मध्यप्रदेश को देश का ‘सोया राज्य’ कहा जाता है। मध्यप्रदेश देश भर सर्वाधिक सोयाबीन का उत्पादन करता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के 60 फीसदी सोयाबीन का उत्पादन मध्यप्रदेश में ही होता है। इसके अलावा मध्यप्रदेश के सोयाबीन उत्पादन में साल-दर-साल लगातार बढ़त देखी गई है, लेकिन उस अनुपात में कीमतें नहीं बढ़ी हैं। इन्ही वजहों से प्रदेश के किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।
क्या है ये पूरा मामला
इस बार सरकार ने सोयाबीन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 4892 तय किया है। यह पिछले वर्ष की एमएसपी से 292 रुपये अधिक है। हालांकि प्रदेश के किसान संगठन इस मूल्य से नाखुश हैं, और उनकी मांग है कि सोयाबीन पर एमएसपी को बढ़ा कर 6000 किया जाए।
अगर प्रदेश की अनाज मंडियों में सोयाबीन की वर्तमान कीमतें देखी जाएं तो, सोयाबीन की औसत कीमत 4389 रु. प्रति क्विंटल है। वहीं धमनौद मंडी में सोयाबीन की कीमत 3500 रु. प्रति क्विंटल तक गिर गई है। किसानों का तर्क है कि एक बीघा में औसत 3 क्विंटल सोयाबीन ही उत्पादित हो पाती हैं। दूसरी ओर एक बीघा उत्पादन पर आने वाला खर्च तकरीबन 10,000 है। इस वजह से कीमतें न बढ़ने के कारण किसानों को खास मुनाफा नहीं दिख रहा है।
हमने सीहोर जिले की आष्टा तहसील में आने वाले रोला गांव के किसान नीलेश जैन से बात की। नीलेश पिछले कई सालों से लगभग 8 एकड़ भूमि में सोयाबीन की खेती करते आ रहे हैं। सरकार द्वारा दिए गए 4892 रु. की एमएसपी से असंतुष्टि जाहिर करते हुए नीलेश कहते हैं,
4892 रुपये तो बहुत कम है। एमएसपी 6000 से अधिक ही होनी चाहिए उससे कम नहीं। क्यूंकि इस बार खेती लागत ही इतनी बढ़ गई है कि 6000 से कम में कुछ मुनाफा नहीं होगा। एक एकड़ में तकरीबन 5 से 6 क्विंटल की उपज होती है और इस पर हमें 20 से 25 हजार का खर्च आता है।
इस बार लगातार बारिश की वजह से हमें कीटनाशक का भी अतिरिक्त खर्च आया है। अब तक हमें 4 बार कीटनशकों का छिड़काव करना पड़ा है। ऐसी हालत में 4892 रु. की एमएसपी काफी कम है।
प्रदेश के कई जिलों में हो रही कीमतें बढ़ाने की मांग
सोयाबीन की कीमत बढ़ाने की मांग को लेकर प्रदेश के कई जिलों में किसानों द्वारा प्रदर्शन किये जा रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश में सोयाबीन की कीमत को 6000 रु. तक करने के लिए सोशल मीडिया में कैंपेन भी चलाई जा रही है।
प्रदेश के सीहोर, मंदसौर, रतलाम, और अन्य जिलों में किसानों द्वारा सोयाबीन के लिए कीमतें बढ़ाने की मांग की जा रही हैं। इसके अलावा संयुक्त किसान मोर्चा ने भी कीमतें बढ़ाने की मांग की है। इसके संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा हर गांव के ग्राम सचिवों को ज्ञापन सौंपा जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा अगले 7 दिनों तक यह ज्ञापन ग्राम सचिवों को सौंपेगा। 7 दिनों के बाद जिला स्तर पर यह ज्ञापन सौंपे जाएंगे, और आगे की रणनीति बनाई जाएगी।
सोयाबीन किसानों और उनकी मांगों पर कृषि विशेषज्ञ दविंदर शर्मा जी ने एक विस्तृत लेख लिखा है। ग्राउंड रिपोर्ट ने भी इस विषय में दविंदर शर्मा से बात की। दविंदर शर्मा ने किसानों की मांग को जायज ठहराते हुआ कहा कि,
सोयाबीन पर एमएसपी बढ़नी ही चाहिए। जब सरकारी कर्मचारियों की 50 फीसदी पेंशन सुरक्षित होती है, तब इससे किसी को भी आपत्ति नहीं होती है, लेकिन किसानों की मांग पर ही क्यों आपत्ति होती है।
मध्यप्रदेश के किसानों के इस मुद्दे को कांग्रेस ने भी समर्थन दिया है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी, और कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह ने भी सोयाबीन के मामले में सरकार को घेरने का प्रयास किया है।
• सोयाबीन उत्पादन में देश का पहला राज्य बनते हुए #मध्यप्रदेश ने "सोयाबीन प्रदेश" का तमगा हासिल कर लिया है!
— Jitendra (Jitu) Patwari (@jitupatwari) September 2, 2024
• मध्यप्रदेश में 5.47 मिलियन टन सोयाबीन उत्पादन हुआ है! ये देश की कुल सोयाबीन उत्पादन का 41.92% है!
• यह उपलब्धि दिलाने वाला किसान फिर भी उपेक्षित है, क्योंकि वादे के…
कैसा रहा है अब तक एमएसपी का ट्रेंड
सोयाबीन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का रुझान 2010-11 से 2021-22 तक सामान्यतः बढ़त ही दर्शाता है, जिसमें कई वर्षों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है। विशेष रूप से, 2012-13 से 2013-14 के बीच MSP में 2240 से बढ़कर 2560 रुपये/क्विंटल का बड़ा उछाल आया।
एक और महत्वपूर्ण वृद्धि 2016-17 से 2017-18 के बीच हुई, जब मूल्य 2775 से बढ़कर 3050 रुपये/क्विंटल हो गया। MSP लगातार बढ़ता रहा, 2021-22 तक 3950 रुपये/क्विंटल तक पहुँच गया। उल्लेखनीय बात है कि इन 14 वर्षों के दरमियान MSP में कोई गिरावट देखने को नहीं मिली है।
हालांकि किसानों का यह प्रदर्शन अपने लेकिन चरण में है। लेकिन आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार किसानों की मांगों को कैसे संबोधित करती है और उनके लिए बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।
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