नसरुल्लागंज, मध्य प्रदेश | 5 एकड़ ज़मीन पर खेती करने वाले रामेश्वर केवट अपने खेतों से सोयाबीन का पौधा उखाड़कर दिखाते हैं और बताते हैं कि "सिर्फ पत्ते हरे हैं साहब फली मिट्टी लगने से खराब हो गई है, अब इसमें फल नहीं आएगा। हमने तिल्ली, मूंग, मक्का भी बोयी थी लेकिन वो भी बाढ़ के पानी में बर्बाद हो गई।"
नसरुल्लागंज: 400 एकड़ खेतों की फसल बाढ़ से हुई खराब
दरअसल 16 अगस्त को मध्यप्रदेश में भारी बारिश के बाद कोलार, तवा और बरगी बांध के गेट खोलने पड़ गए, इससे नर्मदा नदी में अचानक पानी का जलस्तर बढ़ गया। नर्मदा नदी से लगे हुए 15 गांवों में पानी घुस गया, बाढ़ से नसरुल्लागंज के पास नीलकंठ, छिदगांव काछी और सातदेव गांव में फसलों को भारी नुकसान हुआ है। कई किसानों की 100 फीसदी फसल 48 घंटे तक खेतों में पानी भरे रहने की वजह से खराब हो चुकी है। यहां किसानों की सोयाबीन और मक्का की फसल को ज्यादा नुकसान हुआ है।
नीलकंठ गांव के सरपंच संतोष वर्मा बताते हैं कि "एसडीएम साहब ने दो दिन पहले गांव वालों को नर्मदा का जलस्तर बढ़ने की चेतावनी दे दी थी, इसके लिए निचले इलाके के खेतों में मवेशियों को छोड़ने का आदेश दिया था। बड़ी संख्या में मवेशी छोड़े गए, इसकी वजह से जिन-जिन किसानों की फसल बाढ़ से बच सकती थी वो मवेशी चरने की वजह से खराब हो गई।"
सरपंच कहते हैं कि "फसलों का सर्वे ज़मीनी स्तर पर होना ज़रुरी है, ताकि किसानों को उचित मुआवज़ा मिल सके। ऊपर से देखने पर सोयाबीन हरी दिखाई दे रही है, लेकिन बाढ़ का पानी 2 दिन तक खेतों में भरा रहा इसकी वजह से सोयाबीन के पौधों को नीचे से नुक़सान हुआ है, सोयाबीन की फलियां मिट्टी लगने से पूरी तरह गल चुकी हैं।"
बांध से छोड़ा जाने वाला पानी नर्मदा किनारे बसे किसानों के लिए हर वर्ष मुसीबत लाता है
नसरुल्लागंज का नीलकंठ गांव नर्मदा के किनारे बसा हुआ है, हर वर्ष बारिश में किसानों की फसलें चौपट हो जाती हैं। नीलकंठ गांव के हरिप्रसाद केवटकहते हैं कि "यहां खरीफ की फसल सही से हो जाना किस्मत की बात है। वो हर वर्ष यही सोचकर सोयाबीन लगाते हैं कि भगवान ने चाहा और नर्मदा का जलस्तर नहीं बढ़ा तो फसल ठीक हो जाएगी।" पिछले 3-4 सालों से उनकी खरीफ की फसल बर्बाद ही हो रही है क्योंकि अब मौसम का कोई भरोसा नहीं होता।
धनलाल बताते हैं कि वो अपने मन से ही बीज का चुनाव करते हैं, उन्हें सरकार की तरफ से मौसम की मार झेल सकने वाले बीजों के बारे में नहीं बताया जाता। पिछले साल सोयाबीन की फसल खराब हुई तो इस साल मक्का बोई लेकिन अब वो भी खराब हो गई। किसानी छोड़कर और कुछ कर भी नहीं सकते, यहां और कुछ रोज़गार का साधन भी नहीं है।
किसान हरिप्रसाद केवट कहते हैं कि "खेती की लागत पिछले दो सालों में दुगनी हो गई है और सरकार की ओर से मिलने वाला मुआवज़ा आधा, हम व्यापारियों से उधार लेकर कीटनाशक, खाद और बीज खरीदते हैं, इस उम्मीद में की फसल आने के बाद चुका देंगे, लेकिन जब मंडी में फसल बेचने जाते हैं तो फसलों के दाम भी नहीं मिलते और अधिकारी परेशान करते हैं। किसानी से पेट पालना मुश्किल है रोज़गार के और कोई साधन है नहीं, मजबूरन अब मज़दूरी करने जाना होगा। पढ़े लिखे लोगों को तो नौकरी सरकार दे नहीं रही, हमारे जैसे अनपढ़ किसानों को कहां से रोज़गार देगी। महंगाई इतनी है कि बाल-बच्चों का पालन पोषण करना मुश्किल हो रहा है।"
नीलकंठ गांव सीहोर जिले के नरसुल्लागंज कस्बे से 10 किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा नदी के किनारे बसा है। यहां बाढ़ के पानी ने किसानों की फसल को नष्ट कर दिया है। किसान चाहते हैं कि सरकार जल्द से जल्द उनके खेतों का सर्वे करे और मुआवज़े का ऐलान करे, ताकि उनकी थोड़ी परेशानियां कम हो सके।
जलवायू परिवर्तन बढ़ा रहा है किसानों की मुसीबत
दुनियाभर के किसान जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहे मौसम चक्र में बदलाव से परेशान हैं। एक्सट्रीम वेदर कंडीशन से फसलों को कैसे बचाया जाए यह उनको नहीं पता है। उन्हें कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है। जबकि ऐसी कई तरह की फसलों के किस्म मौजूद है जो एक्सट्रीम वेदर में भी खराब नहीं होती, लेकिन किसानों को इस बारे में जानकारी नहीं है।
नीलकंठ गांव में लगातार खराब हो रही धान, सोयाबीन, मूंग और मक्का की फसल से किसान निराश हैं वो अब अपने खेतों में बांस की खेती के बारे में भी सोच रहे हैं, लेकिन इसे कैसे शुरु किया जाए इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। यूट्यूब से कुछ वीडियो देखकर उन्होंने कुछ जानकारी ज़रुरी ली है, लेकिन वो नई शुरुवात के लिए काफी नहीं है। ज़रुरत है कि ऐसे इलाकों में रह रहे किसानों को विकल्प सरकार की ओर से दिए जाने चाहिए ताकि किसान अपने खेत बेचकर पलायन को मजबूर न हो जाएं।
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