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हरित आवरण से ही जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण संभव

मौसम की मार झेलते किसान एक बार और आस खो चुके हैं. खरीफ फसलों की तैयारी बेकार हो गई है. उप्र, बिहार, झारखंड सहित अन्य राज्यों की खेती चौपट होती जा रही है.

By Charkha Feature
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Green watchdog committee will now report to Environment Ministry

अमृतांज इंदीवर, मुजफ्फरपुर, बिहार | मौसम की मार झेलते किसान एक बार और आस खो चुके हैं. खरीफ फसलों की तैयारी बेकार हो गई है. उप्र, बिहार, झारखंड सहित अन्य राज्यों की खेती चौपट होती जा रही है. किसानों के चेहरे पर मायूसी के बादल साफ दीख रहे हैं. गांवों में किसान इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए प्रार्थनाएं कर रहे हैं. वर्षा ऋतु के आगमन के साथ बच्चों की वह उक्ति फीकी पड़ गई है- ‘घोघो रानी कितना पानी?’ चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है. एक तरफ दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब भारी बारिश में बाढ़ के हालात झेल रहा है वहीं दूसरी ओर बिहार जैसे राज्य प्रचंड गर्मी की वजह से तप रहे हैं. जहां की धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है. 

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Control of climate change that is possible only through green cover

इससे किसानों की हालत दयनीय होती जा रही है. खेत-खलिहान में सूखे तो कहीं बाढ़ की समस्या गहरा रही है. अनाज, साग-सब्जी, फल-फूल आदि की खेती पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. जिससे सब्ज़ियों के दाम आसमान छू रहे हैं. सर्वविदित है कि भारत में लगभग 60 प्रतिशत लोग आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं. वर्तमान में भारत समेत विश्वभर में जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान में बढ़ोतरी, वर्षा में कमी अथवा अत्यधिक वर्षा, हवाओं की दिशा में परिवर्तन आदि प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहे हैं. परिणामतः असहनीय गर्मी, बाढ़-सुखाड़, ओलावृष्टि, अनावृष्टि आदि के कारण आम लोग का जीवन बेहाल हो गया है.

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कांटी प्रखंड अंतर्गत कोठिया गांव के किसान वर्षा का इंतजार कर रहे हैं. खेती की जुताई-गुराई करके बिचड़ा (नर्सरी) लगाया था. आज उनकी नर्सरी कई पंपसेट से सिंचाई के बाद भी धरती की गर्मी की वजह से बिल्कुल सूख गई है. गांव के किसान लाल बहादुर प्रसाद कहते हैं कि 'खेतीबाड़ी वर्षा आधारित कार्य है. धन रोपाई का समय है. लेकिन अभी तक बारिश नहीं होने के कारण खेत बिल्कुल खाली हैं. मौसम की मार से किसान की आर्थिक स्थिति चरमरा-सी गई है. गांव दो दशक पहले तक हरा-भरा था. ज्यादातर लोगों के दरवाजे पर आम, आंवला, नीम, कदंब, पीपल, बरगद आदि के पेड़ होते थे. आज गांव शहरीकरण में सबकुछ खो दिया है. गांव के लोग भी आधुनिक होते जा रहे हैं. वृक्ष की घनी छाया की जगह एसी, कूलर, पंखे आदि का अधिक उपयोग कर रहे हैं. लोग वायुमंडल में बढ़ रहे ग्रीनहाउस गैसों की चिंता न करके सुख-सुविधा और आराम देने वाली वस्तुओं की खरीदारी में मशगूल हैं. क्या अच्छा होता कि सुख-सुविधाओं के साथ-साथ गांव की हरियाली व स्वच्छ वायु के लिए अपने दरवाजे पर एक-एक पेड़ लगाए जाते?'

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हालांकि केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के मौसम वैज्ञानिक डाॅ. ए. सतार ने स्पष्ट किया है कि उत्तर बिहार में मानसून का आगमन हो चुका है. कई जगह छिटपुट बारिश भी हो रही है. हालांकि इस बार पूर्वानुमान में उत्तर बिहार के क्षेत्रों में अच्छी वर्षा की संभावना नहीं जताई गई है. पर्यावरण के जानकारों का मानना है कि मानव की असीमित लालसा की वजह से आज यह दिन देखना पड़ रहा है. गांव में आधारभूत संरचनाएं बदली रही हैं. लोग दरवाजे को कंक्रीट, ईंट आदि से पक्का बना रहे हैं. घर के आसपास पेड़ लगाने के बजाए घर-दालान बना रहे हैं. कुआं, तालाब, पाइन आदि ठप पड़ गए हैं. आधुनिक जीवन शैली से लाचार लोग मिट्टी और धूल से बचना चाह रहे हैं. घर के बुजुर्गों के सहारे खेती-किसानी छोड़ दी गई है. आसपास के वातावरण को स्वच्छ और सौम्य बनाए रखने में युवाओं की भूमिका कम होना चिंता का विषय है. सम्मेलन-संगोष्ठी में पर्यावरण संरक्षण को लेकर भाषण, प्रतियोगिता, प्रदर्शनी आदि के जरिए जागरूकता लोगों में जरूर आ रही है. लेकिन जितनी रफ्तार से वृक्षारोपण होनी चाहिए इस मामले में अभी बहुत प्रयास करने की आवश्यकता है.

जलवायु परिवर्तन का व्यापक असर कृषि पर पड़ रहा है. भारत में अधिकांश खेती वर्षा आधारित है. मानसून की अनिश्चितता की वजह से बाढ़-सूखा और गर्मी की स्थिति बनी रहती है. फलस्वरूप पूर्वोत्तर भारत में बाढ़, पूर्वी तटीय क्षेत्रों में चक्रवात, उत्तर-पश्चिम में सूखा, मध्य एवं उत्तरी क्षेत्रों में गर्म लहरों की तीव्रता में बेताहाशा वृद्धि होती जा रही है. मिट्टी में नमी की कमी एवं फसलों पर कीटों-रोगों का कुप्रभाव से फसलें बर्बाद हो रही हैं. हीट वेब की तीव्रता से पशु-पक्षियों में रोग, प्रजनन क्षमता और दुग्ध उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है. वायुमंडल में कार्बनडाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से खरीफ, रबी फसलों के साथ-साथ खाद्यान्न के उत्पादन में प्रोटीन व अन्य आवश्यक तत्वों की कमी देखी गई है.

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आईपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) की रिपोर्ट की मानें तो पृथ्वी की औसत सतह का तापमान 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ेगा. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से दुनियाभर में मौसम से जुड़ी भयंकर आपदाएं आएंगी. वायुमंडल को गर्म करने वाली गैसों का उत्सर्जन दो दशकों में काफी बढ़ा है. जिसकी वजह से समुद्र का जलस्तर लगभग दो मीटर तक बढ़ सकता है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में यूरोप में कम-से-कम 15,700 मौतों के पीछे कारण है हीट वेब रहा है. वार्षिक रिपोर्ट 2022 के अनुसार ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर ने वैश्विक स्तर पर सूखे, बाढ़ और गर्मी में बेताहाशा वृद्धि की है. पिछले आठ वर्षों में वैश्विक तापमान की वजह से ग्लेशियरों का पिघलना व समुद्र जलस्तर में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है. पूर्वी अफ्रीका में लगातार सूखा, पाकिस्तान में रिकाॅर्ड तोड़ वर्षा और चीन-यूरोप में प्रचंड गर्मी ने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया है. जिससे फसलों की उपज प्रभावित हुई है.

जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक व मानवीय दोनों कारणों से बढ़ रहा है. कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड आदि के उत्सर्जन में वृद्धि धरती के तापमान वृद्धि का एक प्रमुख कारक है. वर्ष 2022 में भारत ने हरित कार्य को लेकर 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा था. वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित संसाधनों से लगभग 40 प्रतिशत विद्युत शक्ति स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके साथ ही पर्यावरण प्रभाव आकलन, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, हरति कौशल विकास कार्यक्रम, जैविक खेती को बढ़ावा आदि महत्वपूर्ण योजनाओं के संचालन की कवायद की जा रही है. वर्तमान में भारत को जलवायु परिवर्तन के लिए ठोस रणनीति पर काम करने की जरूरत है. पृथ्वी और संसाधनों के संरक्षण को व्यवहार में लाने की आवश्यकता है. जीवन शैली व पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को उत्तरदायी बनना होगा. प्रकृति हमारा भरण-पोषण करती है इसलिए अधिकाधिक हरित आवरण के लिए मजबूत पहल करने की जरूरत है. शहर में भवन निर्माण से पूर्व हरियाली की व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि हरियाली होगी तो धरती जीने लायक होगी. (चरखा फीचर) 

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