बीते दिनों मध्यप्रदेश की सियासत में आंतरिक द्वन्द के लिए मशहूर कांग्रेस के 2 बड़े नेता आमने-आमने आ गए. वायरल हुए एक वीडियो में मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ कुछ नाराज़ कार्यकर्ताओं को दिग्विजय सिंह और जयवर्धन सिंह के कपड़े फाड़ने के लिए कह दिया. हालाँकि बाद में वचन पत्र जारी करते हुए जब दोनों नेता आमने-सामने आए तो बात हँसी-मज़ाक में बदल गई. मगर जिस सीट को लेकर यह बवाल हुआ था वह शिवपुरी (Shivpuri) विधानसभा सीट है.
क्यों ख़ास है Shivpuri विधानसभा सीट
शिवपुरी क्षेत्र सिंधिया परिवार का गढ़ माना जाता है. यहाँ से मौजूदा खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया विधायक हैं. हालाँकि इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है. आसार यह लगाये जा रहे हैं कि भाजपा इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव मैदान में उतार सकती है. साल 2018 में हुए विधान सभा चुनाव में यशोधरा ने 28 हज़ार 748 मतों से जीत हासिल की थी. उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी सिद्धार्थ लाढा को हराया था.
क्या है इस सीट का इतिहास
मध्य प्रदेश के गठन के बाद साल 1957 में हुए विधानसभा चुनाव में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. इस चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. तब से लेकर अब तक इस सीट पर 14 बार चुनाव हो चुके हैं. साल 1998 तक यह सीट कभी कांग्रेस कभी जनता दल और कभी जन संघ के पास गई. मगर 1998 में यशोधरा राजे सिंधिया की इंट्री के बाद समीकरण बदल गए.
साल 1998 के बाद यह सीट बीजेपी के हाथ आई. यशोधरा विधायक बनीं. मगर आगे चलकर यह सीट बीजेपी से ज़्यादा सिंधिया परिवार के गढ़ के रूप में स्थापित होती गई. लगातार 2 बार विधायक बनने के बाद 2007 में शिवपुरी लोकसभा सीट से उप-चुनाव लड़ते हुए यशोधरा संसद पहुँच गईं. इस सीट पर उप-चुनाव हुए मगर इस बार जीत कांग्रेस के पक्ष में गई. इसके बाद 2008 में बीजेपी के माखनलाल राठौर ने पुनः यह विधानसभा सीट बीजेपी को दिलवाई. साल 2013 के विधानसभा चुनावों में यशोधरा ने प्रदेश की राजनीति में वापसी की और तब से अब तक इस सीट पर वही विधायक हैं.
शिवपुरी का अभी का हाल क्या है?
कांग्रेस ने अपनी पहली सूची में पिछोर से 6 बार के विधायक केपी सिंह को शिवपुरी (Shivpuri) से टिकट दिया है. बीजेपी से कांग्रेस में आए वीरेंद्र रघुवंशी कांग्रेस की ओर से इस विधानसभा सीट से लड़ने का सोच रहे थे. मगर टिकट न मिलने पर उन्हे और उनके समर्थकों को निराशा हाथ लगी. जिसके बाद उनके समर्थक कमलनाथ के पास पहुँच गए और फिर कपड़े फाड़ने की सियासत शुरू हुई. रघुवंशी कोलारस से विधायक हैं वहीँ केपी सिंह 6 बार के विधायक और पूर्व में मंत्री रह चुके हैं. सिंह कांग्रेस के बड़े नेता हैं ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के चुनाव लड़ने की सम्भावना यदि सही साबित होती हैं तो केपी सिंह के रूप में कांग्रेस मज़बूत प्रत्याशी पर दाव लगा रही होगी.
जीत के समीकरण क्या हैं?
शिवपुरी (Shivpuri) विधानसभा सीट में 2 लाख 22 हज़ार 539 वोटर्स हैं. इनमें से सबसे ज़्यादा 50 हज़ार वैश्य वोटर हैं. दूसरे नंबर पर (40 हज़ार) आदिवासी और तीसरे नंबर (20 हज़ार) पर ब्राम्हण वोटर्स हैं. हालाँकि यहाँ जीत के समीकरण महल से निर्धारित होते हैं. आम तौर पर यहाँ की जनता में महल का प्रभाव रहता है. ऐसे में यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया यहाँ से चुनाव लड़ते हैं तो केपी सिंह के लिए जीतना मुश्किल होगा. विधानसभा सीट में शहरी वोटर्स ज़्यादा हैं ऐसे में इन्हें अपने पक्ष में करन केपी सिंह के लिए चुनौतीपूर्ण होगा. हालाँकि काम न होने के कारण क्षेत्र में इस बार एंटी-इनकम्बेंसी एक निर्णायक फैक्टर हो सकता है.
पानी अहम मुद्दा होगा
शिवपुरी (Shivpuri) में पानी की कमी एक प्रमुख मुद्दा होगा. सिंधिया का गढ़ होने के बाद भी यहाँ इस मुद्दे को लेकर कोई भी परिवर्तनकारी काम नहीं हुआ है. शिवराज सरकार ने सिंध का पानी यहाँ लाने की बात कही थी. मगर सिंध जल आवर्धन योजना में 140 करोड़ रूपए फुक जाने के बाद भी स्थानीय लोग प्यासे हैं. दूसरा मुद्दा रोज़गार होगा. यशोधरा राजे सिंधिया ने उद्योगमंत्री रहते हुए फ़ूड पार्क के लिए साल 2016 में 13 हेक्टेयर ज़मीन आरक्षित करवाते हुए पार्क की नींव रखी थी मगर अब तक यहाँ कोई भी इकाई स्थापित नहीं हुई है. इसके अलावा सीवेज सिस्टम का न होना चुनावी मुद्दा बन सकता है.
Keep Reading
- Gwalior (15) Seat: प्रध्युमन सिंह तोमर या सुनील शर्मा कौन जीत रहा है चुनाव?
- सीहोर की बदहाल अनाज मंडी, किसानों को न उचित दाम मिला न बैठने को छांव
- सीहोर में बनेगी नई सब्ज़ी मंडी, मौजूदा मंडी में “पिछले 15 दिन से नहीं लगी झाड़ू”
Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on Facebook, Twitter, Koo App, Instagram, Whatsapp and YouTube. Write us on [email protected]