Loksabha Election: दमोह लोकसभा बुंदेलखंड में आने वाली बहुत ही खास लोकसभा सीट है। इस सीट से 1989 से लगातार भाजपा ही जीतती आ रही है। इस सीट से देश के पूर्व राष्ट्रपति वी. वी. गिरि के बेटे शंकर गिरि भी लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। यहां के पिछले 2 चुनाव भाजपा के प्रहलाद पटेल जीते थे, लेकिन वर्तमान में यह सीट खाली है। आइये समझते हैं दमोह का सियासी माहौल और समझते हैं यहां की जनता के मुद्दे।
क्या कहती है दमोह की डेमोग्राफी
दमोह में कुल 8 विधानसभाएं हैं। इनमें दमोह की 4 पथरिया, दमोह, जबेरा, और हटा; सागर की 3, बंडा, रेहली, और देवरी, और छतरपुर की मल्हारा विधानसभा है। इन 8 में से 7 पर भाजपा है और छतरपुर की मलहरा से कांग्रेस की बहन रामसिया भारती जीती हैं।
दमोह एक ग्रामीण लोकसभा है। यहां के 81.8 फीसदी मतदाता ग्रामीण हैं। दमोह में अनुसूचित जाति के वोटर 19.5 प्रतिशत हैं, यहां अनुसूचित जनजाति के वोटर 13 प्रतिशत हैं, वहीं दमोह में 3 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं।
2009 से अब तक यहां से लोधी प्रत्याशी ही जीता है। दमोह की 8 में से 3 विधानसभा के विधायक भी लोधी वर्ग से ही आते हैं। इस बार धर्मेंद्र सिंह लोधी (जबेरा), राम सिया भारती (मलहरा), और वीरेंद्र सिंह लोधी (बंडा) दमोह के लोधी विधायक हैं। दरअसल ये क्षेत्र लोधी और कुर्मी बाहुल्य क्षेत्र है, और इस बार भाजपा, कांग्रेस दोनों पार्टियों ने लोधी चेहरे को मौका दिया है।
इस बार कौन है आमने-सामने
प्रहलाद सिंह पटेल यहां से पिछली दो बार से लगातार सांसद चुन के आ रहे थे, और केंद्र सरकार में मंत्री भी थे। 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें चुनाव लड़ाया और वो जीते भी, अब यह सीट रिक्त है। इस बार भाजपा ने राहुल लोधी को उम्मीदवार बनाया है। राहुल लोधी पहले कांग्रेसी थे, उन्होंने 2018 के चुनावों में भाजपा के बड़े नेता जयंत मलैया को हराया था। कमलनाथ सरकार गिरने के बाद राहुल भाजपा में आ गए, उन्हें इनाम में राज्य मंत्री का पद भी मिला था। अब राहुल लोधी लोकसभा के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।
राहुल लोधी के सामने कांग्रेस ने तरवर लोधी को टिकट दिया है। तरवर लोधी ने अपना राजनैतिक करियर सरपंच का चुनाव जीत कर शुरू किया था, बाद में तरवर जनपद सदस्य भी चुने गए। कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में तरवर को बंडा विधानसभा से मौका दिया, और वे अपना पहला चुनाव ही जीत गए। उन्हें 2023 में भी बंडा से टिकट दिया गया था, लेकिन तरवर ये चुनाव नहीं जीत पाए। अब कांग्रेस ने उन पर दमोह लोकसभा से भी भरोसा जताया है।
क्या हैं जनता के मुद्दे
दमोह लोकसभा में केंद्रीय विद्यालय और नवोदय स्कूल तो हैं लेकिन दमोह में तकनीकी उच्च शिक्षा के विकल्प नहीं हैं। मेडिकल कॉलेज और हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय भी सागर में है, जो इस लोकसभा के अंतर्गत नहीं आता है।
दमोह लोकसभा में सड़कों की हालत भी अच्छी नहीं है। जबलपुर-दमोह रोड के डेढ़ साल पहले हाईवे घोषित किया गया था, और एनएचएआई को एजेंसी बनाया गया था, लेकिन काम शुरू होना तो दूर की बात है, अभी तक इसकी कागजी प्रक्रिया भी नहीं शुरू हुई है। दमोह के हटा में शिवपुर पुराना खेड़ा नाम का गाँव भी है जहां अभी तक सड़क नहीं बन पाई है। शहर के घंटाघर की रोड बनी लेकिन थोड़े समय के बाद ही उसमे गड्ढे पड़ गए। इसके अलावा बांदकपुर जो की इस क्षेत्र की आस्था का केंद्र है, वहां की भी सड़के खस्ता हाल में हैं।
दमोह में शंकर गिरि के दौर में एक डायमंड सीमेंट फैक्ट्री खोली गई थी जो अब, माइसेम सीमेंट फैक्ट्री कहलाती है। इसके बाद इस क्षेत्र में कोई खास उद्योग नहीं लगे। पिछले साल हुई इन्वेस्टर समिट में भी दमोह जिले में किसी भी निवेशक ने निवेश नहीं किया। इसके अलावा पुराने उद्योग जो कि स्वीकृत हो चुके थे, जैसे गैसाबाद के पास सीमेंट फैक्ट्री और बटियागढ़ के करीब स्टील प्लांट लगने वाले थे, लेकिन इस काम कोई प्रगति देखने को नहीं मिली।
दमोह स्वच्छता के मामले में अभी भी फिसड्डी है। जबा पहला स्वच्छता सर्वेक्षण आया था तब, मैसूर को सबसे साफ हुए दमोह को देश का सबसे गंदा जिला घोषित किया गया था। शायद दमोह ने इसे तमगे की तरह पहन लिया है क्यूंकि, हालिये स्वच्छता सर्वेक्षण में दमोह का देश भर में 98वां स्थान था। दमोह के स्वच्छता की ये हाल दमोह के सांसद के केंद्र सरकार में मंत्री रहने के बाद थी।
दमोह में पानी की समस्या गंभीर स्तर पर है। यहां के तालाब सूख जाते हैं, और गांव वालों को खेती करने और अपने मवेशी चराने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। अप्रैल के पहले हफ्ते ही पोंड़ी गांव का तालाब फूटने के कारण पानी गंदा, और बर्बाद हो गया, जब जिम्मेदार अधिकारीयों के पास फ़रियाद की गई, तो उन सब ने अचार संहिता का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया। पानी की इतनी किल्लत के बाद भी जनवरी के महीने में ही दूषित जल को कोपरा नदी में मिलाने का मामला एनजीटी (NGT) गया था। जिस पर एनजीटी ने तीन सदस्यीय समिति को जांच का आदेश सौंपा था।
दमोह से जल समस्या से जुड़ी खबरें आम हैं, जनवरी महीने में ही दमोह शहर के लोगों ने नियमित पानी की सप्लाई न होने पर पास के वाटर फिल्टर प्लांट पर धावा बोल दिया और अपनी भड़ास निकाली। गौरतलब है की इस क्षेत्र में जल की समस्या नई नहीं है, लेकिन अभी तक इसका उचित समाधान नहीं हो पाया। पानी को लेकर इस क्षेत्र में प्रशाशन की योजना का क्रियान्वयन भी सही ढंग नहीं हो रहा है। जिले के 411 ग्राम पंचायतों में से सिर्फ 251 गांवों में नल जल योजना का कनेक्शन पूरा हो पाया है।
दमोह में चुनाव 26 अप्रैल को, यानि दूसरे चरण में होना है। दमोह में सड़क, सफाई, शिक्षा और पानी सबसे बड़ी समस्याएं है। ये देखने का विषय है की चुनाव के दौरान दमोह की ये समस्याएं राजनीतिक तवज्जो हासिल कर पाती हैं या नहीं।