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किसानों के लिए मुनाफा साबित हो रही है लेमन ग्रास की खेती

दलहन, तिलहन जैसे फसलों से इतर आमदनी बढ़ाने के लिए किसानों ने अब लेमन ग्रास की खेती जैसे नये उत्पादों से मुनाफा कमाने का तरीका ढूंढ निकाला है.

By Charkha Feature
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lemon grass farming

अमरेन्द्र सुमन | दुमका, झारखंड| ग्राउंड रिपोर्ट | गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसे पारंपरिक फसलों से इतर आमदनी बढ़ाने के लिए झारखंड के किसानों ने अब लेमन ग्रास (Lemon Grass) जैसे नये उत्पादों से मुनाफा कमाने का एक नायाब तरीका ढूंढ निकाला है. बिना अधिक परिश्रम के ही न्यूनतम पूंजी पर अधिकतम लाभ का यह तरीका धीरे धीरे ही सही, किन्तु लगातार फैलता ही जा रहा है. इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि सूखा प्रभावित इलाकों में भी आसानी से यह लगाया जा सकता है. झारखंड की उप राजधानी दुमका में झारखंड राज्य आजीविका संवर्द्धन संस्थान (जेएसएलपीएस) के तहत संचालित जोहार परियोजना के अन्तर्गत जिले के चार प्रखंडों दुमका, शिकारीपाड़ा, मसलिया और रामगढ़ में ग्रामीण महिलाएं लेमन ग्रास की खेती के जरिए आर्थिक आत्मनिर्भरता की नई कहानियां लिख रही हैं. जोहार परियोजना अंतर्गत सखी मंडल की महिलाओं को औषधीय पौधों की खेती के लिए उत्पादक समूह बना कर इससे जोड़ा गया है, जिसमें लेमन ग्रास की खेती प्रमुख है.

महिला किसानों का क्या कहना है?

दुमका के उपरोक्त सभी 4 प्रखंडों में अब तक 1200 सखी मंडल की दीदियों ने लेमन ग्रास की खेती को अपनी आजीविका का एक प्रमुख साधन बना लिया है. इसके जरिए इन्हें अच्छी आमदनी भी प्राप्त हो रही है. महिलाओं द्वारा निर्मित संथाल परगना महिला प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड (एसपीएमपीसीएल) के द्वारा इसके बाजार और व्यापार में महिला किसानों की मदद भी की जा रही है. मसलिया प्रखंड के झिलुआ आजीविका उत्पादक समूह की सदस्या सुमित्रा दत्ता का कहना है कि उसने अपने 20 डिसमिल जमीन पर एक प्रयोग के तौर पर पहली बार लेमन ग्रास की खेती प्रारंभ की थी. महिला किसान का कहना है कि उसने लेमन ग्रास का नाम तक नहीं सुना था किन्तु दूसरों से इससे होने वाले फायदे की जानकारी के बाद उसने एक प्रयोग के तौर पर इसे अपनाने का फैसला लिया। इसकी खेती से जब कुछ फायदा समझ में आने लगा तो उसने दूसरों को भी लेमन ग्रास की खेती के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया.

जोहार परियोजना के मद से 4,750 रुपयों की सहायता सभी इच्छुक लाभुकों को प्रदान की गई है, जिसके जरिये लेमन ग्रास की खेती की जा रही है. महिलाओं का मानना है कि बंजर भूमि पर लेमन ग्रास की खेती सोने की तरह कमाई कराती है, इतना ही नहीं बंजर पड़ी भूमि को भी यह खेती व्यवसायिक बना डालती है. जोहार परियोजना के माध्यम से आमदनी का यह तरीका नित्य नई ऊंचाइयों को छू रहा है. महिला किसानों का कहना है कि जोहार परियोजना के तहत इन्हें प्रशिक्षण प्राप्त हुआ, परिणामस्वरुप पिछले साल जनवरी (कोरोना संक्रमण काल) में ही उन्होंने इसकी खेती भी प्रारंभ कर दी. 25 मार्च 2019 से लॉकडाउन के बावजूद जोहार परियोजना के तहत इन महिलाओं द्वारा अब तक करीब 50 हजार रुपये की कमाई सिर्फ लेमन ग्रास की स्लिप बेचकर कर ली गई, जबकि खेती पर मात्र 5-7 हजार रुपये ही हुए थे. इस संबंध में जेएसएलपीएस के जिला परियोजना पदाधिकारी सिद्धार्थ और क्षेत्रीय परियोजना पदाधिकारी प्रणव प्रियदर्शी ने कहा कि-

जिले के उपरोक्त चारों प्रखंड को मिलाकर अभी तक तीन वित्तीय वर्ष में लगभग 175 एकड़ भूमि पर लेमन ग्रास लगाई गई है. आय को दोगुनी करने के लिए जेएसएलपीएस के जोहार परियोजना अंतर्गत लेमन ग्रास से तेल निकालने की मशीन लगाने की तैयारी भी की जा चुकी है. जल्द ही इस दिशा में जमीनी स्तर पर काम की शुरुआत भी हो जाएगी. इससे जहां एक ओर क्षेत्र के अन्य किसान भी लेमन ग्रास की खेती को अपनाने के लिए तैयार होंगे वहीं दूसरी ओर आर्थिक दृष्टिकोण से वे सशक्त भी होंगे.

प्रणव प्रियदर्शी

लेमन ग्रास से निकलने वाले तेल की बाजार में बहुत मांग है. इसे कॉस्मेटिक, साबुन, तेल और दवा बनाने वाली कंपनियां खरीद लेती हैं. यही वजह है कि किसानों का इस फसल की ओर रूझान लगातार बढ़ता जा रहा है. खेती से आमदनी बढ़ाने के लिए पारंपरिक खेती से इतर किसान अब नए प्रयोगों की तरफ बढ़ रहे हैं. कृषि वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों का मानना है कि लेमन ग्रास की किसानी ज्यादा महंगी नहीं है. इसका एक पौधा मात्र 75 पैसे से 1 रुपये तक में मिलता है. इसके अलावा अन्य फसलों की अपेक्षा इसमें बीमारियां भी कम लगती हैं. कीट लगने की संभावना भी ना के बराबर है, इसलिए इस फसल में कीटनाशक छिड़कने की जरूरत ही नहीं पड़ती है. जब कीटनाशक का उपयोग ही नहीं होता है तो किसान अतिरिक्त खर्चे के बोझ से बच जाता है. इसकी पत्तियां कड़वी होने की वजह से जानवर भी इसे नहीं खाते हैं. इससे इसके रखरखाव पर भी ज्यादा ध्यान देने की जरुरत नहीं होती है.

लेमन ग्रास के पौधों को लगाने की भी एक विधि होती है. पौधों में पत्तियां ज्यादा से ज्यादा हों, इसके लिए इसको एक-एक फीट के दूरी पर लगाया जाता है. पौधा लगाने के बाद यह लगभग छह महीने में तैयार हो जाता है. उसके बाद हर 70 से 80 दिनों पर इसकी कटाई कर सकते हैं. साल भर में इसकी पांच से छह कटाई संभव है. यही कारण है कि एक बार पौधा लगाने के बाद किसान को लगभग सात साल तक दोबारा पौधा लगाने से छुट्टी मिल जाती है. इस पौधे को बारहमासी मुनाफा देने वाले पौधे की भी संज्ञा दी जाती है. एक एकड़ में लगाए गए लेमन ग्रास के पौधे से एक कटाई में तकरीबन पांच टन तक पत्तियां निकलती हैं. पांच टन की पत्तियों से 25 लीटर तक तेल निकाला जा सकता है. इसी तरह साल भर में छह कटाई से 100 से 150 लीटर तेल की प्राप्ति हो सकती है. अगर एक लीटर तेल 1200 से 1300 रुपये प्रति लीटर बिके तो भी किसान को तकरीबन एक लाख तक का मुनाफा आसानी से मिल सकता है.

ज्ञात हो कि भारत सालाना करीब 700 टन नींबू घास के तेल का उत्पादन करता है, जिसकी एक बड़ी मात्रा निर्यात की जाती है. भारत के लेमन ग्रास तेल किट्रल की उच्च गुणवत्ता के चलते हमेशा मांग में रहती है. 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वादे को पूरा करने की कवायद में जुटी भारत सरकार एरोमा मिशन के तहत जिन औषधीय और सगंध पौधों की खेती का रकबा बढ़ा रही है उसमें एक लेमनग्रास भी है. (चरखा फीचर)

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