अक्टूबर की गुलाबी ठण्ड में धूप सेंकती सुशीला अहिरवार अपने घर के बरामदे में बैठी हुई हैं. वह इस अधपक्के मकान में बीते 60 साल से रह रही हैं. उम्र के 64वें साल में पहुँच चुकी सुशीला के लिए फुर्सत के यह क्षण बेहद कीमती हैं. जल्द ही भोपाल में शादियों का मौसम शुरू हो जाएगा. सुशीला इन शादियों में बर्तन धुलकर अपने परिवार को चलाने में मदद करती हैं. वह बताती हैं कि इससे होने वाली कमाई से घर चलाने में थोड़ी मदद तो मिलती है मगर अपने मकान को पूरी तरह से पक्के घर में तब्दील कर देने की उनकी इक्षा कभी पूरी नहीं हो पाती.
सुशीला की तरह महादेव नगर बस्ती में रहने वाली लीला बाई (58) भी घर चलाने के लिए पास स्थित एक कॉलोनी में बर्तन धुलने का काम करती हैं. बस्ती की तंग गली के अन्दर टीन शेड की तरह बने 1 कमरे के अपने घर को दिखाते हुए वह अपनी समस्याओं को गिनाती हैं. विधानसभा चुनाव में उनके लिए क्या मुद्दा है? यह पूछने पर वह कहती हैं,
“हमें तो बस सरकार घर बनाकर दे दे, यही चाहते हैं.”
नई शहरी आवास योजना की बात
बीते सितम्बर के महीने में इंदौर में एक जन सभा को संबोधित करते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मध्य प्रदेश में जल्द ही एक नई शहरी आवास योजना लाई जाएगी जिसमें लोगों को उनके प्लाट पर घर बनाने के लिए सरकार सहायता करेगी. हालाँकि इस योजना का कोई भी खाका अब तक सार्वजानिक नहीं किया गया है. इसके बावजूद मध्य प्रदेश ने गरीबों को आवास देने के मामले में जुलाई के महीने में ही कीर्तिमान स्थापित किया है. प्रदेश ने प्रधान मंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत 6.76 लाख पक्के मकान बनाकर लोगों को दिए हैं. पूरे देश में यह करने वाला मध्य प्रदेश दूसरा सबसे बड़ा राज्य है. मध्य प्रदेश में इस योजना के तहत 9 लाख 61 हज़ार 147 आवास स्वीकृत हुए हैं. इनमें से 30 अक्टूबर 2023 तक 7 लाख 20 हज़ार 723 आवास पूरे हो चुके हैं. मगर इन तमाम बड़े आंकड़ों में न तो सुशीला का घर शामिल है और ना ही लीला बाई का.
भोपाल नगर निगम (BMC) के एक अधिकारी नाम न उजागर करने की शर्त पर कहते हैं, “पीएम आवास योजना के अंतर्गत भोपाल में 17 जगहों में घर बनाए गए हैं.” वह बताते हैं कि सरकार एक आवास बनाने के लिए कुल 8.6 लाख खर्च करती है. यह पैसा लोन के रूप में अलग-अलग हिस्से में दिया जाता है.
“1.5 लाख केंद्र और इतना ही राज्य सरकार अनुदान के रूप में देती है. 2 लाख रूपए हम लाभार्थी से लेते हैं. बचा हुआ 3.6 लाख निगम द्वारा बनाए गए एलआईजी/एमआईजी फ्लैट को बेचने से प्राप्त राशि से लेकर इसमें जोड़ा जाता है.”
घरो की मरम्मत बड़ी चुनौती
बाणगंगा झुग्गी में रहने वाली संतोषी के लिए सरकारी रुपयों का यह गणित बेमानी है. वह जिस झुग्गी में रहती हैं वहां छत के नाम पर एक पन्नी मात्र है. चुनाव से उनका सम्बन्ध सिर्फ इतना है कि यह पन्नी किसी चुनाव में नेता का होर्डिग हुआ करता था.
“बरसात में मेरे घर की दिवार भी गिर गई थी तब 45 हज़ार रूपया क़र्ज़ लेकर घर बनाया है.”
संतोषी अपना गणित समझाते हुए कहती हैं. संतोषी की ही तरह यहाँ कई लोग हैं जिन्होंने अपने घर की मरम्मत के लिए क़र्ज़ लिया है. संतोषी बताती हैं कि उनके पति की तबियत ख़राब हो जाने के कारण इस कर्ज़े को चुकाना मुश्किल होता जा रहा है.
नगर निगम के अधिकारी बताते हैं कि किसी झुग्गी में पीएम आवास देने के लिए ज़रूरी है कि उस झुग्गी को पूरी तरह से ख़ाली करवाया जाए. इसके बाद झुग्गियों की जगह आवास बनाए जाते हैं. झुग्गी ख़ाली न होने की सूरत में झुग्गी के रहने वाले लोगों को पास ही स्थित किसी ख़ाली सरकारी ज़मीन पर आवास बनाकर दिया जाता है. मगर भोपाल की बाणगंगा बस्ती में 2 हज़ार रूपए किराया देकर रह रही रक्षा कहती हैं कि जब उन्होंने पीएम आवास के लिए आवेदन किया तो अधिकारियों द्वारा उन्हें एक जगह से दूसरी जगह टहला दिया गया. “अधिकारी कभी कहते हैं कि यहाँ, जाओ कभी वहां जाओ.” वह कहती हैं.
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