Powered by

Advertisment
Home हिंदी

बागेश्वर के सलानी गांव में हर घर नल, मगर जल नहीं

उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक से 27 किमी की दूरी पर बसे सलानी गांव में नल तो है, मगर जल नहीं है.

By Charkha Feature
New Update
har ghar nal yojana truth

हंसी बघरी/नंदिनी | कपकोट, बागेश्वर | उत्तराखंड | देश के ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक घर तक नल के माध्यम पीने के साफ़ पानी पहुंचाने की योजना देश के अन्य राज्यों के साथ साथ पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में भी चलाई जा रही है. उत्तराखंड सरकार द्वारा राज्य की जनता के लिए एक रुपये में पानी कनेक्शन योजना की शुरुआत की गई थी.

Advertisment

इस योजना के अंतर्गत राज्य के प्रत्येक घर तक पीने के पानी का कनेक्शन पहुंचाने के उद्देश्य से 6 जुलाई 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा शुरु की गयी थी. इस योजना को राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के सबसे निचले तबके के परिवार को ध्यान में रखते हुए शुरू किया गया था, क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार शुल्क अधिक होने के कारण पानी के कनेक्शन नहीं लगवा पाते हैं. माना यह जा रहा था कि इस योजना के शुरू हो जाने से प्रदेश के प्रत्येक परिवार को पीने के साफ़ पानी का कनेक्शन मिल जाएगा. परंतु सरकार की यह योजना धरातल पर अभी तक पूरी तरह से सफल नहीं हो रही है. राज्य के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां अभी भी लोग पीने के साफ़ पानी से वंचित हैं.

बागेश्वर के सलानी गांव का मामला

उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक से 27 किमी की दूरी पर बसा सलानी गांव इसका उदाहरण है. जहां नल तो है, मगर जल नहीं है. इस गांव में स्वच्छ जल का अभाव है. लोग आज भी पीने के साफ़ पानी को तरस रहे हैं. घर की ज़रूरत को पूरा जरने के लिए महिलाओं को कई किमी दूर से पानी लाना पड़ता है. जिससे न केवल उनका समय बर्बाद होता है बल्कि इससे उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. इसका सबसे अधिक नुकसान किशोरियों को होता है. इस संबंध में गांव की एक किशोरी ममता का कहना है कि हमें पानी लेने के लिए घर से 2 किमी दूर जाना पड़ता है. जिससे दिन भर में हमारे 3 या 4 घंटे पानी लाने में ही बीत जाते हैं. जिससे हमारे ऊपर घर के कामों का अतिरिक्त भार हो जाता है. गांव की अन्य किशोरी कुमारी जानकी का कहना है कि मैं राजकीय इंटर कॉलेज सैलानी में 12वीं कक्षा की छात्रा हूं. स्कूल जाने से पहले मुझे घर के लिए पानी लाना होता है. जिसके लिए हमें 2 घंटे का सफर तय करके धारे में जाना पड़ता है.

जानकी के अनुसार पानी के लिए हमारे घरों में दो-दो नल लगे हुए हैं लेकिन एक भी नल में पानी नहीं आता है. अगर आता भी है तो सप्ताह में कभी कभी. जानकी बताती है कि पानी की कमी से हमें बहुत मुसीबत उठानी पड़ती है. सुबह जल्दी घर के काम निपटा कर हम स्कूल जाते हैं. शाम को घर आते हैं. उसके बाद फिर पानी लेने जाते हैं. ऐसे में हम बहुत थक जाते हैं. जिससे हमारी पढ़ाई पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. एक अन्य किशोरी चांदनी दोसाद का कहना है कि जब मैं स्कूल जाती थी तो दूर से पानी लाने के लिए सुबह जल्दी उठना पड़ता था. उसके बाद घर का सारा काम करती थी. फिर स्कूल जाती थी और वापस आकर पहले पानी के लिए फिर दूर जाना पड़ता था. इससे थक कर हालत खराब हो जाती थी और फिर रात को पढ़ाई करने का मन नहीं करता था.

पानी की कमी से वैसे तो पूरा गांव परेशान है, परंतु महिलाओं और किशोरियों के जीवन पर इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता है. गांव की एक महिला संगीता देवी का कहना है मेरी दो बेटियां स्कूल में पढ़ने जाती हैं. स्कूल जाने से पहले वह तीन किमी की दूरी तय करके पानी लेने जाती हैं, जिस कारण से उन्हें स्कूल जाने में भी देरी होती है. वह बताती हैं कि हमारे घरों में नल तो है, पर उसमें पानी नहीं आता है. प्रेमा रावल कहती हैं कि यहां कुछ घरों में नल तो सजे हुए हैं, पर उनमें पानी नहीं आता है. यह समस्या पता नहीं हमें कब तक झेलनी पड़ेगी? प्रेमा के अनुसार गांव वालों ने इस संबंध में कई बार ग्राम प्रधान से शिकायत की है, लेकिन समस्या आज तक दूर नहीं हो सकी है. वह कहती हैं कि "घर-घर नल, घर-घर जल जैसी योजनाएं तो बहुत आती हैं, पर सफल किस हद तक हुई हैं हमें पता नहीं है. हम आज भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं और पता नहीं कब तक जूझते रहेंगे?" गांव की बुजुर्ग महिला बसुंली देवी का कहना है कि मैं 74 साल की हो गई हूं. मैंने हमेशा अपने गांव में पानी की कमी ही देखी है. पानी के लिए बच्चों और महिलाओं को नदियों और गधेड़ो में जाना पड़ता है. जहां हर समय जंगली जानवरों का डर सताता है.

इस संबंध में सलानी के ग्राम प्रधान नरेंद्र सिंह भी गांव में पीने के साफ़ पानी की समस्या को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि कुछ घरों में पानी के नल तो लगे हैं, लेकिन पानी नहीं आता है, क्योंकि यहां पर पानी की उचित व्यवस्था नहीं हो पा रही है. वह कहते हैं कि अपने स्तर पर मैंने स्वजल विभाग में दस्तावेज भी लगाए हैं, पर अभी तक कोई भी सुनवाई नहीं हुई है. ऐसा नहीं है कि राज्य में पानी की कोई कमी है. हमारे देश की दो बड़ी नदियाँ गंगा, यमुना और इन नदियों की अधिकांश सहायक नदियां भी उत्तराखंड के ग्लेशियर से ही निकलती हैं. जो उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में पानी की पूर्ति करती हैं. लेकिन इसके बावजूद राज्य के अधिकांश पर्वतीय गांवों में पीने के पानी की समस्या का होना, इस बात का संकेत है कि ज़मीनी हकीकत और भौगोलिक संरचना को ध्यान में रखे बगैर योजनाएं बनाई जाती हैं. (चरखा फीचर)

यह भी पढ़ें

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us at [email protected].