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Hit And Run: ट्रक चालकों कीआर्थिक मुश्किलें जिनपर कभी ध्यान नहीं दिया गया

हिमांचल प्रदेश के रमेश परमार अभी भी उलझे हुए नज़र आते हैं. सरकार ने यह गारंटी नहीं दी है कि आगे यह कानून (Hit And Run) लागू नहीं किया जाएगा.

By Shishir Agrawal
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Tough life of Indian truckers

बुधवार की सुबह देशवासियों के लिए राहत लेकर आई. बीते 2 दिनों से नए Hit And Run कानून के खिलाफ चल रही ट्रांसपोर्ट ड्राइवर्स की हड़ताल ख़त्म हो गई. केन्द्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा,

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“नए नियम अभी लागू नहीं हुए हैं. इन्हें लागू करने से पहले आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस से चर्चा की जाएगी.”

हड़ताल के ख़त्म होने के बाद परिवहन को वापस गति मिल गई है. दूध और सब्ज़ियों की सप्लाई निर्बाधित शुरू हो गई है. इससे जनता को राहत मिली है. 

Hit And Run Law: क्या ट्रांसपोर्ट ड्राइवर्स को असल में राहत मिली?

हिमांचल प्रदेश के सोलन के रहने वाले रमेश परमार अभी भी उलझे हुए नज़र आते हैं. सरकार ने यह गारंटी नहीं दी है कि उसके द्वारा आगे यह (Hit And Run) कानून लागू नहीं किया जाएगा. ऐसे में परमार जैसे ट्रक चालकों का भविष्य अब भी अस्पष्ट है. परमार कहते हैं, “यह एक काला कानून है जिसे सरकार ने वापस लेना चाहिए” 

Hit and run law and poor health of Indian transport jobs
हड़ताल ख़त्म हो जाने के बाद भी रमेश परमार अब भी उलझे हुए ही हैं

परमार की महीने के तनख्वाह 7 हज़ार रूपए है. वह साल भर में 1 लाख रूपए भी कम नहीं पाते हैं. इसके अलावा घर से हफ्ते या उससे भी ज़्यादा दिन दूर रहना उनके परिवार को भी प्रभावित करता है. बल्लभगढ़ के रहने वाले एक अन्य ट्रक ड्राइवर बिट्टू कहते हैं,

“हम महीने में 26 दिन घर के बाहर होते हैं. मात्र 4 दिन होते हैं जब हम अपने बच्चों से मिल पाते हैं.”

बिट्टू बताते हैं कि इन ड्राइवर्स के बच्चों को पालने का सारा बोझ इनकी पत्नी यानि माँ पर ही आ पड़ता है. वह कहते हैं, “बच्चे अपने पापा को एक तरह से भूल ही जाते हैं.”

Hit and run law and poor health of Indian transport jobs
लम्बे रूट पर ट्रक चलाने वाले ड्राइवर्स पारिवारिक अस्थिरिता से जूझ रहे होते हैं

बच्चों पर होने वाला असर

भोपाल के ट्रांसपोर्ट नगर में एकत्रित ट्रक ड्राइवर्स बताते हैं कि उनके बच्चों की पढ़ाई और विकास दोनों ही उनकी नौकरी के चलते प्रभावित होता है. तनख्वाह बेहद कम होती है जिससे उन्हें किसी भी अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना न मुमकिन सा हो जाता है. यहाँ मौजूद ट्रक चालकों में से एक बताते हैं कि उनके 14 वर्षीय लड़के को काम पर जाना पड़ता है क्योंकि केवल उनकी तनख्वाह में घर चलाना दुर्गम है. वह कहते हैं, “अब वो क्या पढ़ेगा, अनपढ़ ही रह जाएगा.” इसके अवाला ये लोग हमें बताते हैं कि यदि उन्हें अपने बच्चों की शादी भी करनी होती है तो भी उन्हें क़र्ज़ लेना पड़ता है. उनके जीवन भर में भी इतनी बचत नहीं होती कि वह अपने बच्चों की शादी धूम धाम से कर सकें. 

इन्श्योरेंस का क्या फायदा है?

मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार सड़क पर चलने वाले सभी वाहनों का इनश्योरेंस करवाना अनिवार्य होता है. मगर सवाल यह है कि यदि दुर्घटना के दौरान सारा बोझ ड्राइवर के सर पर ही आ जाता है तब ड्राईवर को इससे क्या लाभ है? इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इन्श्योरेंस कंसल्टेंट वीरेंद्र अग्रवाल बताते हैं,

“यदि कोई भी मोटर मालिक थर्ड पार्टी इन्श्योरेंस लेते हैं तो उसमें दुर्घटना होने पर जिस व्यक्ति से गाड़ी टकराती है उसकी सेहत पर होने वाला सारा खर्च कंपनी वहन करती है.”

वह आगे बताते हैं कि थर्ड पार्टी इन्सोरेंश में ड्राइवर की मौत होने की स्थिति में उसके लिए भी राशि क्लेम की जाती है.

“दुर्घटना के बाद मालिक द्वारा कंपनी को यह बताया जाएगा कि मौके पर उसके ड्राइवर की मौत हो गई है. इसके बाद प्रीमियम के अनुसार तय राशि कोर्ट के निर्देश पर मालिक अथवा ड्राइवर के खाते में दी जाती है.”

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बिट्टू कहते हैं कि ड्राइवर की मौत होने पर मिलने वाली राशि अक्सर मालिक ग़बन कर जाते हैं

हमारे लाइसेंस किस काम के हैं?

बिट्टू कहते हैं कि दुर्घटना में ड्राइवर्स की मौत होने की स्थिति में 15 लाख रूपए तक मालिक क्लेम कर सकते हैं. इसमें ड्राइवर को दिया जाने वाला पैसा भी होता है. मगर उनके अनुसार ज़्यादातर समय “मालिक यह पैसा खा जाते हैं.” वहीँ रमेश परमार सवाल पूछते हुए कहते हैं कि जब सरकार लाइसेंस बनाने के लिए पैसा लेती है, रोड टैक्स लेती है और इंश्योरेंस कंपनी प्रीमियम के रूप में पैसे भी उनसे ही लेती हैं, मगर दुर्घटना के वक़्त अगर सारा पैसा उन्हें ही भरना होता है तो फिर उनके ‘लाइसेंस और इंश्योरेंस किस काम के?’

ट्रक ड्राइवर्स भले ही अब वापस अपने काम पर लौट गए हों. मगर उनका कहना है कि सरकार को आगे भी देखना पड़ेगा कि इतना बड़ा जुर्माना किसी ड्राइवर के लिए वहन कर पाना न मुमकिन है.

“हादसे दुर्घटनावश होते हैं. कोई भी ड्राइवर जानबूझ कर किसी को नहीं मारना चाहता. ऐसे में इतनी कठोर सज़ा हमारे साथ अन्याय है.”

परमार कहते हैं. वहीँ बिट्टू सरकार से यह कानून (Hit And Run) वापस लेने की मांग करते हुए कहते हैं कि सरकार को ड्राइवर्स के बच्चों के लिए अच्छे स्कूल की व्यवस्था करनी चाहिए साथ ही ट्रांसपोर्ट मालिकों को यह निर्देश देने चाहिए कि उनकी तनख्वाह बढ़ाई जाए.

वीडियो रिपोर्ट

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