शनिवार को मौसम विभाग की तरफ से धूलभरी आंधी की चेतावनी दी गई थी। इसके बाद कल दिन में लगभग 4 बजे धूलभरी आंधी से छतरपुर जिले समेत मध्य प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में बाजार, यातायात बाधित हो गया। इसके साथ ही शहरों की बिजली भी गुल हो गई। लेकिन सबसे भयावह स्थिति छतरपुर के नौगांव में देखने को मिली। यहां नर्स और डॉक्टर शाम में बिना बिजली के मोबाइल की टॉर्च में मरीजों का इलाज करते मिले।
नौगांव में लगभग 3 बजे से बिजली गुल हो गई। जिसके बाद देर रात तक बिजली की कटौती रही। लेकिन इसी बीच सिविल अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी, मरीज और उनके परिजन भयानक गर्मी में परेशान होते रहे। लेकिन यहां अस्पताल में रखे जनरेटरों को नहीं चलाया गया। अस्पताल में अपने पति का इलाज करा रही ऊषा पाल ने बताया
मेरे पति की तबियत खराब है, इलाज चल रहा है, लेकिन अस्पताल में अंधेरा एवं गर्मी छाई है। नर्सें मोबाइल से काम कर रहीं थीं। अगर उस दौरान कोई इमरजेंसी हो जाती तो क्या होता?
अपने पिता का इलाज कराने अस्पताल आईं कविता अहिरवार बताती हैं कि अस्पताल में दो- दो जनरेटर उपलब्ध है, लेकिन दोनों बंद पड़े हुए हैं। यह कोई पहला मौका नहीं जब जनरेटर बंद मिले हों। पहले भी कई बार आपातकालीन परिस्थितियों में जनरेटरों की नाकामी सामने आई है, लेकिन कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई। अस्पताल में शाम 4 बजे से छाए अंधेरे एवं गर्मी से परेशानी के बाद भी अस्पताल में लाइट शुरू करने को लेकर कोई प्रबंध नहीं किया।
जिसके चलते तीन घंटे से अस्पताल में भर्ती मरीज इलाज के दौरान गर्मी से परेशान दिखे तो वहीं नर्सें अंधेरे में मोबाइल टॉर्च को रोशनी से इंजेक्शन, पट्टी आदि इलाज करती रहीं। वहीं डॉक्टर भी अंधेरे में पर्चे पर दवाई लिखते मिले। ऐसे में सवाल यह है कि जनरेटरों की नियमित जांच क्यों नहीं होती? इमरजेंसी सेवाओं में बिजली बैकअप सुनिश्चित क्यों नहीं है? टेक्नीशियन को कॉल करने के बावजूद 4 घंटे का इंतजार क्यों हुआ? क्या यह सीधे तौर पर जान से खिलवाड़ नहीं है?
शाम करीब सवा 7 बजे जब स्थानीय पत्रकार इमरान खान अस्पताल पहुंचे और अधिकारियों से सवाल पूछे जाने लगे, तभी मिस्त्री सक्रिय हुआ। इसके बाद मिस्री ने जनरेटर को बैटरी से स्टार्ट किया तो जनरेटर में डीजल नहीं था, जिसके बाद कर्मचारियों ने डीजल मंगवाया और तब जाकर अस्पताल में विद्युत व्यवस्था दुरुस्त हो सकी। करीब सवा 7 बजे जनरेटर चालू किया गया। ड्यूटी पर उपस्थित मेडिकल ऑफिसर आदित्य प्रताप सिंह कहते हैं,
तेज आंधी एवं तूफान के कारण विद्युत व्यवस्था खराब हो गई थी, तकनीकी समस्या के कारण जनरेटर भी समय पर चालू नहीं हो सका। मिस्त्री के आने के बाद सुधार कार्य कराया गया ,जिसके बाद लगभग सवा तीन घंटे बाद जनरेटर चालू हो सका।
शहरवासी सनातन रावत ने कहा कि मोहन सरकार में भी अब अस्पतालों की हालत दिग्विजय युग जैसी हो गई है। दो-दो जनरेटर और फिर भी अंधेरा? यह घोर लापरवाही है। रावत आगे कहते हैं,
यह सिर्फ बिजली की बात नहीं है, ये स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन है। हम इस पर प्रदर्शन करेंगे और जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे।
नौगांव का सिविल अस्पताल न केवल तकनीकी, बल्कि प्रशासनिक असफलता का केंद्र बनता जा रहा है। शनिवार की घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि व्यवस्थाएं कागज़ों में हैं, जमीन पर सिर्फ अंधेरा और लापरवाही है। यदि अब भी संबंधित अधिकारी नहीं जागे, तो अगली बार यह अंधेरा किसी मासूम की जान भी ले सकता है।
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