Loksabha Election 2024: बालाघाट मध्यप्रदेश की बहुत ही संवेदनशील लोकसभा है। बालाघाट महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के साथ अपनी सीमाएं साझा करता है। बालाघाट अभी भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आता है। देखा जाए तो बालाघाट में हर पार्टी ने अपना दम-खम दिखाया है, लेकिन 1998 से यहां लगातार भाजपा ही जीतती आई है, हालांकि यहां के चुनाव में प्रत्याशी आमतौर पर रिपीट नहीं हुए हैं। आइये देखते हैं बालाघाट का चुनावी माहौल और समझते हैं यहां की जनता के मुद्दे।
क्या कहती है बालाघाट की डेमोग्राफी
बालाघाट लोकसभा के अंतर्गत कुल 8 विधानसभाएं आती हैं, जिनमे से दो बरघाट और सिवनी, सिवनी ज़िले की हैं। यहां की आठ में से चार विधानसभाओं पर भाजपा के विधायक हैं और बाकी 4 कांग्रेस के।
बालाघाट एक ग्रामीण लोकसभा है, यहां के 84 फीसदी मतदाता ग्रामीण हैं। बालाघाट में आदिवासी मतदाता 24.2 फीसदी और अनुसूचित जाती के मतदाता 8 फीसद हैं, वहीं बालाघाट में में मुस्लिम मतदाता तकरीबन 3.5 प्रतिशत हैं।
इस बार कौन है बालाघाट में आमने सामने
इस बार बालाघाट से भारतीय जनता पार्टी ने अपने सिटिंग, सांसद ढाल सिंह बिसेन का टिकट काट कर, पार्षद भारती सिंह पारधी को टिकट दिया है। भारती सिंह पारधी भाजपा महिला मोर्चा के प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के कई पदों पर कार्य कर चुकी हैं। भारती, पंवार समुदाय से आती हैं, और भारती सिंह के ससुर भोलाराम पारधी भी बालाघाट से सांसद रह चुके हैं।
कांग्रेस ने भी बालाघाट से एक प्रयोग किया है। जब कयास लगे जा रहे थे की बालाघाट से हिना लिखीराम कांवरे को टिकट दिया जायेगा तब कांग्रेस ने बालाघाट से सम्राट सिंह सरस्वार को टिकट दिया है। सम्राट बालाघाट के वर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष हैं, और कांग्रेस के संगठन में कार्य कर चुके हैं। सम्राट के पिता अशोक सिंह सरस्वार भी बालाघाट के विधायक रह चुके हैं।
क्या हैं बालाघाट की जनता के मुद्दे
बालाघाट एक पिछड़ा क्षेत्र है, लेकिन यहां कुछ सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां पर स्कूल है, बालाघाट में नवोदय और एक्सिलेंस स्कूल भी है। बालाघाट में उच्च शिक्षा के भी संस्थान हैं, बालाघाट में शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज भी है। बालाघाट में मेडिकल और लॉ कॉलेज नहीं थे, और उसकी मांग लंबे समय से चल रही थी। अक्टूबर में शिवराज सिंह ने बालाघाट में मेडिकल और लॉ कॉलेज की घोषणा और भूमिपूजन भी कर दिया है, लेकिन इन कॉलेजों को आकार लेने में कितना वक्त लगेगा, ये समय आने पर ही पता चलेगा।
बालाघाट स्टेट हाईवे पहले एक ओर नागपुर-रायपुर, और दूसरी ओर जबलपुर-सिवनी हाईवे से जुड़ता था, इस वजह से इस हाईवे में टैफिक का अतिरिक्त भार आता था। अब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस बालाघाट सिवनी स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे 543 में शामिल करके 4 लेन बनाने की घोषणा की है, साथ ही बारासिवनी रेलवे क्रासिंग पर फ्लाईओवर बनाने की भी घोषणा की है। इस प्रोजेक्ट पर काम अभी जारी है।
बालाघाट को ट्रेनों की भी कई सौगातें मिली है, जैसे कि रीवा से इतवारी जाने वाली ट्रेन को लामता में स्टॉपेज दिया गया है। इसके अलावा जबलपुर गोंदिया पैसेंजर ट्रेन भी शुरू की गई है जो बालाघाट होकर जाएगी। अमृत भारत योजना के तहत बालाघाट के रेल्वे स्टेशन को भी चुना गया है। बालाघाट रेल्वे स्टेशन को 7.4 करोड़ की लागत से विकसित और विस्तारित करके हाईटेक बनाया जायेगा।
नक्सलवाद अभी भी बालाघाट के लिए समस्या बना हुआ है। आए दिन पुलिसकर्मियों की नक्सलियों से मुठभेड़ की खबरें आती रहती हैं। 2 अप्रैल को यह लेख लिखते हुए भी समाचार मिला कि पुलिस ने मुठभेड़ में एक 29 और एक 14 लाख का इनामी नक्सली मार गिराया है। ये नक्सली गतिविधियां बालाघाट में फ्रिक्वेंट हैं, जिससे जनसामान्य को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता है।
बालाघाट खनिजों से संपन्न क्षेत्र हैं। बालाघाट से देश का 80 प्रतिशत मैंगनीज निकलता है। बालाघाट के मलाजखंड में तांबे की भी खदानें हैं, जिसमें पास देश का 70 प्रतिशत कॉपर रिजर्व है, इसके अलावा बालाघाट में बाक्साइट, डोलोमाइट इत्यादि खनिज भी मिलते हैं। इन सभी खनिजों के खनन की कीमत क्षेत्र को उनके जलाशयों से चुकानी पड़ती है।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और मध्यप्रदेश राज्य प्रदूषण नियत्रण बोर्ड ने मिल कर इस क्षेत्र का सर्वे किया था। सर्वे में बंजर नदी, चिंडीटोला झील, करमसरा झील, और लोगों के घरों से पानी लेकर उसका परीक्षण किया गया था। सर्वे में पाया गया की खेत्र के पानी भरी धातु जैसे कि तांबा, लेड, और क्रोमियम काफी मात्रा में उपलब्ध हैं, जो कि जल की गुणवत्ता और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए नुकसानदेह है।
बालाघाट का एयर क्वालिटी इंडेक्स 107 है जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। बालाघाट में प्रदूषण और नक्सलवाद की स्थिति काफी गंभीर है, शासन द्वारा इसके बावत वक्त रहते जिम्मेदार कदम उठाना बेहद जरूरी है। बालाघाट में मतदान 19 अप्रैल को यानी प्रथम चरण में ही होगा। इस बार भाजपा और कांग्रेस के एक्सपेरिमेंट कितने सफल होते हैं, और गंभीर प्रदूषण का मुद्दा चुनावी डिस्कोर्स में कितनी जगह बना पाता है, ये समय आने पर ही पता चलेगा।
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