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केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट से बुन्देलखण्ड स्विट्ज़रलैंड बनेगा या फिर सुडान?

दिसंबर 2021 को केन्द्रीय मंत्रालय द्वारा 44,605 करोड़ की लागत वाले केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट (KBLP) को स्वीकृति प्रदान की गई.

By Shishir Agrawal
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Ken Betwa Link Project

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का साझा बुंदेलखंड का इलाका सूखे और किसानों की आत्महत्या के लिए कुख्यात रहा है. पानी की कमी, उसके चलते सूखते खेत और अस्त-व्यस्त होता जीवन एक बड़ा और ‘सदाबहार’ चुनावी मुद्दा भी रहा है. दिसंबर 2021 को केन्द्रीय मंत्रालय द्वारा 44,605 करोड़ की लागत वाले केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट (KBLP) को स्वीकृति प्रदान की गई. इस प्रोजेक्ट के ज़रिये मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुल 6 ज़िलों की 10.62 लाख हेक्टेयर भूमि के सिंचित हो जाने का अनुमान है. इसके अलावा यहाँ 103 मेगावाट हाइड्रो पॉवर और 27 मेगावाट सोलर पावर उत्पादित करने का भी लक्ष्य है. बुंदेलखंड से ही आने वाली मध्यप्रदेश की पूर्व सीएम उमा भारती का कहना है कि उस प्रोजेक्ट से बुंदेलखंड स्विट्ज़रलैंड बन जाएगा. हालाँकि बुन्देलखण्ड स्विट्ज़रलैंड बनता है या फिर सुडान यह देखने वाली बात होगी. 

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Ken Betwa inter linking of river project
Source: PIB
Ken Betwa inter linking of river project

क्या है केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट?

केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट या केबीएलपी सबसे पहले साल 1982 में प्रस्तावित किया गया था. आसान भाषा में इसे समझें तो इस प्रोजेक्ट में कैनाल के ज़रिए मध्यप्रदेश की केन नदी को उत्तर प्रदेश की बेतवा से जोड़ा जाएगा. सरकार का कहना है कि केन के ‘सरप्लस वाटर’ को बेतवा तक पहुँचाने से बुन्देलखण्ड के 62 लाख लोगों की प्यास बुझेगी और सूखा ख़त्म होगा. इस प्रोजेक्ट को लेकर मार्च 2021 में जल शक्ति मंत्रालय, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा समझौता पत्र (memorandum of agreement) पर हस्ताक्षर किए गए थे. प्रोजेक्ट के तहत मध्यप्रदेश के छतरपुर ज़िले में केन नदी पर 77 मीटर ऊँचा और 2 किलोमीटर चौड़ा धौधन बांध (Daudhan dam) बनेगा. इस बाँध पर पानी इकठ्ठा किया जाएगा और अतिरिक्त पानी को 230 किलोमीटर लम्बी कैनाल के ज़रिए बेतवा नदी में छोड़ा जाएगा. 

Ken betwa river linking map

क्या है प्रोजेक्ट को लेकर विवाद?

सरकार का यह महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट बेहद विवादित भी रहा है. प्रोजेक्ट को साल 2016 में नेशनल बोर्ड फ़ॉर वाइल्ड लाइफ (NBW) से मंज़ूरी मिल चुकी है. मगर सुप्रीम कोर्ट की केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति (Central Empowered Committee) के अनुसार, “नेशनल बोर्ड ऑफ़ वाइल्ड लाइफ की स्थाई समिति द्वारा प्रोजेक्ट को मंजूरी इस बात को सिद्ध नहीं करती है कि प्रोजेक्ट वाइल्ड लाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट 1972 के सेक्शन 35(6) के अंतर्गत आने वाली शर्तों को पूरा करता है.” यह बात उस याचिका की सुनवाई के दौरान कही गई थी जिसमें प्रार्थी द्वारा यह कहा गया था कि नेशनल बोर्ड ऑफ़ वाइल्ड लाइफ की स्थाई समिति द्वारा अपनी एक मीटिंग में इस प्रोजेक्ट को मंजूरी देना उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त की गई इस समिति ने यह भी कहा कि यह प्रपोज़ल और ज़्यादा स्थाई और किफ़ायती विकल्प तलाशने में नाकाम रहा है. 

Panna Tiger Reserve
पन्ना टाईगर रिज़र्व का चित्र

इस प्रोजेक्ट के तहत निकलने वाली कनाल मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व से होकर भी गुज़रेगी. इससे यहाँ की गिद्ध और गीदड़ की आबादी पर असर पड़ेगा. एनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना के चलते पन्ना टाइगर रिज़र्व का 4141 हेक्टेयर हिस्सा डूब जाएगा. इसके अलावा ऐसा माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट का केन घड़ियाल सेंचुरी पर भी बुरा असर पड़ेगा. द वायर से बात करते हुए साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम एंड पीपल के हिमांशु ठक्कर ने बताया कि इस परियोजना के अंतर्गत बिजली उत्पादन भी शामिल है जिसके चलते यह किसी भी संरक्षित एरिया से नहीं गुज़ारा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि स्थाई समिति द्वारा परियोजना को मंज़ूरी देते हुए इसका घड़ियाल सेंचुरी पर पड़ने वाले असर की ओर ध्यान नहीं दिया गया था. हालाँकि स्थाई समिति द्वारा केन नदी की स्वतंत्र हाइड्रोलॉजिकल स्टडी करवाने का सुझाव दिया गया था. लेकिन इस सुझाव को मानना सरकार ने ज़रूरी नहीं समझा.  

किसानों को कितना फ़ायदा?

मध्यप्रदेश के 6 और उत्तरप्रदेश के 7 ज़िलों से बना बुन्देलखण्ड अंचल ऐतिहासिक रूप से सूखा ग्रस्त रहा है. 18वीं और 19वीं सदी के दौरान यहाँ 16 साल में एक सूखा पड़ता था. 1968 से 1992 के बीच यह तीन गुना बढ़ गया. यह बातें सरकार से छुपी नहीं हैं. इन बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह सोचा कि केन नदी को बेतवा से मिला दिया जाए. यह हिम्मत सरकार ने इस दावे के साथ की कि केन के पास सरप्लस पानी है. लेकिन यह कितना है? यह बात गुप्त है. 

सरकार ने अपनी एक रिपोर्ट में यह कहा था कि केन नदी के पास 1047.87 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) अतिरिक्त पानी है. मगर सरकार के इस दावे को प्रोफ़ेसर ब्रिज गोपाल पहले ही ख़ारिज कर चुके थे. ऐसे में समाजसेवी संस्थाओं का सरकार से यह आग्रह था कि वह उसके पास इस बारे में जो डाटा है उसे सार्वजानिक कर दे. मगर सरकार का कहना है कि यह सूचना गुप्त है और इसलिए इसे सार्वजानिक नहीं किया जा सकता. प्रोफ़ेसर गोपाल ने साल 2020 में इंडिया स्पेंड से बात करते हुए सरकार के सामने एक सवाल खड़ा किया था कि यदि केन के पास सरप्लस पानी है तो पन्ना के लोग गर्मियों के दिनों में पीने के पानी के लिए क्यों तरसने लग जाते हैं.  

मीडिया रिपोर्ट्स से गुजरने पर पता चलता है कि स्थानीय लोगों को इस बात का डर है कि नदी पर बाँध बनाने से नदी में पानी कम हो जाएगा जिससे उनके जीवन पर असर पड़ेगा. हालाँकि राष्ट्रिय जल विकास एजेंसी (NWDA) के डायरेक्टर जनरल भोपाल सिंह का कहना है कि बाँध से लगातार पानी छोड़ने के कारण जल स्तर बढ़ेगा ही. इससे न सिर्फ लोगों के पीने के पानी की समस्या हल होगी बल्कि खेतों को भी ज़्यादा पानी मिल पाएगा. 

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