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अतिक्रमण और प्रदूषण की चपेट में छतरपुर के तालाब, गहरा रहा है जलसंकट

छतरपुर शहर के ठीक बीच में 2 प्रमुख तलाब किशोर सागर और ग्वाला मगरा तालाब मौजूद हैं. मगर इनकी दशा डंपिंग साईट जैसी है.

By Shishir Agrawal
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Lakes of Chattarpur Madhya Pradesh in abysmal state

छतरपुर शहर के ठीक बीच में 2 प्रमुख तलाब किशोर सागर और ग्वाला मगरा तालाब मौजूद हैं. देश के किसी भी अन्य तालाबों की तरह इसका इस्तेमाल पानी की आपूर्ति के लिए होना चाहिए. मगर इनकी दशा डंपिंग साईट जैसी है. स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यह दोनों तालाब ऐतिहासिक हैं. मगर तालाबों के इतिहास की ही तरह जल आपूर्ति के लिए इन तालाबों का इस्तेमाल भी बीते वक़्त की बात हो चुकी है.  

11 में से 6 तालाब ही बचे

स्थानीय पत्रकार धीरज चतुर्वेदी बीते 10 सालों से किशोर सागर तालाब को अतिक्रमण से मुक्त कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं. वह बताते हैं,

“छतरपुर में जल संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए यहाँ के शासकों द्वारा 11 तालाबों का निर्माण करवाया गया था.”

मगर अब यहाँ केवल 6 तालाब ही बचे हैं. इनमे से 4 बड़े और 2 छोटे तालाब हैं. मगर किशोर सागर और ग्वाला मगरा तालाब में अवैध निर्माण साफ़ दिखाई देता है. इसमें से ग्वाला मगरा तालाब की हालत यह है कि इसके पास खड़े होने पे भी सीवेज की दुर्गन्ध महसूस की जा सकती है. चतुर्वेदी बताते हैं कि पहले यह सभी तालाब एक-दूसरे से छोटी नहर (ओना) के ज़रिए जुड़े हुए थे. मगर अतिक्रमण के चलते यह नहरें भी नष्ट हो गई हैं.

Pollution in Gwala Magra Lake of Chattarpur
शहर के ग्वाला मगरा तालाब का वर्तमान हाल

तालाबों में अतिक्रमण से प्रभावित लोग

किशोर सागर तालाब के पास से निकल रहे पप्पू अहिरवार हमें उत्सुकता से देखते हैं. वह हमसे आकर परिचय पूछते हैं और जानना चाहते हैं कि हमें इस तालाब में क्या रूचि है? 

“इस शहर के लोग भी इन तालाबों की फ़िक्र नहीं करते. तभी इन्हें गन्दा करते हैं और अब तो इस पर दुकानें बनने लगी हैं.”

अहिरवार बताते हैं कि गर्मी के दिनों में शहर में पानी का संकट गहरा जाता है. ऐसे में इन तालाबों के दूषित होने के कारण पानी की आपूर्ति टैंकर के पानी से होती है. मगर उनके अनुसार इससे सभी को आवश्यकता के अनुरूप पानी नहीं मिल पाता है.

mahant Bhagwandas Nirmohi Akhara
महंत भगवानदास के अनुसार उनके बार-बार आवाज़ उठाने के बाद भी तालाब का उद्धार नहीं हुआ है

वहीं महोबा रोड के किनारे स्थित ग्वाला मगरा तालाब की स्थानीय उपयोगिता को बताते हुए निर्मोही अखाड़ा के अध्यक्ष महंत भगवानदास कहते हैं,

“संत परमानन्द ने सन 1603 में इस तालाब को खुदवाया था. 25 साल पहले यहाँ से महोबा जाने वाले यात्री इस तालाब का पानी पीते थे. यहाँ धार्मिक अनुष्ठान होते थे. मगर अब यहाँ देर तक खड़ा होना भी मुश्किल है.”

वह कहते हैं कि इस तालाब के उद्धार के लिए उनके द्वारा कई बार आवाज़ उठाई गई है मगर इस पर कोई भी सुनवाई नहीं हुई.

पानी की किल्लत

मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र सूखे के लिए मशहूर रहा है. छतरपुर सेंट्रल ज़ोन के सूखा प्रभावित जिलों में शामिल है. यहाँ के एक अन्य स्थानीय पत्रकार नरेंद्र सिंह परमार कहते हैं, 

“छतरपुर के तालाबों का निर्माण पहाड़ी क्षेत्र से नीचे बहकर आने वाले पानी को एकत्रित करने के लिए किया गया था. यह तालाब भूजल को रिचार्ज करते हैं. मगर तालाबों पर बढ़ते अतिक्रमण से अब वाटर रिचार्ज भी मुश्किल हो रहा है.” 

शहर के मास्टर प्लान के मुताबिक शहर में जलप्रदाय मुख्य रूप से धासन नदी और खोफ तालाब से किया जाता है. वहीं ज़िले में साल भर में कुल 52 हज़ार 873 हेक्टेयर-मीटर (ha m) भूजल का उपयोग किया जाता है. वहीं केवल छतरपुर में भूजल दोहन का हाल ऐसे समझिए कि यहाँ भूजल स्तर सेमी क्रिटिकल श्रेणी में आता है. सेमी क्रिटिकल श्रेणी में ऐसे शहर आते हैं जहाँ 71 प्रतिशत से लेकर 90 प्रतिशत तक भूजल का इस्तेमाल होता है. ऐसे शहरों में भूजल स्तर को बढ़ाने और इसका दोहन कम करने की सलाह दी जाती है.

कैसे होता है पानी सप्लाई

छतरपुर मध्य प्रदेश के 34 अमृत (AMRUT) शहरों में शामिल है. इस मिशन का मुख्य उद्देश्य शहरों में पानी की सप्लाई को सुनिश्चित करना है. मध्य प्रदेश में इस मिशन को संभाल रहे नगरीय प्रशासन विभाग के कार्यपालन यंत्री रवि चतुर्वेदी कहते हैं,

“अमृत मिशन के तहत वाटर सप्लाई के लिए सर्फेस वाटर का इस्तेमाल किया जाता है.”

गौरतलब है कि छतरपुर के लिए 75.44 करोड़ की अमृत परियोजना स्वीकृत की गई थी. इसके तहत धासन नदी, बूढ़ा बाँध और खोफ तालाब से पाइप के ज़रिए पानी की सप्लाई की जाती है. नगर पालिका के इंजीनियर गोकुल प्रजापति बताते हैं, 

“24.6 (MLD) का एक प्लांट धासन नदी के पचेर घाट में बनाया गया है, 6 एमएलडी का एक प्लांट बूढ़ा बाँध में है इसके अतिरिक्त 4 एमएलडी का प्लांट खोफ तालाब में है.”

वह बताते हैं कि इन फ़िल्टर प्लांट्स से पानी 23 लाख लीटर की क्षमता वाले क्लियर वाटर सम्प वेल में लाया जाता है जिन्हें बाद में पाइपलाइन के ज़रिए वितरित किया जाता है. उनके अनुसार छतरपुर के अनुमानित 44 हज़ार घरों में से 32 हज़ार घरों में नगर पालिका द्वारा कनेक्शन दिया गया है. इसके लिए 225 किमी की पाइपलाइन बिछाई गई है.

तालाबों को बचाने में नाकाम प्रशासन

Kishore Sagar Lake Chattarpur
किशोर सागर तालाब में मौजूद गन्दगी

ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने में तालाब अहम भूमिका निभाते हैं. मगर स्थानीय प्रशासन इन्हें बचाने के मामले में शिथिल नज़र आता है. शहर के किशोर सागर तालाब को बचाने के लिए धीरज चतुर्वेदी और बीएल मिश्रा द्वारा एक याचिका नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में दाखिल की गई थी. साल 2014 में ट्रिब्यूनल द्वारा याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला दिया गया. 

इस दौरान ट्रिब्यूनल द्वारा कहा गया कि ज़िले के कलेक्टर यह सुनिश्चित करें कि किसी भी तरह का सॉलिड वेस्ट इस तालाब में न छोड़ा जाए. साथ ही एनजीटी ने कलेक्टर को कैचमेंट एरिया से कब्ज़े हटाने का भी आदेश दिया था. मगर 10 साल बीत जाने के बाद भी यह कब्ज़े कायम हैं. 

बीएल मिश्रा द्वारा साल 2021 में न्यायलय की अवमानना का केस पुनः दाखिल किया गया. ग्राउंड रिपोर्ट को प्राप्त कार्यवाही विवरण के अनुसार एनजीटी ने इस फैसले का पालन स्थानीय ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश को दिया गया. इस कोर्ट द्वारा 3 बार कलेक्टर से एक्शन टेकन रिपोर्ट मांगी गई मगर इसका कोई भी जवाब नहीं दिया गया. 

अतिक्रमण से सिकुड़ता तालाब

एनजीटी 2014 के अपने फैसले का संदर्भ देते हुए यह माना कि अतिक्रमण से किशोर सागर तालाब का आकार सिकुड़ रहा है. बीएल मिश्रा कहते हैं,

“तालाब को अतिक्रमण मुक्त करवाने के लिए सबसे पहला काम तालाब का उचित डिमार्केशन था. फिर इस सीमा से अतिक्रमण हटाना था.”

kishore sagar Lake Chattarpur Encroachment
किशोर सागर तालाब के कैचमेंट एरिया में मौजूद अतिक्रमण

साल 2011 में तत्कालीन एसडीओ और तहसीलदार की एक समिति का गठन इस बावत किया गया था. मगर न्यायालय में प्रशासन द्वारा अलग ही सीमांकन प्रस्तुत किया गया है. वहीं धीरज चतुर्वेदी भोज वेट लैंड केस का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि प्रदेश के सभी तालाबों में कब्ज़ा प्रशासन की शह पर हुआ है. एक ही पैटर्न पर प्रशासन ने डिमार्केशन से हाथ खींचा है और सीवेज के मामले में चुप्पी साधी है. 

चतुर्वेदी बताते हैं कि तालाब के आस-पास बनी कॉलोनियों से निकलने वाले सीवेज के चलते पानी की शुद्धता (water quality) पर विपरीत असर पड़ा है. साल 2012 में इस तालाब पर हुए एक अध्ययन में भी इस तालाब के पानी की स्थिति को बुरा बताया गया था. अध्ययन के अनुसार बढ़ता हुआ तापमान और सीवेज का इकठ्ठा होना इसका प्रमुख कारण है.  

बदलती जलवायु और उसके परिणाम स्वरुप बढ़ते तापमान के चलते दुनिया भर में पानी की समस्या एक अहम् मुद्दा है. बुंदेलखंड के लिए यह तथ्य और भी चिंताजनक है. ऐसे में छतरपुर से तालाबों का गायब होना एक बड़ी समस्या है. यह वह जल संसाधन हैं जो भूजल को रिचार्ज करते हैं. ऐसे में प्रशासन का इनसे कब्ज़ा न हटा पाना भविष्य के संकट को और शह देता है.

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