MP Elections 2023 Public Opinion | भोपाल के जवाहर चौक (Jawahar Chowk) में दिन के बीच में भी भीड़ लगभग न के बराबर है. बड़े से चौराहे से जाती 4 सड़कें लगभग सूनी नज़र आती हैं. इसी चौराहे के किनारे कुछ बसें खड़ी हुई हैं. यह बसें एकदम ख़ाली हैं. इनमें से एक बस में बैठे हुए गोलू सिहोर से भोपाल के बीच चलने वाली इस बस में कंडक्टरी का काम करते हैं. वह कहते हैं,
“यह कभी बस स्टैंड हुआ करता था मगर अब यहाँ पर कुछ भी नहीं बचा है.”
दरअसल भोपाल के फेमस न्यू मार्केट के करीब जवाहर चौक (Jawahar Chowk) से भोपाल-सिहोर, भोपाल-मंडीदीप और भोपाल-रायसेन रूट पर बसें दौड़ा करती थीं. मगर भोपाल के स्मार्ट सिटी प्लान में यहां से बस स्टैंड को हटा दिया गया। इन बसों को भोपाल में लोग नीले कट्टे के नाम से जानते हैं, इनकी खासियत यह है कि इनका किराया भोपाल रोड ट्रांस्पोर्ट की लो फ्लोर बसों से कम हैं। कामगार वर्ग के लोग जिन्हें रोज़ाना भोपाल के करीब बसे इंडस्ट्रियल शहर मंडीदीप जाना होता वो इस नीले कट्टे की ही सवारी करते। सीहोर से भी प्रतिदिन सैकड़ों लोग भोपाल आते जाते हैं। ऐसे में यह नीला कट्टा न सिर्फ किफायती है, बल्कि शहर के मुख्य बाज़ार न्यू मार्केट से ही उपलब्ध हो जाता है।
आधी बसें बची हैं
राहुल मेवाड़ा रोज़ाना सीहोर से भोपाल 3 बार बस लाते और ले जाते हैं. वह कहते हैं,
“यहाँ से 120 बसों का सञ्चालन हुआ करता था. मंडीदीप, अब्दुल्लाहगंज, सीहोर और रायसेन जाने के लिए यहीं से बसें मिलती थीं. अब मुश्किल से 12 बसें बची हैं.”
वह इसका कारण बस स्टैंड का न होना बताते हैं. पहले जहाँ 4 शहरों की बसें यहीं से पकड़नी होती थीं वहीँ अब केवल सीहोर के लिए बसें ही बची हैं. इस परिवर्तन का मेवाड़ा के जीवन पर बुरा असर पड़ा है. वह कहते हैं,
“जब सवारी नहीं जाएगी तो हमको पैसे कौन देगा. मालिक लोग भी हमारी तनख्वाह काट लेते हैं.”
सड़क पर खड़ी होती हैं बसें
भीम यादव अपनी समस्या बताते हुए कहते हैं, “हमें पहले बस स्टैंड में जगह मिलती थी तो वहां बस खड़ी करते थे मगर अब रोड में खड़ी करना पड़ता है.” वह कहते हैं कि अक्सर सड़क पर ऐसे बसें खड़ी करने की वजह से उन्हें चालान भरना पड़ता है. ग्राउंड रिपोर्ट की टीम जब इनके पास पहुँची तब बहुत से ड्राइवर और कंडेक्टर हमें बस में ही खाना खाते हुए दिखे. “बस स्टैंड था तो वहां छाँव में बैठकर खाना खा लेते थे.” यादव कहते हैं कि गर्मी के दिनों में बस में बैठकर खाना खाना मुश्किल हो जाता है.
MP Elections 2023 Public Opinion: हम कभी वोट ही नहीं डाल पाते
हमने इन बस कर्मचारियों से चुनाव के बारे में बात करनी चाही. इनमें से ज़्यादातर कर्मचारी बताते हैं कि चुनाव के दिन वह वोट भी नहीं डाल पाते हैं. बस चलाने वाले मोनू कहते हैं, “हमारी गाड़ियाँ चुनाव में लगी रहती हैं. वहां से 2 दिन तक वापस नहीं आने देते हैं. जिस दिन वोट पड़ता है हम वोट डाल ही नहीं पाते हैं.” मोनू 29 साल के हैं मगर उन्होंने आज तक केवल सरपंच के चुनाव के दौरान ही मतदान किया है. “पूरे भोपाल के कंडक्टर और ड्राइवर को मिला दें तो 3 हज़ार से भी ज़्यादा लोग होते हैं जो वोट नहीं डाल पाते हैं.” मोनू हमसे बात करते हुए कहते हैं.
पार्टियों की जीत और उनसे कर्मचारियों की अपेक्षाओं के बारे में पूछने पर सभी कहते हैं कि उनके लिए सबसे बड़ा मुद्दा बस स्टैंड है.
“जो बस स्टैंड बनवाकर देगा हम उसे ही वोट करेंगे.”
यहाँ के ज़्यादातर कर्मचारी मौजूदा भाजपा सरकार से नाख़ुश नज़र आते हैं. वह कहते हैं कि बीते कुछ सालों में महंगाई तेज़ी से बढ़ी है ऐसे में आमदनी में असर होने के कारण उन पर दुगुनी मार पड़ी है.
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