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एनजीटी के पेड़ काटने वाले फैसले का क्या है महत्व और कैसे बदलेगी व्यवस्था?

एनजीटी ने मध्य प्रदेश में 25 से ज्यादा पेड़ काटने के लिए सेंट्रली इम्पावर्ड कमिटी की अनुमति अनिवार्य कर दी है। भोपाल के स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के लिए 700 पेड़ काटने के मामले पर सुनवाई के दौरान यह फैसला आया है।

By Shishir Agrawal
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भोपाल के पर्यावरण कार्यकर्ता नितिन सक्सेना की याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने यह आदेश दिया है। Photograph: (Shishir Agrawal/Ground Report)

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देश भर में विकास के नाम पर पेड़ काटना कोई नई बात नहीं है। मगर मध्य प्रदेश में अब इसके लिए 25 से ज़्यादा पेड़ काटने से पहले संबंधित अथोरिटी को एक हाई लेवल सेंट्रली इम्पावर्ड कमिटी (CEC) की अनुमति लेनी पड़ेगी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने अपने हालिया आदेश में यह बात कही है। भोपाल के पर्यावरण कार्यकर्ता नितिन सक्सेना की याचिका पर सुनवाई करते हुए ट्रिब्यूनल के जस्टिस एसके सिंह और जुडिशियल मेंबर डॉ अफरोज़ अहमद ने यह आदेश दिया है। एनजीटी ने प्रदेश के प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ़ फारेस्ट (PCCF) को यह कमिटी बनाने का आदेश दिया है। 

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क्या है मामला और आदेश

दरअसल भोपाल के नीलबड़ के पास स्थित बरखेड़ा में एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का निर्माण होना है। इसमें एक इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम, एक फुटबॉल ग्राउंड सहित दो हॉकी ग्राउंड बनना है। साथ ही इसकी कनेक्टिविटी के लिए एक सड़क का निर्माण होना है। इसके लिए 700 पेड़ काटे जाने हैं। मगर याचिका में इन पेड़ों को काटने की अनुमति पर सवाल उठाए गए थे। 

ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए नितिन सक्सेना कहते हैं,

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“मध्य प्रदेश वृक्षों का परिरक्षण (नगरीय क्षेत्र) अधिनियम, 2001 में स्पष्ट किया गया है कि नगर निगम वाले क्षेत्र में ट्री ऑफिसर नगर निगम कमिश्नर ही होगा…मगर बीते 10 सालों में भोपाल नगर निगम में जो भी कमिश्नर रहे हैं उन्होंने अपनी पॉवर (ट्री अफसर की) अन्य अधिकारों की तरह प्रत्योजित कर दीं।”

ध्यान देने वाली बात यह है कि उपर्युक्त अधिनियम की धारा 4 में कहा गया है कि - 

“राज्य सरकार प्रत्येक शहरी क्षेत्र के लिए राजपत्रित वन अधिकारी, आयुक्त, नगर निगम या मुख्य नगरपालिका अधिकारी से नीचे रैंक के एक या अधिक वन अधिकारियों को इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए “वृक्ष अधिकारी” के रूप में नियुक्त कर सकती है।” 

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साथ ही इसकी धारा 5 में कहा गया है कि - 

“राज्य सरकार समय-समय पर वन विभाग या स्थानीय प्राधिकरण के ऐसे अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को नियुक्त कर सकती है जिन्हें आवश्यक समझा जाए जो वृक्ष अधिकारी के अधीनस्थ होंगे।”

यानि प्रदेश के नगर निगम और नगर पालिका दोनों में ही आयुक्त और सीएमओ के अतिरिक्त किसी को भी वृक्ष अधिकारी (tree officer) बनाने की शक्ति केवल प्रदेश सरकार के पास ही है।

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भोपाल में 8000 पेड़ काटने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया। Photograph: (Shishir Agrawal/Ground Report)

सक्सेना ने हमें बताया कि 700 पेड़ काटने के मामले में जब उन्होंने आरटीआई के माध्यम से कागज़ निकाले तब पाया कि उन अनुमतियों में नगर निगम के कमिश्नर का अनुमोदन ही नहीं है। ऐसे में उन्होंने इन पेड़ों की कटाई के खिलाफ एनजीटी में अपील करते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की थी। 

इस मामले में अपीलकर्ता की ओर से चेम्बर्स ऑफ़ प्रतिपाल सिंह गुप्ता एंड एचएचएंडए लॉ पार्टनर्स के हरप्रीत सिंह गुप्ता और प्रतिपाल सिंह गुप्ता पक्ष रख रहे थे। ग्राउंड रिपोर्ट से इस फैसला के महत्त्व पर बात करते हुए हरप्रीत सिंह गुप्ता कहते हैं,

“ट्रिब्यूनल ने एक सीईसी बनाने का निर्देश दिया है। जब भी किसी प्रोजेक्ट के लिए 25 से ज़्यादा पेड़ काटे जाएंगे सीईसी यह देखेगी कि क्या इसका कोई वैकल्पिक उपाय हो सकता है। साथ ही ट्रिब्यूनल ने हर पेड़ की जियो टैगिंग करने का फैसला निर्देश दिया है। उसकी लोकेशन, नंबर और पेड़ की प्रजाति के बारे में रिपोर्ट तैयार की जाएगी जिसे फिर पीसीसीएफ पब्लिश करेगा।”

गुप्ता ने बताया कि ट्रिब्यूनल ने ट्री सेंसस का भी आदेश दिया है। आदेश के अनुसार,

“राज्य में शहरवार और जिलावार वृक्ष गणना होनी चाहिए जिसकी निगरानी प्रधान मुख्य वन संरक्षक या पीसीसीएफ द्वारा नामित अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए।”

सीईसी: दिल्ली के बाद दूसरा प्रदेश होगा मप्र 

एनजीटी ने नितिन सक्सेना की याचिका पर आदेश देते हुए दो अलग-अलग तरह की कमिटी बनाने को कहा है। पहली फैक्ट फाइंडिंग जॉइंट कमिटी होगी जो इस मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट बनाएगी। इसमें पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अपर मुख्य वन संरक्षक कार्यालय, मप्र से एक-एक प्रतिनिधि होंगे।

वहीं एक अलग से सीईसी कमिटी बनाने का निर्देश है जो न सिर्फ पेड़ काटने के विकल्पों को तालाशेगी बल्कि यह तय करेगी कि जहां पेड़ कट रहे हैं वहीं 10 से 100 गुना तक क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण किया जाए।   

सेंट्रली इम्पावर्ड कमिटी बनाने का फैसला मध्य प्रदेश के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय है। सीईसी का गठन होने और पेड़ काटने के लिए ज़रूरी अनुमति देने के लिए नई व्यवस्था लागू होने के बाद मध्य प्रदेश ऐसी कमिटी वाला देश का पहला राज्य होगा। हालांकि इसी महीने दिल्ली हाई कोर्ट ने भी अपने एक पुराने फैसले को संशोधित करते हुए दिल्ली में भी एक सीईसी के गठन का आदेश दिया है।

दरअसल एक मामले में आदेश देते हुए अगस्त 2023 को हाई कोर्ट ने कहा था कि सभी ट्री ऑफिसर्स किसी भी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटने या उन्हें ट्रांसप्लांट करने की मंज़ूरी देने से पहले कोर्ट की अनुमति लें। बाद में कोर्ट ने कहा कि निजी मकान के निर्माण के लिए काटे जाने वाले पेड़ की भी अनुमति कोर्ट से ही लेनी होगी।     

अब मई में जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा है कि अगर प्रदेश में किसी भी चीज़ के लिए 50 से ज़्यादा पेड़ काटे जाएंगे तो उसके लिए सीईसी की अनुमति लेनी होगी।  

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इंदौर में बीते 5 साल में 2.5 लाख पेड़ काटे गए हैं। Photograph: (Shishir Agrawal/Ground Report)

इस फैसले से क्या बदलेगा?

मध्य प्रदेश के कई बड़े शहरों में डेवेलपमेंट प्रोजेक्ट के नाम पर बड़ी संख्या में पेड़ काटे जाने हैं। हाल ही में भोपाल के अयोध्या बायपास रोड के चौड़ीकरण के लिए भी 8000 से ज़्यादा पेड़ काटे जाने हैं। इस पर न सिर्फ नागरिकों द्वारा विरोध दर्ज किया गया बल्कि इस फैसले के खिलाफ राजधानी में प्रदर्शन भी हुआ। वहीं इंदौर में भी 5 साल में 2.5 लाख पेड़ काटे गए हैं। कोर्ट ने क्रिकेट स्टेडियम की सड़क के लिए कटने वाले 700 पेड़ को लेकर टिपण्णी करते हुए कहा,

“700 पेड़ों को काटने से बनी हरियाली को फिर से बनाने में कम से कम 70 से 100 साल का समय लगेगा और इस तरह इतने सारे पेड़ों के विनाश से पर्यावरण और कई इंसानों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।” 

मगर विकास के कई और प्रोजेक्ट अभी धरातल पर उतरना बाकी है। ऐसे में सवाल है कि एनजीटी के इस फैसले से क्या बदल जाएगा? नितिन सक्सेना इस पर कहते हैं,

“अब चूंकि यह निर्देश हुआ है इसलिए हम 8000 पेड़ कटने को लेकर नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया को पत्र लिखेंगे। साथ ही हम प्रदेश के मुख्य सचिव से भी अनुरोध करेंगे कि जब तक सीईसी नहीं बनती है तब तक वह किसी भी ऐसे प्रोजेक्ट की अनुमती न दे जिसकी वजह से बड़ी संख्या में पेड़ कट सकते हों।”

ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि सीईसी न सिर्फ क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण सुनिश्चित करेगी बल्कि यह भी देखेगी कि यह पेड़ 5 साल तक जीवित रहें।

जहां एक ओर एनजीटी का यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण है वहीं दूसरी ओर इसके व्यवहारिक पहलु को देखना भी ज़रूरी है। सबसे पहले सीईसी में पर्यावरण के लिए कार्य कर रहे कार्यकर्ता का होना ज़रूरी होगा। यह सुनिश्चित किया जाना बहुत आवश्यक होगा कि यह ऐसी कमिटी बनकर ना रह जाए जिसमें केवल सरकारी महकमे के लोग होते हैं। ऐसा होने से सरकारी परियोजनाओं में कटने वाले पेड़ों को बचाना थोड़ा कठिन होगा। 

चूंकि यह भी देखने में आता है कि अमूमन हर परियोजना के लिए 25 से ज़्यादा पेड़ काटने होते हैं ऐसे में साल भर में इस कमिटी के पास कई मामले आएंगे। ऐसे में इसे संचालित करने के लिए राज्य सरकार को बाकायदा वित्त का प्रावधान भी करना होगा। हालांकि दिल्ली के बाद मध्य प्रदेश में इस कमिटी के गठन का आदेश हमें उम्मीद ज़रूर देता है कि प्रशासनिक स्तर पर पर्यावरण बचाने के लिए बेहतर प्रयास हो रहे हैं। इसे आधार बनाकर अब बाकी प्रदेशों में भी ऐसी कमिटियों के गठन की मांग की जा सकती है। साथ ही इस आदेश के बाद प्रदेश के बाकी ज़िलों को भी एक संदेश गया है कि ट्री अफसर के दायित्व सही तरीके से निभाने होंगे।

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