skip to content
Home » HOME » मैहर सीमेंट उद्योग: दमा और बेरोज़गारी की कहानी

मैहर सीमेंट उद्योग: दमा और बेरोज़गारी की कहानी

Maihar cement Plant air pollution report

मध्यप्रदेश के सबसे नए ज़िले मैहर में सीमेंट के उत्पादन का व्यवसाय बेहद पुराना है. इस विधानसभा से गुज़रने वाले राष्ट्रिय राजमार्ग से गुज़रते हुए हो आपको इटहरा गाँव नज़र नहीं आएगा. मगर दूर से ही एक सीमेंट फैक्ट्री का प्लांट ज़रूर नज़र आता है. यह रिलायंस सीमेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड का प्लांट है. मैहर शहर में इटहरा की पहचान इसी सीमेंट फैक्ट्री के होने से होती है. मगर इस प्लांट से 0.1 किमी दूर स्थित गाँव खेरवा कलां के लोगों के लिए यह पहचान गर्व करने लायक नहीं है. 

maihar reliance cement factories and health crisis
मैहर में स्थित रिलायंस सीमेंट फैक्ट्री, फ़ोटो – ग्राउंड रिपोर्ट  

प्लांट से छोड़ी जाती है धूल

खेरवा कलां के जीतेन्द्र सिंह बुंदेला (50) बताते हैं,

“सीमेंट फैक्ट्री द्वारा ज़्यादातर रात में धुल उड़ाई जाती है. ऐसे में सोते समय यहाँ के लोगों के शरीर में साँस के ज़रिए वह धूल जाती है.”

बुंदेला कहते हैं कि इस धूल के चलते यहाँ के लोगों को खसरा और दमा की समस्या हो रही है. गाँव के लोग हमें बताते हैं कि उन्होंने कई बार प्लांट के अधिकारियों से इस धूल को नियंत्रित करने के लिए भी निवेदन किया मगर उसका कोई भी असर नहीं हुआ. राजेन्द्र प्रसाद प्रजापति कहते हैं, “हमने एक-दो बार अपनी माँग को लेकर चक्का जाम किया और ज्ञापन भी सौंपे मगर कंपनी हमारी कभी भी नही सुनती है.” 

धूल के आगे बेबस दवा

अपने छोटे से घर में खटिया पर लेटे काली (62) हमारी आवाज़ सुनकर बाहर आते हैं. वह बताते हैं कि वह बीते कुछ सालों से ‘आए दिन’ बीमार हो जाते हैं. उन्हें साँस लेने में दिक्कत और खाँसी की समस्या बनी रहती है. इसका कारण पूछने पर वह यहाँ की बघेली बोली में कहते हैं,

“गर्दा (dust) उड़त है, ऐसे खाँसी आउत ही.” (धूल उड़ती है इसलिए खाँसी आती है.)

उन्होंने अपना इलाज मैहर में स्थित सरकारी अस्पताल में भी करवाया मगर उनके अनुसार “दवाइयाँ कुछ भी असर नहीं करती.” यहाँ लगातार उड़ती धूल के आगे दवाओं का हार मान जाना कोई अचरज वाली बात भी नहीं लगती है. वहीँ गाँव के राजेन्द्र प्रसाद प्रजापति कहते हैं, “दिन में कम से कम 100 ट्रक यहाँ से निकलते हैं. उससे जो धूल उड़ती है उससे अलग दिक्कत होती है.”

maihar cement factories and health crisis
सीमेंट फैक्ट्री के सामने 50 से भी अधिक ट्रक कतारों में खड़े हुए हैं, फ़ोटो – ग्राउंड रिपोर्ट  

सबसे प्रदूषित इकाई में से एक है सीमेंट प्लांट

मध्य प्रदेश में कुल 101 औद्योगिक इकाइयाँ ऐसी हैं जो अत्यधिक प्रदूषण कारक हैं. सीमेंट में 3-8 प्रतिशत तक एल्युमिनियम ऑक्साइड, 60 से 70 प्रतिशत कैल्शियम ऑक्साइड और 17 से 25 प्रतिशत तक सिलिकॉन ऑक्साइड होता है. वहीं सीमेंट डस्ट में आर्सेनिक, एल्यूमीनियम, कैडमियम, ज़िंक और आयरन जैसे तत्व होते हैं. ध्यान देने योग्य बात यह है कि आर्सेनिक से जायदा समय संपर्क में रहने एक चलते कैंसर जैसे रोग भी हो सकते हैं. जीतेन्द्र सिंह बुंदेला कहते हैं,

“ऐसा कोई महीना नहीं होता है जब यहाँ किसी एक व्यक्ति की मौत नहीं होती हो.”

वह बताते हैं कि मरने वालों में अमूमन लोग दमे का शिकार होते ही हैं.            

Also Read:  Pollution in Delhi soar 68% within 24hrs: CSE Report

ज़मीन अधिग्रहित की मगर रोज़गार नहीं दिया

खिलजी बाई (45) बताती हैं कि उनकी 1.5 एकड़ ज़मीन कंपनी द्वारा अधिग्रहित की गई थी. इस दौरान उनके बच्चों को कंपनी में नौकरी का वादा भी किया गया था. मगर वह वादा आज तक पूरा नहीं हुआ है.

“जब ज़मीन ली गई थी तब मेरे बच्चे छोटे थे. तब वह नौकरी नहीं कर सकते थे. बाद में जब वह नौकरी माँगने के लिए कंपनी में गए तो उनको भगा दिया गया.”

खिलजी बाई की तरह यह बात कई और लोग दोहराते हैं. 

maihar cement factories and health crisis
गाँव के पेड़ों में सीमेंट युक्त धूल दिखाई देती है, फ़ोटो ग्राउंड रिपोर्ट

खेती में होती दिक्कत

इसी गाँव के रहने वाले कोदूलाल बताते हैं कि साल 2014 में उनकी नौकरी में रखा गया था. उन्हें मलबा उठाने और साफ़-सफाई करने का काम दिया गया था. मगर साल 2017 में उन्हें अचानक से नौकरी से निकाल दिया गया. कोदूलाल भूमिहीन किसान हैं. वह कहते हैं,

“हम अरहर से लेकर सब्ज़ी तक सब बोते हैं मगर बेंचने लायक फसल नहीं होती है. पेड़ सूख जाते हैं.”

वहीँ खिलजी बाई बताती हैं कि उनका खेत कंपनी के बेहद पास में स्थित है. जब धूल छोड़ी जाती है तब उनको दिक्कत होती है, “खेत में काम करते हुए खाँसी आने लगती है. धूल के कारण हमें हमेशा सर्दी-खाँसी हो जाती है.” 

जनप्रतिनिधियों के वादे पर वादे

यहाँ के लोगों का कहना है कि वह अपनी समस्याओं को लेकर कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों के पास लेकर जा चुके हैं. मगर प्रजापति के अनुसार “सब सुन बस लेते हैं, बदलता कुछ नहीं है.” इस मामले में अपने हमने यहाँ से कांग्रेस के विधानसभा प्रत्याशी और पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष धर्मेश घई से सवाल किया. इस मामले में जवाब देते हुए वह कहते हैं,

“कंपनियों द्वारा प्रदूषण रोकने के लिए जो डिवाइस लगाई जाती है उसे चालू नहीं किया जाता है.”

वह आगे कहते हैं कि उनके विधायक बनने पर इन कंपनियों को डिवाइस शुरू करने और सीएसआर के तहत दमा पीड़ितों का इलाज करवाने के लिए निर्देशित किया जाएगा.      

maihar cement factories and health crisis
मैहर की इस सीमेंट फैक्ट्री से न तो स्थानीय लोगों को रोज़गार मिला न शुद्ध साँस, फ़ोटो – ग्राउंड रिपोर्ट

कंपनी में उपकरण को लेकर अस्पष्टता

गौरतलब है कि साल 2014 में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा औद्योगिक इकाइयों में विभिन्न प्रदूषण को मॉनीटर करने के लिए उपकरण (CEMS) लगवाने के निर्देश दिए गए थे. साल 2019 में सरकार को जारी एक दस्तावेज़ में इस कंपनी द्वारा ऐसे उपकरण के प्लांट में होने की बात कही थी. साल 2022 में स्टेट पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (MPPCB) की एक रिपोर्ट में प्रदेश में स्थित उन औद्योगिक इकाइयों का ज़िक्र किया गया था जहाँ रियल टाइम पर्यावरण मोनिटरिंग सिस्टम लगाए गए थे. गौरतलब है कि मैहर का यह प्लांट उस रिपोर्ट में शामिल नहीं है. ऐसे में इन उपकरणों के प्लांट में लगे होने पर संशय कायम है. हमने इसी दूर कहरने के ली प्लांट के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश मगर हमारे फ़ोन का कोई भी उत्तर नहीं दिया गया.

Also Read:  Bhopal: वाहनों का प्रदूषण कैसे डालता है पर्यावरण और आप की सेहत पर असर?

यह भी पढ़ें

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us on GReport2018@gmail.com

Author

  • Shishir is a young journalist who like to look at rural and climate affairs with socio-political perspectives. He love reading books,talking to people, listening classical music, and watching plays and movies.

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Advertisements