National Green Tribunal (NGT) ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों और प्रधान मुख्य वन संरक्षकों को, बंध बरेठा वन्यजीव अभ्यारण के भीतर अवैध खनन और परिवहन गतिविधियों के संबंध में, स्थानीय अधिकारियों के बीच मिलीभगत और भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने के निर्देश जारी किए हैं।
राजस्थान के भरतपुर से लगभग 45 किलोमीटर और उत्तर प्रदेश में फ़तेहपुर सीकरी से 76 किलोमीटर दूर स्थित यह अभ्यारण बड़े पैमाने पर अवैध खनन गतिविधियों के कारण विवादों में घिर गया है। यहां गंभीर पर्यावरणीय क्षति हुई है और सरकारी खजाने को काफी नुकसान हुआ है।
रिपोर्टें अभ्यारण के भीतर गड़बड़ियों की भरमार का संकेत दे रहीं हैं, जिनमें अभ्यारण के अंदर की सड़कों को नुकसान, सीमा की दीवारों से छेड़खानी, अनधिकृत पेड़ों की कटाई और बिजली के लिए जनरेटर का अवैध उपयोग शामिल है। इसके अलावा, पत्थर के ब्लॉकों के परिवहन के लिए बड़े ट्रकों की तैनाती के साथ-साथ खनन कार्यों के लिए कथित तौर पर भारी मशीनरी और क्रेन का उपयोग किया जा रहा है।
National Green Tribunal (NGT) ने इस बात को रेखांकित किया कि अधिकारियों ने पर्यावरण अधिनियम, 1986 के तहत आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरियों की उपेक्षा के साथ-साथ जल अधिनियम 1974, और वायु अधिनियम 1981 के प्रावधानों की उपेक्षा के साथ क्षेत्र में भारी अवैध खनन की पुष्टि की है।
इसके अतिरिक्त, Sustainable Sand Management Guidelines (SSMG), 2016 की भी स्पष्ट रूप से अनदेखी की गई है, जिसके कारण पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा चिंता की बात यह भी है कि प्रभावित क्षेत्र की बहाली के लिए कोई मैनेजमेंट प्लान भी तैयार नहीं किया गया है।
इन गंभीर आरोपों की प्रतिक्रिया में National Green Tribunal (NGT) ने, मुख्य सचिव और प्रधान मुख्य वन संरक्षक के द्वारा, दो स्वतंत्र वरिष्ठ विभागीय अधिकारियों के नामांकन का प्रस्ताव दिया है। इन अधिकारियों को मामले की गहन जांच करने, दोषी अधिकारियों की पहचान करने और अवैध खनन गतिविधियों पर अंकुश लगाने के उपायों की सिफारिश करने का काम सौंपा जाएगा। इसके अलावा, वे अवैध खनन कार्यों के कारण सरकारी खजाने को होने वाले वित्तीय नुकसान का भी आकलन करेंगे।
NGT ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में निर्धारित दंड को लागू करने और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा निर्देशित पर्यावरणीय मुआवजे की वसूली की आवश्यकता पर भी जोर दिया है। इसके अतिरिक्त, इसने सीपीसीबी या एनजीटी द्वारा निर्धारित अपेक्षित दंड या मुआवजे के भुगतान के अधीन, अवैध खनन परिवहन में शामिल वाहनों को जब्त करने का भी निर्देश दिया है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि NGT के आदेश की प्रतियां राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों, दोनों राज्यों के प्रधान मुख्य वन संरक्षकों और राजस्थान और उत्तर प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के सदस्य सचिवों को भेज दी गई हैं।
इन अधिकारियों को स्थापित नियमों के अनुसार त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है। साथ ही इन कार्रवाइयों की प्रगति का विवरण देने वाली एक रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करना अनिवार्य है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 22 अप्रैल, 2024 को होनी है।
NGT का सक्रिय रुख पर्यावरणीय गिरती गुणवत्ता और बढ़ते भ्रष्टाचार को संबोधित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो भारत के प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत देता है। चूंकि पर्यावरण के हितधारक इसमें सुधर के लिए प्रतीक्षा कर रहें हैं , इसलिए इन जांचों और उसके बाद की कार्रवाइयों के नतीजे संरक्षण के प्रयासों और क्षेत्रीय प्रशाशन के लिए दूरगामी हो सकते हैं।
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