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Satna Vidhansabha: 2023 में सतना में क्या विकास के नाम पर डलेगा वोट?

Satna Vidhansabha मध्य प्रदेश की एक महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र है 2018 के विधानसभा चुनावों  को छोड़ दिया जाए तो यहां पर भाजपा ही जीती है। 

By Ground report
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Satna Vidhansabha Constituency profile 2023

सतना (Satna Vidhansabha) मध्य प्रदेश की एक महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र है जो की भरहुत जैसे पुरातात्विक स्थलों के लिए एवं यहाँ के सीमेंट उद्योग के लिए प्रसिद्द है, अगर राजनीतिक इतिहास की नजर से देखें तो यहां पर बीजेपी का पक्ष मजबूत रहा है 1998 और 2018 के विधानसभा चुनावों  को छोड़ दिया जाए तो यहां पर भाजपा ही जीती है। 

विधानसभा क्षेत्र सतना 2023 प्रत्याशी

  • भाजपा प्रत्याशी- गणेश सिंह वर्तमान सांसद
  • कांग्रेस प्रत्याशी- सिद्धार्थ कुशवाहा

पिछले 2018 चुनाव में (Satna Vidhansabha) कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा ने बड़े अंतर से भाजपा के तीन बार के विधायक शंकर लाल तिवारी को हराया था। पहली बार चुने जाने के बाद भी शंकर लाल तिवारी की यहाँ बहुत अच्छी रेपुटेशन नहीं रही। 2008 के विधानसभा चुनाव में दैनिक भास्कर समाचार पत्र की हेडलाइन थी यह हैडलाइन वहां के नारे थे जो सतना की जनता ने लगाए थे कि "शंकर लाल मजबूरी है शिवराज सिंह जरूरी है" फिर भी वह बीजेपी की लहर के सहारे दो बार और विधायक चुने गए, परंतु 2018 की विधानसभा चुनाव में यहां एक बड़ा उलटफेर हुआ और सिद्धार्थ सिंह कुशवाहा जीते। इस बार भाजपा ने सतना में डैमेज कण्ट्रोल के लिए नए प्रयोग के तहत मौजूदा सांसद और 2003 से लगातार चार बार सांसद चुने जा चुके गणेश सिंह को अपने विधायक उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में उतारा है, अब यह वक़्त ही बताएगा की बीजेपी का यह प्रयोग कितना कारगर सिद्ध होता है। 

गणेश सिंह उमा भारती के दौर में 2003 में भाजपा में आए एवं 2004 में उन्हें संसद के लिए टिकट मिला एवं वह तब से लगातार जीतते आ रहे हैं।  वहीं  सिद्धार्थ कुशवाहा ने  2013 में भी दावेदारी दी थी मगर तब वह शंकर लाल तिवारी से हार गए और 2018 में उन्होंने जीत दर्ज की गौरतलब है कि गणेश सिंह एवं सिद्धार्थ कुशवाहा दोनों ओबीसी वर्ग से आते हैं और सतना की सीट में ओबीसी ओबीसी वर्ग एक बड़ा फैक्टर है। 

Satna Vidhansabha में विकास के मुद्दे

सतना एक शहरी विधानसभा है, सतना में सीमेंट उद्योग भारी मात्रा में फैला हुआ है एवं एवं सतना में भवन निर्माण सम्बंधित खनिजों जैसे कि लाइमस्टोन, बॉक्साइट, लेटराइट एवं मुरुम यानी की बजरी इत्यादि का पर्याप्त भंडार है जो कि यहां पर सीमेंट उद्योग के विकसित होने का प्रमुख कारन है। सतना में मैहर सीमेंट, बिरला, डालमिया, प्रिज्म आदि सीमेंट की प्रमुख कंपनियां है। 

सतना में रेलवे जंक्शन है, एवं सतना को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंदर लिया गया है जिसे स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित किए जाने का प्रयास जारी है एवं इसकी कुल लागत 1530.74 करोड़ है।  

परंतु विकास के अन्य मुद्दों की ओर देखा जाए तो अभी इस बहुत सी चीज हैं जिसमें (Satna Vidhansabha) ने अपेक्षित विकास प्राप्त नहीं किया है, इसका प्रमुख उदाहरण है सतना की शिक्षा व्यवस्था, सतना में महाविद्यालयों की रेपुटेशन अच्छी नहीं है, सतना में बढ़ते हुए रोड एक्सीडेंट भी चिंता का विषय हैं,  एवं सतना में खुद के पास जिला चिकित्सा महाविद्यालय नहीं है जो कि वहां के लोगों के लिए समस्या का सबब है, उन्हें गंभीर बीमारियों के इलाज  लिए या तो रीवा या की फिर जबलपुर जैसे शहरों की ओर जाना पड़ता है। ऐसे में गणेश सिंह के संसद के तौर पे इतने लम्बे कार्यकाल पर हुए कामों पर आवश्यक प्रश्नचिन्ह लगता है। 

चुनाव में विकास के मुद्दों पर बात नहीं

विडंबना यह है कि अभी तक के चुनाव प्रचार में किसी भी पार्टी ने विकास के मुद्दों को आगे नहीं रखा है, उस पर विशेष बात नहीं की है। आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला चलता आ रहा है कांग्रेस के प्रत्याशी की दलील है कि विपक्षी दल की सरकार होने के कारण उन्हें पर्याप्त सहयोग नहीं मिला और वही गणेश सिंह केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण एवं इससे संबंधित विषयों को बार-बार प्रकाश में लाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो की चिंता का विषय है। आखिर एक शहर जो की स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंदर है वहां पर जिला चिकित्सा महाविद्यालय एवं जिला चिकित्सालय का ना होना अपने आप में चिंता का विषय है।  वही 1 लाख से 10 लाख आबादी वाले शहरों  की स्वच्छता सर्वेक्षण सूची में सतना को 65वां स्थान मिला है जो की स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के स्तर के जिले के लिए  उपयुक्त प्रगति नहीं दर्शाता है। 

गौरतलब है कि सतना जिले में यह नया ट्रेंड नहीं है कि विधानसभा या लोकसभा चुनाव के समय विकास के एवं जन कल्याण के मुद्दों को प्राथमिकता न दी गई हो, पिछले लगभग चार पांच चुनाव से यह देखा जा रहा है कि यहां पर यहां पर लहर या नाम या जातीय समीकरण इन आधारों पर पार्टियां प्रचार करती रही हैं और जनता है उन्हें वोट करती रही है, और यह ट्रेंड अभी  भी नहीं बदला है। 

पर इस बार का चुनाव हर बार से अलग हो सकता है पिछली बार तक जहां सतना (Satna Vidhansabha) की जनता शंकर लाल तिवारी से लगभग तंग आ चुकी थी एवं उन्हें फिर से भाजपा द्वारा उम्मीदवार बनाए जाने के कारण उन्होंने शंकर लाल तिवारी को नकार दिया वहीं गणेश सिंह से भी सतना की जनता सांसद के रूप में पर्याप्त संतुष्ट नहीं है। 

कई राजनीतिक पंडित भाजपा के इस प्रयोग को मास्टर स्ट्रोक की तरह देखते हैं वहीं पर कई कहते हैं कि इससे सतना में भाजपा को कोई विशेष लाभ होने के आसार नहीं है वहीं पर सतना में कई बागी भी तैयार हो गए हैं जिनमें से एक हैं रत्नाकर चौबे जो कि भाजपा से विधानसभा पद के लिए उम्मीदवार थे जिनका टिकट काट के गणेश सिंह जी को प्रत्याशी बनाया गया है, और वह निर्दलीय उनके विरुद्ध चुनाव लड़ने का प्रण ले चुके हैं तो यह भाजपा के लिए नुकसान करने का एक बिंदु हो सकता है। 

फिर भी अगर हम निष्कर्ष निकाले तो इस सीट में ओबीसी वर्ग का बाहुल्य है और दोनों प्रत्याशी ओबीसी वर्ग से आते हैं, जिनमें से एक विधायक रह चुके हैं तो एक वर्तमान सांसद हैं एवं यहाँ एंटी इंकम्बेंसी का फैक्टर भाजपा के पक्ष में ज्यादा है। विकास कार्य के तौर पर (Satna Vidhansabha) सतना जिले को स्मार्ट सिटी की सौगात तो मिली पर उसे वह विकास की रफ्तार नहीं मिल सकी जितना उससे अपेक्षित था,  मसलन स्वच्छता के मामले में पिछड़ा होना, एक अच्छी है रैंकिंग का सरकारी कॉलेज, सरकारी यूनिवर्सिटी एवं जिला अस्पताल की कमी इत्यादि इत्यादि भी एक कारण है जो यहाँ विकास की सीमित गति को दर्शाता है।  अब 17 नवंबर को चुनाव है और 2 दिसंबर को नतीजा हैं इस बार उसमें यह स्पष्ट हो जाएगा की जनता ने किस आड़े हाथों लिया और किन विषयों पर ध्यान देते हुए मतदान किया। 

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