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नर्मदापुरम का ग्वालटोली बना गैस चेंबर, कचरे के पहाड़ ने दुष्वार की लोगों की ज़िंदगी

मध्यप्रदेश के होशंगाबाद शहर का नाम बदलकर नर्मदापुरम तो कर दिया गया लेकिन शहर में एक चीज़ नहीं बदली वो है हर तरफ फैली गंदगी।

By Pallav Jain
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hoshangabad landfill site

मध्यप्रदेश के होशंगाबाद शहर का नाम बदलकर नर्मदापुरम तो कर दिया गया लेकिन शहर में एक चीज़ नहीं बदली वो है हर तरफ फैली गंदगी। ईदगाह, ग्वालटोली मोहल्ले में बने ट्रेंचिंग ग्राउंड पर खड़ा कचरे का पहाड़ इस शहर की बदहाल स्थिति की कहानी बयां करता है। कचरा निरंतर जल रहा है, इससे निकलने वाला धुंआ लोगों के घरों तक पहुंच रहा है, छोटे बच्चे कचरे से प्लास्टिक बीन रहे हैं और मवेशी इस कचरे में से खाना ढूंढकर खा रहे हैं। हिंदू धर्म में इष्ट की तरह पूजी जानी वाले गाये जिसमें 64 करोड़ देवी देवताओं का वास बताया जाता है, वो इस पावन नगरी में प्लास्टिक खाने को मजबूर हैं, लोग ऐसे गैस चेंबर में रहने को मजबूर हैं जो उन्हें बीमार बना रहा है।

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ग्वालटोली स्थित कचरा खंती में गाय खाना ढूंढती हुई, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

नर्मदापुरम के ग्वालटोली में हर दिन 40 टन कचरा इकट्ठा होता है, यहां 33 वार्डों से निकलने वाले कचरे को नगरपालिका की गाड़ियां स्वच्छता का गाना बजाते हुए हर दिन फेंक जाती है। शहर साफ हो जाता है, लेकिन इसकी कीमत चुका रहे हैं, ग्वालटोली के लोग।

65 वर्षीय सुगन बाई ग्वालटोली में कई वर्षों से रह रही हैं, वो कहती हैं

"हम इस कचरे से बहुत परेशान हैं, यह कचरा हर वक्त जलता रहता है इसका धुंआ हमारे घरों में आजाता है। हमने नगर पालिका, विधायक, कलेक्टर सबसे शिकायत की, लेकिन बस सब यही कहते हैं हटा देंगे अम्मा, हटा देंगे अम्मा"। क्यों ये हमारी बस्ती को गंदा कर रहे हैं, हमारा क्या कसूर है? हमारे बच्चे बीमार हो रहे हैं, हमारी कोई सुनने वाला नहीं है।"

कचरे के धुंए से बीमार होते लोग

30 वर्षीय फरीद कादरी कहते हैं

"हम जब इस कचरे की शिकायत करते हैं तो उल्टा हमारे ऊपर ही केस दर्ज कर लिया जाता है। सुबह के समय यहां धुएं के कारण कुछ नहीं दिखाई देता। यहां छोटे छोटे बच्चों को स्किन इंफेक्शन हो रहा है, हर घर में कोई न कोई सांस की बीमारी से पीड़ित है, लेकिन कोई यहां देखने तक नहीं आता। यहां कई मीडिया वाले आए लेकिन प्रशासन ने उन्हें भी चुप करवा दिया। कई सालों से यहां से कचरा हटाने का आश्वासन दिया जा रहा है लेकिन कुछ नहीं होता।"

hoshangabad landfill site
कचरा खंती से प्लास्टिक बीन कर बच्चे कबाड़ियों को बेचते हैं, फोटो-ग्राउंड रिपोर्ट

ग्वालटोली में ही रहने वाली हिना बताती हैं कि "यहां हर समय कचरा गाड़ियां निकलती हैं, उनसे कचरा गिरता रहता है जो हमारी गलियों में पड़ा रहता है। उनसे कुछ कहते हैं तो वो लड़ने लगते हैं। हमारे साथ अन्याय हो रहा है। क्या हम इंसान नहीं है, क्या हमें साफ हवा का भी अधिकार नहीं है?"

एनजीटी के आदेश का अभी तक नहीं हुआ पालन

आपको बता दें कि नैशनल ग्रीन ट्राईब्यनल की प्रिंसिपल बैंच के आदेशानुसार होशंगाबाद जिले को अपना डिस्ट्रिक्ट इनवायरमेंट प्लान तैयार करना है। इसके लिए हर जिले के कलेक्टर को आदेश जारी किया जा चुका है। इस प्लान के तहत ठोस कचरे के निपटान के लिए वेस्ट प्रोसेसिंग युनिट स्थापित किया जाना है। होशंगाबाद प्रशासन को वर्ष 2023 के अंत तक यह काम पूरा करना था, लेकिन अभी तक वेस्ट प्रोसेसिंग युनिट यहां शुरु नहीं हो पाई है। और हर दिन ग्वालटोली स्थिति कचरा खंती में कचरे का पहाड़ ऊंचा होता जा रहा है।

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कचरे से उठने वाला धुंआ पानी की टंकी तक पहुंचता है जिसका पानी लोगों तक पहुंचता है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

फरीद कादरी कहते हैं "कचरे की वजह से यहां का पानी भी प्रदूषित हो रहा है, कचरे से निकलने वाला धुंआ सीधे यहां मौजूद पानी की टंकी में पहुंचता है। अमृत योजना के तहत जो पाईपलाईन हर घर में दी गई है उससे पीला पानी आता है। लोग बोरवेल का पानी पीते हैं। अगर सरकार द्वारा दिया गया पानी पिया तो हम बीमार हो जाएंगे।"

ग्वालटोली स्थिति कचरा खंती की जो स्थिति है वो किसी नर्क से कम नहीं है, यहां हर तरह का कचरा फेंका जा रहा है। मरे हुए जानवर से लेकर बायोमैडिकल वेस्ट तक आपको यहां देखने को मिल जाएगा। यह इतना ज्यादा हाज़ारडस माना जाता है कि किसी भी इंसान का इसके संपर्क में आना मौत को बुलावा है। हर समय जलते रहने वाले इस धुंए में 5 मिनट खड़े रहने पर आपको घुटन महसूस होने लगती है, सोचिए यहां सैकड़ों परिवार 24 घंटा 365 दिन रहते हैं।

biomedical waste dump in open in hoshangabad
कचरे को ध्यान से देखने पर आपको बायोमैडिकल वेस्ट भी दिखाई देगा, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

फरीद कादरी कहते हैं "हमने सोचा कि इस जगह को छोड़कर कहीं ओर चले जाएं लेकिन घर व्यक्ति जीवन में एक बार बनाता है, हमारा सबकुछ यहीं है। अगर घर बेचना भी चाहें तो कोई इस कचरे में आकर रहना नहीं चाहता, जितने भी प्लॉट यहां खाली पड़े हैं उन्हें भी कोई खरीदना नहीं चाहता। अब हम कहां जाएं, क्या करें कुछ समझ नहीं आता।"

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