जैसा की हम सब जानते हैं कि रीवा सोलर प्लांट को कार्य करते हुए 3 वर्ष से अधिक हो चुके हैं, एवं इसका प्रदर्शन अब तक सफल माना जाता रहा है क्योंकि यह ग्रिड पैरिटी में बिजली उत्पादन करता है एवं पारंपरिक स्रोत की तुलना में इसकी उत्पादन लागत मात्र ₹3 प्रति युनिट है। हालिया आंकड़ों के अनुसार रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्लांट ने भारत के कार्बन उत्सर्जन को 1.3 मिलियन टन तक सीमित करते हुए भारत की सौर ऊर्जा क्षमता को 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाया है। पर बड़ा प्रश्न यह है कि क्या 3 साल तक का प्रदर्शनऔर उत्पादन ही मात्रा पर्याप्त मानक है इस प्रोजेक्ट की सफलता को आंकने के लिए, आईए देखते हैं।
इस बड़े प्रोजेक्ट से प्राप्त बिजली का 76% मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम को जाता है एवं 24 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली मेट्रो को जाता है जो कि दिल्ली मेट्रो की 60% जरूरत को अकेले पूरा करता है।
वर्तमान में यह प्रदेश का सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन प्रोजेक्ट है, इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश में बिजली उत्पादन सरप्लस में रहता है। फिर भी ठंड के समय किसानों को खेत में सिंचाई के लिए बार-बार पावर कट की समस्या से भी परेशान होना पड़ता है, एवं उन्हें लगभग 6 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से लंबा बिल भुगतान करना पड़ता है। यह दोनों समस्याएं इस प्रोजेक्ट की सफलता एवं मध्य प्रदेश में 24 घंटे बिजली की उपलब्धता का दम भरने वाले शासन के दावों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करतीं है।
रीवा के लोगों को सोलर प्लांट से क्या मिला?
मध्य प्रदेश एवं विशेषतः रीवा की मुख्य समस्या बेरोजगारी है, यहां के युवकों को सूरत, मुंबई जैसे औद्यगिक शहरों में जाकर रोजगार के अवसर तलाशने पड़ते हैं, वहीं इस सोलर प्रोजेक्ट का एक बड़ा उद्देश्य रोजगार के अवसर प्रदान करना भी था। 2019 में मध्य प्रदेश नवीकरणीय ऊर्जा विभाग ने अगले 25 वर्षों तक के लिए 522 कार्य दिवस उपलब्ध कराने की बात कही थी, एवं मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम ने कहा था की यह प्रोजेक्ट हर दिन 3000 डायरेक्ट एवं 2000 इनडायरेक्ट रोजगार का सृजन करेगा। पर पिछले वर्ष के आंकड़े कुछ अलग ही स्थिति दर्शाते हैं, यहाँ मात्र 430 लोग ही कार्यरत हैं जिनमे से मात्र 49 स्किल्ड लेबर हैं, एवं 7 में से मात्र एक साइट मैनेजर रीवा का निवासी है।
यहाँ पर काम करने वाले अधिकतर मजदूर कॉन्ट्रैक्ट पर कार्य करते हैं, एवं उनका मानदेय बेहद सीमित है। उदहारण के तौर पर घांस काटने, एवं मॉड्यूल की सफाई करने वाले कर्मचारी 9 से 10 हजार तक की ही मासिक आमदनी कमा पाते है जो की जाहिर तौर एक परिवार के भरण पोषण के लिए अपर्याप्त है। बरसात के समय जब प्लांट पर अधिक काम नहीं रहता तब इन कॉन्ट्रैक्ट लेबर की समस्या और बढ़ जाती है व इनकी माली हालत पर खासा असर पड़ता।
प्रोजेक्ट की एक पार्टनर कंपनी SPRNG ENERGY ने इजराइली तकनीक के लगभग क्लीनिंग रोबोट्स को नियोजित किया है जो की यहाँ की सीमित रोजगार को और ज्यादा असुरक्षित बना देता है।
रीवा सोलर प्रोजेक्ट अबतक उत्पादन एवं आपूर्ति के उद्देश्यों को पूरा करने में सफल रहा है, इसके अतिरिक्त यह अपने सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य कार्बन उत्सर्जन को संतुलित करने भी सफल रहा है, इसके लिए इस प्रोजेक्ट को वर्ल्ड बैंक से पुरुस्कार भी मिला है। परन्तु अगर प्रदेश के रोजगार एवं ग्रामीण क्षेत्रों की ऊर्जा समस्या को देखा जाये तो यह उनका अपेक्षित समाधान नहीं दे पाया है। इसका तात्पर्य यह नहीं है की यह प्रोजेक्ट ऐसा करने में अक्षम है, बल्कि यहां बेहतर प्रबंधन, निजी पार्टनर कंपनियों जैसे की SPRNG ENERGY एवं महिंद्रा एंड महिंद्रा का रोजगार की दिशा में सकारत्मक प्रयास, एवं सरकार द्वारा इस दिशा में हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इन प्रयासों से जरूर ही यह प्रदेश को बेहतर पर्यावरण के साथ सुरक्षित रोजगार एवं जीवन स्तर दे पायेगा।
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