Loksabha Election 2024: छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश की ऐसी सीट है, जिसे कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है। शायद यह प्रदेश की इकलौती सीट बची है जिसे कांग्रेस अपना गढ़ मान सकती है। यहां से 1980 से अनवरत कमलनाथ (और उनका परिवार) जीतते आ रहे हैं।
कमलनाथ यहां लगातार 44 साल से सांसद हैं, हालांकि एक बार 1997 में छिंदवाड़ा से कमलनाथ को हार भी मिली है। कमलनाथ पर हवाला के आरोप लगने के बाद, यह से उनकी पत्नी अलका नाथ सांसद बनी थीं। 1997 के उपचुनाव में कमलनाथ को भाजपा के दिग्गज नेता और मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने हराया था। 1998 में कमलनाथ ने वापस अपनी सीट जीती, और अभी तक कांग्रेस यहां काबिज है। इस बार के चुनाव में भाजपा भी यहां काफी मशक्क्त कर रही है। आइये देखते है छिंदवाड़ा की राजनैतिक पृष्ठभूमि, और समझते हैं जनता के मुद्दे।
क्या कहती है छिंदवाड़ा की डेमोग्राफी
छिंदवाड़ा लोकसभा में कुल सात विधानसभा शामिल है। हाल के विधानसभा चुनावों में सातों सीट कांग्रेस ने जीती थी, लेकिन पिछले सप्ताह ही अमरवाड़ा विधायक कमलेश शाह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए हैं।
छिंदवाड़ा में 75 फ़ीसदी मतदाता ग्रामीण है। छिंदवाड़ा में आदिवासी समुदाय का बाहुल्य है, यहां 36 प्रतिशत मतदाता आदिवासी वर्ग से हैं, और 11 फीसदी मतदाता अनुसूचित जाति के हैं, वहीं छिंदवाड़ा में मुस्लिम मतदाता 4.4 प्रतिशत के करीब हैं।
क्या है छिंदवाड़ा का सियासी माहौल
छिंदवाड़ा में कांग्रेस पिछले 44 साल से अपना झंडा गड़े हुए है। पहले कमल नाथ यहां से सांसद हुआ करते थे लेकिन अब विधायक हैं। सांसदी का बैटन अब उन्होंने अपने बेटे नकुल नाथ को पास कर दिया है।
यहां से 2019 का लोकसभा चुनाव भी नकुल नाथ ने लंबे मार्जिन से जीता था। कांग्रेस ने इस बार भी छिंदवाड़ा से नकुल नाथ को ही मैदान में उतारा है। हालांकि इस बार का चुनाव पिछले चुनावों से अलग है। इस बार भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस का यह गढ़ भेदने का लगातार गंभीर प्रयास कर रही है।
फरवरी महीने में कमल नाथ और नकुल नाथ के भाजपा में जाने की खबरें हवा पकड़ने लगी थीं। शुरुआत में कमलनाथ ने भी इन ख़बरों को नाकारा नहीं था, लेकिन वो पार्टी में बने रहे। कमलनाथ तो कांग्रेस में बने रहे लेकिन उनके लगभग सभी सहयोगी नेता अब भाजपा का रुख कर चुके हैं।
सैय्यद जफर, गंभीर सिंह चौधरी, अमरवाड़ा विधायक कमलेश शाह और उनकी पत्नी माधवी शाह, दीपक सक्सेना के बेटे अजय सक्सेना और छिंदवाड़ा के महापौर विक्रम अहाके, ये सभी छिंदवाड़ा कांग्रेस के बड़े नाम है जो अब भाजपा का हिस्सा हैं। इनके साथ बड़ी तादाद में जमीनी कार्यकर्ता भी भाजपा में गए है, इसका भले ही बड़ा परिणाम न निकले लेकिन छिंदवाड़ा में कांग्रेस को थोड़ा बहुत डैमेज तो होगा ही।
नकुल नाथ के प्रतिद्वंदी के तौर पर भाजपा ने विवेक साहू ‘बंटी’ को खड़ा किया है। उनके समर्थन में प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और भाजपा के अन्य बड़े नेता लगातार दौरे कर रहे हैं।
गौरतलब है कि 2023 के विधानसभा चुनावों में विवेक, कमलनाथ से हार तो गए, लेकिन उनकी हार का अंतर मात्र 36594 का ही था। ये अंतर बाकी सीटों में भले ही सामान्य लगे, मगर कमलनाथ के मामले में ऐसा नहीं है, क्यूंकि कमलनाथ इससे पहले हर चुनाव बड़े अंतर से ही जीतें है। लोकसभा चुनाव में भी आसार नजर आ रहे हैं की बंटी साहू कमल नाथ को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।
क्या है छिंदवाड़ा के मुद्दे
छिंदवाड़ा को देखने में समझ आता है की इतने सालों से कमल नाथ यों ही नहीं जीत रहे हैं। उन्होंने छिंदवाड़ा का बराबर ध्यान रखा है। छिंदवाड़ा में लगभग वे सभी व्यवस्थाएं हैं जो एक बड़े शहर में होती हैं, और प्रदेश के किसी भी अन्य आदिवासी बाहुल्य जिले में नहीं है।
छिंदवाड़ा में 400 बेड का मेडिकल कॉलेज है, लॉ कॉलेज है। एक मेडिकल हस्पताल है। इसके अलावा छिंदवाड़ा में स्किल ट्रेनिंग के लिए व्यवस्थाएं जैसे कि, फुटवियर डिजाइन ट्रेनिंग, अपीयरल डिजाइन ट्रेनिंग, अशोक लेलैंड का ड्राइविंग ट्रेनिंग, और राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईआईटी ) भी है।
छिंदवाड़ा में पेंच-कान्हा घाटी कोल फील्ड भी है जिसे वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड देखती है। इसके अलावा छिंदवाड़ा में मसाला पार्क और टेक पार्क भी है। छिंदवाड़ा में हिंदुस्तान युनिलिवर और रेमंड्स की औद्योगिक इकाइयां भी हैं।
छिंदवाड़ा को कॉर्न सिटी भी कहा जाता है। यहां मक्के और संतरे की पर्याप्त खेती होती है। कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर जीतेन्द्र कुमार सिंह के अनुसार, छिंदवाड़ा एक एकड़ में 60 से 80 टन मक्का का उत्पादन होता है, और यहां के किसान तकरीबन 50,000 से 75,000 रुपये तक का मुनाफा कमा पाते हैं। इसके अलावा छिंदवाड़ा के मक्के अमरीका भी भेजे जाते हैं।
छिंदवाड़ा को लोगों की एक समस्या है जिसका निदान अभी तक नहीं हो पाया है, वो है पेय जल की। छिंदवाड़ा से अक्सर खबरें आती है की हफ्ते भर के लिए लोगों को पानी उपलब्ध नहीं हो पाया, या दूषित पानी पीने के कारण कोई व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार पड़ गया।
छिंदवाड़ा में पलड़ा तो आम तौर पर कांग्रेस का ही भारी रहता है, आखिर जो एंटी-इंकम्बेंसी 44 साल में नहीं हुई उसके अब होने के कितने ही आसार हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है, बंटी साहू छिंदवाड़ा में काफी सक्रिय हैं। छिंदवाड़ा में मतदान पहले चरण में यानी 19 अप्रैल को है, अब ये नतीजों के बाद ही पता लग पाएगा की छिंदवाड़ा कांग्रेस में हुई बगावत से कमलनाथ की साख कितनी प्रभावित हुई है।
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