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मध्यप्रदेश में खेतों में जल रही पराली, बढ़ रहा प्रदूषण फिर भी इस पर बहस नहीं

Stubble Burning in Madhya Pradesh | फसल कटने के बाद यहां आमतौर पर किसान खेत में बचे फसल अवेशेषों (पराली) को आग लगाकर ही नष्ट करते हैं।

By Pallav Jain
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stubble burning Madhya Pradesh

शाम के 4 बजे हुए हैं, राहुल प्लास्टिक के पाईप को जलाते हैं और उससे खेत में बची सोयाबीन की पराली जलाने लगते हैं, पश्चिम की ओर बह रही मंद हवा धीरे-धीरे खेत में आग को फैला देती है। इससे उठने वाले धुंआ आकाश में छा जाता है। अपने शरबती गेहूं की वजह से देश भर में पहचान रखने वाला मध्यप्रदेश का सीहोर जिला खरीफ के सीज़न में ज्यादातर सोयाबीन की बुवाई करता है। फसल कटने के बाद यहां आमतौर पर किसान खेत में बचे फसल अवेशेषों (पराली) को आग लगाकर ही नष्ट करते हैं। राहुल कहते हैं वो वर्षों से ऐसा ही करते आ रहे हैं, उनके पिता भी यही करते थे।

पंजाब के बाद मध्यप्रदेश में सबसे अधिक जलती है पराली

अक्टूबर के शुरुवाती हफ्ते में इंदौर भोपाल बायपास के आसपास के खेतों में शाम के वक्त आप खेतों में जलती पराली साफ देख सकते हैं। फरवरी-मार्च के महीने में जब गेहूं की कटाई होती है तब भी यह दृष्य आम होता है। पराली जलाने पर मध्यप्रदेश में इतना हंगामा या बहस नहीं होती जैसे पंजाब और हरियाणा में होती है जबकि पंजाब के बाद मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा पराली जलाई जाती है। वर्ष 2020 में मध्यप्रदेश में जहां 49,459 मामले पराली जलाने के सामने आए तो वहीं पंजाब में 92,922 मामले सामने आए थे। मध्यप्रदेश में पिछले 10 सालों में पराली जलाने के मामले 10 गुना बढ़े हैं। यह भी देखा गया है कि रबी के सीज़न में पराली जलाने के मामले खरीफ की तुलना में ज्यादा होते हैं।

रोटोवेटर एक विकल्प

rotovator for stubble
खेत में रोटोवेटर चलवाकर सोयाबीन की पराली मिक्स करता किसान, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

सीहोर में गल्ला मंडी रोड पर किसान महेश हमें अपने खेत में रोटोवेटर से सोयाबीन के फसल अवशेष को खेत में ही मिक्स करवाते दिखे। उन्होंने हमें बताया

"मैने इस बार हार्वेस्टर से सोयाबीन कटवाया था, बचे हुए अवशेष को रोटोवेटर से खेत में ही मिलवा रहा हूं। रोटोवेटर का किराया 1200 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से देना होता है। यह बहुत महंगा पड़ता है लेकिन खेत में आग लगाने से यह बेहतर विकल्प है, यह मेरे खेत के लिए खाद का काम करेगा।"

रोटावेटर एक ट्रैक्टर-चालित उपकरण है जिसका उपयोग मुख्य रूप से मिट्टी को समान करने और मक्का, गेहूं, गन्ना आदि के अवशेषों को हटाने और मिश्रण करने में किया जाता है। हालांकि गेंहूं की पराली में रोटोवेटर ज्यादा उपयोगी नहीं होता क्योंकि गेहूं के फसल अवशेष सख्त होते हैं।

पूसा बायोएंज़ाईम सीहोर के मार्केट में मौजूद नहीं

सीहोर कृषि महाविद्यालय में प्रोफेसर आरपी सिंह बताते हैं कि

"वर्षों से मध्यप्रदेश में किसान पराली में आग लगाते रहे हैं, किसानों में एक मिथ है कि पराली की राख अगली फसल के लिए लाभकारी होती है। लेकिन असल में आग लगाने से मिट्टी में मौजूद ज़रुरी जैविक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जो उर्वरक की तरह काम करते हैं। आजकल बाज़ार में बायोएंज़ाईम मौजूद है जिसका छिड़काव अगर फसल अवशेषों पर किया जाए तो पराली 15-30 दिनों में डिकंपोज़ हो जाती है और अगली फसल के लिए लाभकारी होती है। इससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी बनी रहती है।"

rotovator
रोटोवेटर ट्रैक्टर में अटैच किया जाता है जिससे मिट्टी को एक समान किया जाता है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

हमने जब सीहोर में खाद बीज और दवा का व्यापार करने वाले दुकानदारों से इस PUSA एंज़ाईम के बार में पूछा तो उन्होंने बताया कि यहां यह दवा कोई खरीदता नहीं है इसलिए हम नहीं रखते।

महेश्वरी कृषि उत्पाद के अमित कहते हैं कि

"यहां का किसान पराली में माचिस लगाने में विश्वास रखता है। यह दवा पंजाब हरियाणा में बिकती है, यहां नहीं।"

प्रदूषण बढ़ रहा है, लेकिन फिर भी नियमों का पालन ज़मीन पर नहीं

मध्यप्रदेश सरकार ने जिला कलेक्टर को खेत में लगाई जा रही आग पर नज़र रखने और केस दर्ज करने का निर्देष दिया है। नैशलन ग्रीन ट्राईब्यूनल ने भी खेतों में पराली जलाए जाने पर किसानों पर जुर्माना लगाने का आदेश दिया है। लेकिन मध्यप्रदेश में इन नियमों को सख्ती से लागू नहीं करवाया जाता है। जिसकी वजह से सितंबर-अक्टूबर और मार्च से मई के महीने में जहां तहां पराली जलती रहती है। मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2017 में नोटिफिकेशन जारी कर यह कहा था कि पराली जलाए जाने की वजह से मध्यप्रदेश में बड़े स्तर पर प्रदूषण होता है जिससे कई पर्यावर्णीय जोखिम पैदा होते हैं।

Stubble Burning in Madhya Pradesh 2023
खेत में जलती सोयाबीन की पराली, ग्राम महोड़िया, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

राहुल खेत में आग लगाने के बाद पेड़ की छांव में बैठ जाते हैं और हमसे कहते हैं कि

"गांव में बड़े किसान अपने खेतों में रोटोवेटर चलवाते हैं, हमारे पास इतना पैसा नहीं है, इस वर्ष अगस्त में बारिश नहीं हुई उससे सोयाबीन की आधी फसल खराब हो गई। अगली फसल की बुवाई का पैसा कहां से आएगा यह भी नहीं पता, दवा, खाद, बीज, डीएपी, यूरिया सबकुछ महंगा है। ऊपर से आप एक नई दवा छिड़कने को कह रहे हैं।"

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