भोपाल के भदभदा चौराहे से थोड़ा ही आगे जाने पर बहुमंज़िला इमारत नज़र आती है. यह देश की प्रसिद्द होटल चेन ‘ताज’ का हिस्सा ताज लेकफ्रंट होटल है. इसके ठीक सामने भदभदा बस्ती हुआ करती थी. यह बसाहट ‘ताज’ की तर्ज़ पर प्रसिद्द नहीं है. मगर मीना बाई के लिए यहाँ कभी उनका पूरा संसार हुआ करता था. मगर उनके घर सहित पूरी बस्ती अब केवल मलबे के रूप में यहाँ मौजूद है.
दरअसल बीते मार्च को एनजीटी के आदेश का पालन करते हुए भोपाल नगर निगम द्वारा इस बस्ती के सभी मकान तोड़ दिए गए थे. यहाँ करीब 386 मकान थे. मगर यह सभी भोज वेटलैंड के 30 मीटर के कैचमेंट एरिया में स्थित थे. अतः जुलाई 2023 में एनजीटी के एक आदेश का पालन करते हुए तब यह मकान तोड़ दिए गए थे.
इस दौरान यहाँ के रहवासियों को एक लाख रूपए के चेक दिए गए थे और उनके पुनर्वास का आश्वाशन भी दिया गया था. मगर लगभग 3 महीने गुज़र जाने के बाद भी ये लोग पुनर्वास का इंतज़ार ही कर रहे हैं. प्रशासन की नज़रअंदाज़गी से आक्रोशित होकर यहाँ के रहवासी मलबे के ही पास धरने पर बैठ गए हैं.
मीना बाई अपनी बात रखते हुए कहती हैं,
“जब मार्च में हमें हटने को कहा गया तो यह आश्वाशन दिया गया कि हमें रहने के लिए आवास दिया जाएगा. मगर हम लोगों को एक लाख के चेक के अलावा कुछ भी नहीं मिला है.”
यहाँ के पूर्व निवासी हो चुके ज़्यादातर लोग अब भोपाल के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे हैं. मगर इस विस्थापन ने उनके रोज़गार और बच्चों की पढ़ाई दोनों को प्रभावित किया है.
“हमें 25 साल पीछे धकेल दिया”
तपती धूप और गर्मी के बीच यहाँ अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहीं इशरत हमसे बात करते हुए रो पड़ती हैं. इशरत 4 बच्चों की माँ हैं. उनकी सबसे बड़ी बेटी 15 साल की है. उसके अलावा 2 और बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं. मगर घर छिन जाने के कारण इन सभी की पढ़ाई प्रभावित हुई है. वह कहती हैं,
“जब हमारा मकान गिराने पुलिस वाले आए थे तब 2 दिन किसी को भी बाहर नहीं जाने दिया था. उसी दौरान हमारे बच्चों की परीक्षा थी वह भी नहीं देने दी थी इन्होने.”
मकान गिर जाने के बाद से इशरत अपने बच्चों के साथ करोंद में रह रही हैं. उन्होंने बताया कि इसका किराया 6 हज़ार रूपए है. इसमें बिजली का बिल शामिल नहीं है. इनका कहना है कि करोंद में रहते हुए उनका खर्च बढ़ गया है जिससे उनके घर में आर्थिक संकट गहरा गया है.
“हम अपनी जमापूंजी खर्च करके रह रहे हैं. अब खुद का मकान बनाने के लिए 25 साल पैसे जोड़ने पड़ेंगे तब जाकर शायद बन पाएगा. प्रशासन ने हमने 25 साल पीछे धकेल दिया है.”
रोज़गार का संकट: न घर है न काम
फैज़ान बस्ती के पास ही स्थित सब्ज़ी मंडी में हम्माल का काम करते थे. इसके लिए उन्हें बिना कोई किराया लगाए अपने घर से बा मुश्किल 20 कदम चलना पड़ता था. मगर अब उन्हें खानूगाँव जाकर रहना पड़ रहा है. यहाँ उनके लिए काम खोजना मुश्किल हो गया है.
“मैं अब पुताई का काम करता हूँ. मगर ये काम मेरे लिए नया है ऐसे में उतना पैसा नहीं मिलता जितना मैं हम्माली करके कमा लेता था.”
फैज़ान सहित सभी बस्तीवासियों को केवल एक लाख का चेक ही अब तक मिला है. मगर रोज़ाना मज़दूरी करके कमाने के कारण इनके पास बचत के रूप में कोई बड़ी रक़म नहीं है. ऐसे में यह एक लाख की फौरिया राहत उनके लिए नाकाफी साबित हुई है.
सोमवार को प्रशासन से मिलेंगे यह लोग
भदभदा बस्ती (bhadbhada basti) के इन लोगों को पुनर्वास के लिए तब 3 विकल्प दिए गए थे. इसमें एक लाख की तत्काल राहत राशि, चांदपुर में प्लॉट और मालीखेड़ी और कलखेड़ा में पीएम आवास के तहत मकान आवंटित किए जाने का विकल्प दिया गया था. मगर शेष 2 विकल्पों पर अब तक कोई भी कार्यवाही नहीं की गई है.
इस पर जवाब लेने के लिए हमने तात्या टोपे नगर (TT Nagar Bhopal) की सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट (SDM) अर्चना शर्मा से बात की. उन्होंने ग्राउंड रिपोर्ट को बताया,
"जिन लोगों ने मकान के लिए आवेदन किया था उनके फॉर्म किस स्थिति में पहुँचे हैं यह जानने के लिए हमने सोमवार को बैठक बुलाई है. इसमें नगर निगम के अधिकारी सहित स्थानीय लोग भी मौजूद होंगे."
उन्होंने हमें बताया कि आचार संहिता के चलते कोई भी नवीन मकान नहीं बन सके हैं जिस वजह से पीएम आवास आवंटित नहीं किए जा सके हैं.
भदभदा बस्ती में जब झुग्गियाँ गिराई गईं थीं तब हमने ग्राउंड रिपोर्ट की थी. हमने बताया था कि कैसे नगर निगम खुद भोज वेटलैंड में प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार है. जिस केस के तहत यह कार्यवाही की गई थी उसमें भोपाल के बड़े तालाब सहित अन्य तालाबों में जाने वाले सीवेज को रोकना भी शामिल था. मगर इस पर निगम अब तक कार्य नहीं कर पाया है.
ऐसे में यहाँ प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि यदि उन्हें जल्दी ही पुनर्वास नहीं दिया गया तो वह उग्र आन्दोलन कर सकते हैं.
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