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हाल ही में शिवराज सरकार द्वारा स्ट्रीट वेंडर्स के लिए एक वेल फेयर बोर्ड बनाने की घोषणा की गई थी. भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में मुख्यमंत्री ने स्ट्रीट वेंडर्स को पहचान पत्र देने सहित कई घोषणाएं की थीं. मगर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के सामने से गुज़रने वाली सड़क के किनारे दुकान लगाने वाले स्ट्रीट वेंडर्स के अनुसार इससे उन्हें कोई ख़ास असर नहीं पड़ा है. यहाँ चाय की दुकान चलाने वाले अशोक सिंह राजपूत कहते हैं,
“नगर निगम वाले जब-तब दुकान हटाने आ जाते हैं. हमें अपना सामान लेकर भागना पड़ता है.”
शिवराज द्वारा स्ट्रीट वेंडर्स को संबोधित करते हुए कहा गया था कि उनसे किसी भी तरह की कोई भी मार्केट फ़ीस नहीं ली जाएगी. मगर अशोक कहते हैं कि नगर पालिका के कर्मचारी जब भी यहाँ आते हैं उन्हें “1000-1500 देना ही पड़ता है.”
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एक दिन का नुकसान बड़ा है
अशोक बीते 25 साल से इस इलाके में काम कर रहे हैं. उन्होंने अपनी शुरुआत यहाँ के एक होटल में काम करने से की थी. साल 2012 में उन्होंने अपनी छोटी सी होटल शुरू की थी. मगर साल 2019 में कोरोना काल के दौरान लगे लॉकडाउन के चलते उन्हें इसे बंद करना पड़ा. “लॉकडाउन के बाद इतनी पूंजी ही नहीं थी कि होटल दोबारा शुरू करते.” अशोक बताते हैं. वह आगे कहते हैं कि 6 महीने काम खोजने के बाद उन्होंने यह छोटी गुमठी (छोटी दुकान) शुरू की है. मगर धूल के चलते उनका धंधा बुरी तरह प्रभावित हुआ है. ऐसे में नगर निगम द्वारा उनको हटाए जाने पर एक दिन के लिए व्यापार पूरी तरह रुक जाता है. यह उनके लिए बड़ा नुकसान है.
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लोन चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं
कोरोनाकाल में शुरू हुई प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत किसी भी स्ट्रीट वेंडर को 10 हज़ार से 50 हज़ार तक का लोन दिया जाता है. अशोक अलग-अलग बैंकों से फिलहाल 3 लाख के कर्ज़दार हैं. इसमें प्रधानमंत्री स्वनिधी योजना के तहत मिलने वाले 50 हज़ार रूपए भी शामिल हैं. उन्हें महीने में 2400 रूपए किश्त के रूप में भरने पड़ते हैं. मगर व्यापार में अनिश्चितता के चलते बीते 3 महीनों से वह इसे नहीं चुका पा रहे हैं. इसी सड़क पर मौजूद एक अन्य दुकानदार भी हमें यही समस्या बताते हैं. गौरतलब है कि इस सरकारी योजना के तहत मध्य प्रदेश में 2 लाख 72 हज़ार 154 आवेदन आए हैं. इसमें से 1 लाख 62 हज़ार 261 आवेदनों के लिए कुल 161.632 करोड़ रूपए सरकार ने स्वीकृत किए हैं.
क्या वापस संवर पाएगा उजाड़ा हुआ शाहपुरा?
भोपाल के शाहपुरा क्षेत्र में कैम्पियन स्कूल की ओर जानी वाली सड़क पर कभी एक पंक्ति में फ़ूड ट्रक खड़े होते थे. यह भोपाल का मशहूर हॉकर ज़ोन हुआ करता था जिसे नगर निगम द्वारा ही 46 लाख रूपए खर्च करके 2014 में स्थापित किया गया था. मगर फ़रवरी के महीने में भोपाल नगर निगम द्वारा इसे अवैध अतिक्रमण बताकर हटा दिया गया. यहाँ एक तिब्बती व्यंजन बेंच रहे अजय बताते हैं कि साल 2016 से उन्होंने यहाँ फ़ूड ट्रक लगाना शुरू किया था. मगर फ़रवरी में हुई कार्रवाही के बाद अब उन्हें एक छोटे से ठेले में यह बेंचना पड़ रहा है. हालाँकि उन्होंने बताया कि वह अपना फ़ूड ट्रक भोपाल के एक अन्य हिस्से में लगाते हैं.
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यहाँ के एक अन्य दुकानदार अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं कि शाहपुरा के इस इलाके में क़रीब 70 दुकानें हुआ करती थीं. मगर अब केवल 15-16 दुकानें ही बची हैं. नगर निगम द्वारा इन दुकानों का सीमांकन कर इन्हें वापस से आवंटित किया जा रहा है. यहाँ राहुल मीणा मोमोज़ एंड मोर नामक दूकान संचालित करने वाले एक व्यक्ति कहते हैं कि उनके बगल में एक बड़ी कंपनी को दुकान आवंटित की गई है. क्या शाहपुरा वापस से गुलज़ार हो जाएगा? इस सवाल का जवाब अब भी किसी दुकानदार के पास नहीं है.
अवैध वसूली से नहीं है इन्कार
ग्राउंड रिपोर्ट द्वारा भोपाल की अलग-अलग सड़कों के किनारे अलग-अलग दुकान लगाने वाले लोगों से बात की गई. इनमें से ज़्यादातर दुकानदार प्रधानमंत्री स्वनिधी योजना के लाभार्थी हैं. कुछ दुकानदार बताते हैं कि नगर निगम का अतिक्रमण विरोधी दल द्वारा उन्हें हटाने की घटनाओं में कमी आई है. मगर इनमें से ज़्यादातर दुकानदार अवैध वसूली के रुक जाने की बात से सहमत नहीं होते हैं. वह कहते हैं,
“सरकार भले ही कुछ भी कहे ‘फीस’ तो हम दे ही रहे हैं.”
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