RBI ने पंचायतों के सिलसिले में एक रिपोर्ट 'Finances of Panchayati Raj Institutions' जारी की है। इस रिपोर्ट में पंचायतों में विभिन्न वर्गों की भागीदारी और फंड्स को लेकर काफी विस्तृत जानकारियां दी गई है। पंचायती राज्यों के फंड्स से सम्बंधित स्थिति काफी चिंताजनक है। आइये संक्षेप में जानते है क्या बताती है यह रिपोर्ट।
महात्मा गांधी के बड़े सपनों में से एक था भारत में सत्ता का विकेन्द्रीकरण और मजबूत पंचायतें। अगर 2011 की जनगणना के आंकड़ों की मानें तो भारत की 69 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। इस प्रकार पंचायतें स्थानीय स्वशाशन और जनता की साधारण समस्याओं के निवारण के सबसे उपयुक्त उपकरण हैं।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए 1992 में 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिया गया। संविधान में नियमित चुनाव, आरक्षण और एक राज्य वित्त आयोग की व्यवस्था भी की गई। पंचायतों को शक्ति है कि वे अपने क्षेत्र में पार्क, तालाब इत्यादि बनवा सकती हैं, कोई आयोजन कर सकती हैं और इन सब के लिए उपयुक्त कर भी लगा सकती हैं। लेकिन 30 सालों के बाद भी पंचायतें आर्थिक तौर पर अपने पैरों में खड़ी नहीं हो पा रहीं हैं।
RBI की इस रिपोर्ट के अनुसार पंचायतों की कुल आय का सिर्फ 1 प्रतिशत हिस्सा ही पंचायतों द्वारा लगाए गए करों से आता है। पंचायतों का 80 फीसदी फंड केंद्र सरकार और 15 फ़ीसदी फण्ड राज्य सरकार देती है। अगर मध्य प्रदेश के मद्देनजर देखें तो जहां 2021-22 में मध्य प्रदेश की एक पंचायत को 10,11,059 रूपये की कुल राजस्व प्राप्ति हुई थी वो साल 2022-23 में बड़े अंतर से घट कर 7,58,200 रुपये रह गई है।
पंचायतों का पैसों के लिए अन्य संस्थानों पर बड़ी तरह से निर्भर होना इनकी कार्यप्रणाली को बाधित करता है। जब फण्ड कई चैनलों से होकर गुजरता है तो यह अफसरशाही और फाइलों में फसकर अपने गंतव्य तक काफी देर से पहुंचता है जिसके कारण पंचायतों के कार्य रुके रह जाते हैं। इसके अलावा बाहर से फण्ड आने पर अफसरों का पंचायतों में दखल भी बढ़ जाता जिससे भ्रष्टाचार को भी शय मिलती है।
RBI ने अपनी इस रिपोर्ट में स्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं। RBI सुझाता है की विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और पंचयतों को कर लगाने के लिए और अधिक शक्तियां व विकल्प दिए जाने चाहिए। इसके साथ ही स्थानीय नेताओं को उनके क्षेत्र में अधिक शक्तियां मिलनी चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकें। ग्रास रुट तक लोगों और पंचायत नेताओं को उनकी शक्तियों को लेकर जागरूक करना भी आवश्यक है। अगर देश की पंचायतें मजबूत होंगी तो ही भारतीय लोकतंत्र को उसके सही मायने मिलेंगे और गांधी जी का सपना पूरा हो पायेगा।
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